कृष्णमोहन झा
कांग्रेस के जिन 23 वरिष्ठ नेताओं ने गत वर्ष पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक पत्र लिखकर पार्टी में पूर्ण कालिक अध्यक्ष के निर्वाचन की मांग की थी उनमें से कुछ नेता एक बार फिर मुखर हो उठे हैं। हाल में ही राज्यसभा की सदस्यता से निवृत्त हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व में इन नेताओं ने एक बार फिर एकजुटता दिखाई।
इस बार पत्र लिखने के बजाय उन्होंने जम्मू मेंं आयोजित गांधी ग्लोबल सोसायटी के बैनर तले आयोजित कथित शांति सम्मेलन में अपनी उपस्थिति दर्ज करा कर अपनी बात सामने रखी किंतु इस मौके पर न तो सोनिया गांधी, राहुल गांधी अथवा प्रियंका गांधी वाड्रा मौजूद थीं और न ही गांधी परिवार के प्रति वफादार माने जाने वाले पार्टी नेताओं में से कोई इस कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने पहुंचा।
कांग्रेस के 23 वरिष्ठ असंतोष नेताओं के गुट के साथ सदस्यों ने इस कार्यक्रम में खुलकर पार्टी मसलों पर अपने विचार व्यक्त किए जिसका एक ही आशय था कि पार्टी पिछले दस वर्षों में लगातार कमजोर होती चली गई है और इसे मजबूत बनाने के लिए तत्काल ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है। इन नेताओं ने सचेत किया कि अब अगर और देरी की गई तो पार्टी को उसकी बहुत महंगी कीमत चुकानी पड़ेगी।
कार्यक्रम में मौजूद पार्टी नेताओं ने मुख्य रूप से इस बात पर जोर दिया कि गुलाम नबी आजाद की बहुमुखी क्षमताओं और दीर्घकालीन अनुभवों का लाभ उठाकर पार्टी वर्तमान संकट से उबर सकती है। गौरतलब है कि अभी तक पार्टी की ओर से ऐसे कोई संकेत नहीं दिए गए हैं कि गुलाम नबी आजाद को पुनः राज्य सभा में भेजने की उसकी कोई योजना है। उधर गुलाम नबी आजाद ने स्पष्ट कर दिया है कि वे राज्यसभा से रिटायर हुए हैं लेकिन राजनीति में बने रहेंगे।
गांधी ग्लोबल सोसायटी के कार्यक्रम में मौजूद नेताओं ने जिस तरह आजाद को पार्टी की जरूरत बताया उससे यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता था कि ये नेता आजाद को पुनः राज्यसभा में भेजने के लिए पार्टी नेतृत्व पर दबाव बनाने की मंशा से इकट्ठे हुए हैं।
इस कार्यक्रम में सबसे ज्यादा गौर करने लायक बात यह थी कि मंच पर सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा में से किसी की तस्वीर नहीं लगाई गई थी।
कार्यक्रम में मौजूद नेता अपने भाषणों के जरिए यह संदेश भी चाहते थे कि कांग्रेस पार्टी में पूर्ण कालिक अध्यक्ष के निर्वाचन की मांग पूरी होने तक वे अपनी लड़ाई जारी रखेंगे परंतु कांग्रेस छोड़ कर जाने का उनका कोई इरादा नहीं है। पार्टी को मजबूत करने की मंशा से ही उन्होंने यह मुहिम शुरू की है।
इस अवसर पर गुलाम नबी आजाद ने एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ जरूर की परंतु उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि निकट भविष्य में देश के जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव संपन्न होने जा रहे हैं उनमें वे कांग्रेस पार्टी के चुनाव अभियान में सक्रिय भागीदारी करने के लिए तैयार हैं।
अब सवाल यह उठता है कि गुलाम नबी आजाद जिस तरह पिछले कुछ दिनों से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ कर रहे हैं उसे देखते हुए क्या कांग्रेस नेतृत्व उन्हें निकट भविष्य में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में पार्टी के चुनाव अभियान में कोई महत्व पूर्ण जिम्मेदारी सौंपने के लिए तैयार होगा।
राज्यसभा से गुलाम नबी आजाद की विदाई के वक्त प्रधानमंत्री मोदी के भावुक होने के बाद से नए राजनीतिक समीकरणों के जन्म लेने के जो कयास लगाए जा रहे थे उनका गुलाम नबी आजाद ने यद्यपि खंडन कर दिया है परंतु उस पूरे घटनाक्रम ने कांग्रेस नेतृत्व के कान जरूर खड़े कर दिए हैं। यह बात भी गौर करने लायक है कि गुलाम नबी आजाद ने प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ का जो सिलसिला राज्य सभा में प्रारंभ किया था वह अभी भी जारी है।
उधर जम्मू में कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं को गुलाम नबी आजाद के मुख से प्रधानमंत्री मोदी की यह तारीफ रास नहीं आई तो उन्होंने आजाद के विरुद्ध न केवल नारेबाजी की बल्कि उनका पुतला भी जलाया। जम्मू कश्मीर प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष ने कहा कि गुलाम नबी आजाद कांग्रेस में रहकर ही अनेक बार सांसद, केंद्रीय मंत्री और राज्य के मुख्यमंत्री भी बने और आज वे प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा करते नहीं थक रहे हैं।
उनका कहना था कि गुलाम नबी आजाद तो विगत दिनों राज्य में संपन्न जिला विकास परिषद के चुनावों में पार्टी का प्रचार करने भी नहीं आए। आजाद इन आरोपों को ग़लत बताते हुए कहते हैं कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ नहीं की।उन्होंने तो केवल यह कहा था कि मोदी ने अपनी जमीनी असलियत को कभी नहीं छिपाया।
गौरतलब है कि कांग्रेस के 23 असंतुष्ट नेताओं के इस गुट को प्रधानमंत्री मंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यसभा से गुलाम नबी आजाद की विदाई के वक्त दिए गए अपने भावुक भाषण में ’ जी -23 ‘ नाम दिया था। ये नेता अब आर पार की लड़ाई के मूड में दिखाई दे रहे हैं। इनमें से कुछ अभी राज्य सभा के सदस्य हैं।
जिस तरह गुलाम नबी आजाद के बदले हुए रुख के कारण पार्टी द्वारा उन्हें पुनः राज्यसभा में भेजने की संभावनाएं धूमिल दिखाई दे रही हैं उसी तरह जी-23 के अन्य सदस्यों को ऐसा प्रतीत होने लगा है कि पार्टी में पूर्ण कालिकअध्यक्ष के चुनाव की उनकी मांग राज्यसभा में उनके दुबारा पहुंचने की राह में बाधा पैदा कर सकती है। इसलिए वे अब कांग्रेस नेतृत्व के विरुद्ध खुलकर सामने आ गए हैं।
उनकी मुहिम अब पूर्णकालिक अध्यक्ष की मांग तक ही सीमित नहीं है। उन्होंने पार्टी की रीति नीति पर भी सवाल दागना शुरू कर दिया है। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस पार्टी ने इंडियन सेक्युलर फ्रंट पार्टी से जो समझौता किया है उसे ‘ जी -23’में शामिल पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा ने पार्टी के सिद्धांतों के खिलाफ बताया है।
आनंद शर्मा का कहना है कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस नेतृत्व ने इंडियन सेक्युलर फ्रंट से चुनावी गठबंधन का जो फैसला किया है वह गांधी वादी और नेहरू वादी सिद्धांतों के विरुद्ध है। इस गठबंधन के सूत्रधार और लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी ने आनंद शर्मा के बयान पर पलटवार करते हुए कहा है कि शर्मा अपने ’भविष्य के बास’ को खुश करने में लगे हैं। आनंद शर्मा ने इसके जवाब में कहा है कि मैं हमेशा भाजपा के खिलाफ रहूंगा।
दरअसल जिस इंडियन सेक्युलर फ्रंट पार्टी से कांग्रेस पार्टी ने विधान सभा चुनावों के लिए तालमेल किया है उसका गठन पिछले दिनों बुलबुला दरगाह शरीफ के संस्थापक पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने किया है जो पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के समर्थक माने जाते थे।
बताया जाता है कि पश्चिम बंगाल में पूर्ववर्ती वाममोर्चा सरकार के शासन काल में नंदीग्राम और सिंगूर में ममता बनर्जी जो आंदोलन किया था उसमें पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
उन्होंने अब ममता बनर्जी का साथ छोड़कर इंडियन सेक्युलर फ्रंट पार्टी का गठन किया है। उनका दावा है कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के बाद श्री सरकार के गठन में वह किंगमेकर की भूमिका में होंगी।
चूंकि कांग्रेस भी यह मानती है कि कट्टर पंथी नेता पीरजादा अब्बास सिद्दीकी की यह पार्टी लगभग पचास सीटों के मतदाताओं को प्रभावित कर सकती है इसीलिए कांग्रेस ने उसके साथ चुनावी गठबंधन कर अपना हित साधने की कोशिश की है। आनंद शर्मा का कहना है कि उनके साथ चुनावी गठबंधन करने से पहले कांग्रेस हाईकमान से अनुमति नहीं ली।
जवाब में अधीर रंजन चौधरी का कहना है कि पार्टी हाई कमान की अनुमति से इंडियन सेक्युलर फ्रंट से चुनावी गठबंधन किया गया है कुल मिलाकर कांग्रेस में पूर्ण कालिक अध्यक्ष के निर्वाचन की मांग से शुरू हुई लड़ाई ने अब न केवल सार्वजनिक रूप ले लिया है और अब इसमें बेहद तल्खी भी आ चुकी है। अब व्यक्ति गत आरोप प्रत्यारोपों का जो सिलसिला शुरू हुआ है उसके जल्द थमने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं।
कांग्रेस के लिए निःसंदेह यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि जब पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा भी हो चुकी है तब पार्टी के नेता जी जान से चुनाव अभियान में जुटने के बजाय एक दूसरे पर निशाना साधने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं।
पार्टी की यह अंदरूनी लड़ाई भाजपा की चुनावी संभावनाओं को बलवती बनाने में मददगार साबित होगी। परंतु इसके स्थिति के लिए गांधी परिवार भी अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकता। दिक्कत यह है कि पार्टी में सोनिया गांधी के बाद सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माने जाने वाले पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पार्टी पर अपनी पकड़ तो बनाए रखना चाहते हैं परंतु पूर्ण कालिक अध्यक्ष पद स्वीकार करने से पीछे हट जाते हैं।
बीच-बीच में उनके बयान भी पार्टी को असहज स्थिति का सामना करने के लिए विवश कर देते हैं जैसा कि पिछले दिनों हुआ जब तमिलनाडु में हुआ जब उनके बयान में उत्तर और दक्षिण के बीच भेद करते दिखाई दिए।
दरअसल पार्टी को न केवल पूर्णकालिक अध्यक्ष की आवश्यकता है बल्कि उसे एक करिश्माई लोकप्रियता के धनी अध्यक्ष की कमी भी कल रही है। जब तक उसकी यह कमी पूरी नहीं होती तब तक उसे वर्तमान संकट पर विजय पाने की उम्मीद भी नहीं करना चाहिए। यह भी विडंबना है कि जिन वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी की वर्तमान दुर्दशा पर चिंता जताई है उनके पास भी यह सामर्थ्य नहीं है कि वे आगे बढ़ कर पार्टी के कायाकल्प का बीड़ा उठा सकें।