लखनऊ। आपने आखिरी बार यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव की पत्नी, पूर्व सांसद व सपा की स्टार प्रचारक डिंपल यादव को कब और कहां देखा है? अधिकतर लोगों को 2017 का विधानसभा चुनाव याद आएगा। कुछ लोगों को 2019 का चुनाव। कुछेक ऐसे भी मिलेंगे, जो कहेंगे कि 7 महीने पहले साइकिल यात्रा को हरी झंडी दिखाते फोटो मीडिया में देखी थी। शायद ही कोई ऐसा कहते मिले कि 2022 के चुनाव में डिंपल यादव को किसी सभा-प्रेस कांफ्रेंस या मीटिंग करते हुए देखा। आखिर ऐसा क्या हो गया?
अगर आपका सवाल ये है कि क्या ये अचानक हुआ? तो ऐसा बिलकुल नहीं है। इसकी शुरुआत 2017 की समाजवादी पार्टी की सभा है, जिसमें अपने ही कार्यकर्ताओं के हुल्लड़ से परेशान होकर उन्हें मंच से कहना पड़ा था कि- ‘आप चिल्लाते हो, मुझे डर लगता है… प्लीज शांत शांत…। कल अखिलेश भैया आ रहे हैं… तब… बस तुम्हारा ही नाम बताने वाली हूं। सपा से जुड़े लोगों की मानें तो उसके बाद डिंपल अकेले किसी भी ऐसी सभा या भीड़ में जाने से परहेज करने लगीं। 2019 में वह सुरक्षा घेरा से नजदीकी और भीड़ से दूरी लगभग हर सभा में बरती।
ये बात तो पुरानी हो गई…अब 2022 में क्या?
दरअसल, साल बदला है, माहौल नहीं। अभी दो दिन पहले ही डिंपल मां विंध्यवासिनी देवी के दर्शन के लिए गई थीं। लोगों को पता चला तो उन्हें देखने के लिए हुजूम उमड़ पड़ा। कोई हाथ जोड़ने लगा तो कोई पैर छूने के लिए झुका। तभी भीड़ ये यह भी आवाज आई कि भैया से मिलवा दीजिए, दर्शन करा दीजिए। सिर्फ समाजवादियों का ही नहीं, पब्लिक का क्रेज तब भी हुआ करता था, जब डिंपल अखिलेश के साथ प्रचार करने के लिए निकलती थीं और अब 2022 के चुनाव में अखिलेश पूरी लड़ाई अकेले लड़ रहे हैं। कहा ये जा रहा कि न तो डिंपल ऐसी सभाओं में जाने की इच्छुक हैं और न ही अखिलेश उन्हें भेजना चाहते हैं।
23 साल पहले जब लव मैरिज करने से नहीं डरी तो क्या अब डर गईं?
डिंपल जब लखनऊ में पढ़ रही थीं, तब उनकी मुलाकात अखिलेश से हुई। दोनों का रिश्ता मुलायम को स्वीकार नहीं था मगर अमर सिंह ने उन्हें मना लिया। उनकी शादी 24 नवंबर 1999 को हुई। शादी में अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना जैसे फिल्मी सितारे भी जुटे। दोनों की दो बेटियां और एक बेटा है। एक टीवी चैनल के इंटरव्यू में अखिलेश ने बताया था कि चुनाव का इतना प्रेशर रहता है कि खाने की मेज पर भी वही सब बातें होती हैं।
2012 में जब अखिलेश सीएम बने तो जो कन्नौज सीट छोड़ी, वहीं से डिंपल को उम्मीदवार बनाया। सपा का उस समय समीकरण ऐसा कि वह निर्विरोध जीत गईं और पहली बार सांसद बनीं। डिंपल ने 2009-2019 तक कन्नौज लोकसभा का प्रतिनिधित्व किया। वह सपा की ऐसी स्टार प्रचारक थीं, जिनकी डिमांड अखिलेश से कहीं भी कम न थी। 2017 के हुल्लड़ के बाद वह धीरे-धीरे भीड़ से दूरी बनाती रहीं। 2019 में वह लड़ी, लेकिन पहले जैसे एक्टिव रोल में नहीं थीं। दूसरे मोदी लहर में वह बीजेपी के सुब्रत पाठक से हार गईं।
आखिरी बार किसी सभा में कब दिखाई दीं?
5 अगस्त 2021 को डिंपल यादव ने आखिरी बार कन्नौज में जनेश्वर जयंती के दिन साइकिल यात्रा को हरी झंडी दिखाई थी। इससे पहले करीब दो साल वह न तो किसी सभा, न प्रेस कांफ्रेंस में गईं और न ही महिलाओं से जुड़े किसी कार्यक्रम में भाग लिया। मानो अघोषित संन्यास ही ले लिया हो। इससे पहले लोकसभा चुनाव 2019 में खुद चुनाव लड़ते हुए आठ रैली-सभाएं की। 9 मार्च 2018 को जया बच्चन के राज्यसभा नॉमिनेशन के टाइम पर डिंपल यादव उनके साथ मौजूद रहीं। वहां सुब्रत रॉय भी आए थे। डिंपल ने कुर्सी छोड़ दी और दूसरी सीट पर शिफ्ट हो गईं, जिससे सुब्रत रॉय आगे आकर बैठ सकें।
तो अभी क्या कर रही सपा स्टार डिंपल?
अखिलेश परिवार से जुड़े लोगों की मानें तो वह अभी घर से ही चुनाव का प्रबंधन देख रही हैं। सोशल मीडिया में कब-क्या-कैसे जाना है? इसपर लगातार काम कर रही हैं? महिला माेर्चा उन्होंने ही संभाल रखा है। महिला संगठनों के साथ वो लगातार बैठक कर रही है। प्लानिंग-फीडबैक में उनका अहम रोल है। सब अच्छे से चल रहा है। हमारी सरकार आ रही है…फिर ये सवाल कहां से आ रहा है? अब वो राजनीति के साथ परिवार, खासकर बच्चों को भी पूरा समय दे पा रही हैं।
क्या हुल्लड़ के डर से उन्होंने खुद को घर में कैद किया? सवाल पर उनका कहना है कि ऐसा नहीं है। अखिलेश और खुद डिंपल दोनों ने तय किया कि हमें इस चुनाव में कैसे आगे बढ़ना है? हो सकता है कि इसी चुनाव में डिंपल भी आपको जनसभी करती नजर आएं। वैसे भी कोरोना के कारण तो रैली-सभाओं पर रोक थी। और उन्हें एक बार चुनाव की शुरुआत में कोरोना हो भी गया था। इस कारण भी उन्होंने जनसभाओं में न जाना ही मुनासिब समझा।