सियाराम पांडेय ‘शांत’
भारत और चीन के प्रगाढ़ होते रिश्तों ने चीन की पेशानी पर बल ला दिया है। भारत और अमेरिका के रक्षा और विदेश मंत्रियों के बीच हुए टू प्लस टू संवाद ने चीन की धड़कनें बढ़ा दी हैं। अमेरिका के विदेश और रक्षा मंत्री की भारत यात्रा को वह पचा नहीं पा रहा है। यही वजह है कि वह अमेरिका पर पड़ोसी देशों से वैमनस्य बढ़ाने का आरोप लगाने लगा है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा है कि चीन के खिलाफ पोम्पियो के आरोप निराधार हैं जो दर्शाते हैं कि वह मानसिक रूप से शीतयुद्ध और वैचारिक पक्षपात कर रहे हैं। पोम्पियो चीन तथा क्षेत्रीय देशों के बीच कलह का बीज बोना बंद करें।
हालांकि चीन को आत्ममंथन करना होगा कि पड़ोसी देशों से उसके रिश्ते अमेरिका ने नहीं खराब किए हैं बल्कि अपनी विस्तारवादी नीति-रीति के चलते उसने भारत सहित कई देशों की नाक में दम कर रखा है। उसकी बदनीयती का आईना उसका मौजूदा विस्तार दिखाता है। संप्रति चीन का कुल क्षेत्रफल 9706961 वर्ग किमी है। चीन की 22117 किमी. लंबी सीमा 14 देशों से लगती है। इन सभी देशों के साथ चीन का सीमा विवाद चल रहा है।
चीन के नक्शे में 6 देश पूर्वी तुर्किस्तान, तिब्बत, इनर मंगोलिया या दक्षिणी मंगोलिया, ताइवान, हॉन्गकॉन्ग और मकाऊ शामिल हैं। इन छह देशों पर चीन ने कब्जा कर रखा है। वह इन्हें अपना हिस्सा बताता है। इन सभी देशों का कुल क्षेत्रफल 4113709 वर्ग किमी से अधिक है। यह चीन के कुल क्षेत्रफल का 43 प्रतिशत है।
चीन अरुणाचल प्रदेश के 90 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर अपनी दावेदारी जताता जबकि, लद्दाख का करीब 38 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र उसने कब्जा रखा है। 2 मार्च 1963 को चीन-पाकिस्तान के बीच हुए एक समझौते के तहत पाकिस्तान ने पीओके की 5180 वर्गकिलोमीटर भूमि चीन को दे दी थी।
सच यह है कि चीन अभी जितने बड़े भारतीय भूभाग को हड़पे बैठा है, उतना कब्जा उसने स्विटजरलैंड पर भी नहीं किया है। चीन ने भारत के 43180 वर्ग किमी और स्विटजरलैंड के 41285 वर्ग किमी क्षेत्र पर कब्जा कर रखा है। दक्षिण चीन सागर में उसका व्यवहार बेहद तानाशाही भरा है। इसके बाद भी चीन अगर यह समझता है कि पड़ोसी देशों से उसके मधुर संबंध हैं तो यह किसी यूटोपिया से कम नहीं है।
पूर्वी लद्दाख में वह पांच-छह माह से गलवान घाटी पर कब्जा करने की फिराक में हैं लेकिन भारतीय सैनिकों ने उसे जिस तरह का मुंहतोड़ जवाब दिया है, उससे वह पहले ही बेहद चिंतित है। इस बीच भारत और अमेरिका ने रक्षा क्षेत्र में सहयोग को और अधिक प्रगाढ़ करते हुए बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (बेका) पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। इस समझौते के बाद अब भारत अमेरिकी उपग्रहों से अतिसंवेदनशील सैन्य डाटा प्राप्त कर सकेगा।
अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो तथा रक्षा मंत्री मार्क एस्पर और भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तथा विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर माैजूद की मौजूदगी में इस समझौते पर दस्तखत किए गए हैं। यह समझौता न केवल महत्वपूर्ण उपलब्धि है बल्कि इससे भारत को अमेरिकी उपग्रहों से सटीक आंकड़े और फोटो मिलना शुरू हो जायेंगे। दोनों देश मानचित्रों, नॉटिकल और एरोनॉटिकल चार्टों, जियो फिजिकल और जियो मेग्नेटिक आंकड़ों का आदान-प्रदान कर सकेंगे।
इसका एक लाभ यह होगा कि भारत दुश्मन के सैन्य लक्ष्यों पर एकदम सटीक निशाना साध सकेगा। ऐसे में चीन की तिलमिलाहट स्वाभाविक है।
गौरतलब है कि इससे पूर्व भी विगत दो दशक में भारत अमेरिका के साथ तीन समझौते कर चुका है और उन समझौतों का लाभ उभय देशों को मिल भी रहा है। इस समझौते से भारतीय नौसेना को भी हिन्द महासागर में चीनी नौसेना की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखने में मदद मिलेगी। देखा जाए तो वर्ष 2016 में लेमोआ और 2018 में कोमकासा समझौतों पर हस्ताक्षर के बाद यह समझौता बड़ा कदम है।
अमेरिकी विदेश मंत्री पोम्पियो द्वारा यह कहा जाना कि ‘चीन पश्चिमी देशों के लिए खतरा है और कुछ मायने में शीतयुद्ध के दौरान सोवियत संघ की तरफ से उत्पन्न खतरे से भी खतरनाक है’, चीन की छाती पर मूंग दलने जैसा है। पोम्पियो और एस्पर दोनों ने ही भारत को विश्वास दिलाया है कि अमेरिका भारत के समक्ष उसकी संप्रभुता एवं आजादी के खतरों से मुकाबले में उसके साथ दृढ़ता से खड़ा है।
हम इस बात से सहमत हैं कि अमेरिका और भारत की व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी दोनों देशों के साथ-साथ हिन्द प्रशांत क्षेत्र तथा वैश्विक सुरक्षा एवं समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है।
हमारे साझा मूल्यों और साझा हितों के आधार पर हम मुक्त हिन्द प्रशांत क्षेत्र और चीन की बढ़ती हमलावर तथा अस्थिर करने वाली गतिविधियों के मद्देनजर कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं। भारतीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने अपने वक्तव्य के जरिए रूस को भी मलहम लगाने की कोशिश की है और कहा है कि आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत भारत और अमेरिका के बीच रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में सहयोग एवं तकनीक के हस्तांतरण को बढ़ावा मिलेगा लेकिन अमेरिका के साथ रक्षा संबंधों में प्रगाढ़ता के बावजूद भारत अपने पारंपरिक मित्र रूस के साथ हथियारों की खरीद पर कोई रोक नहीं लगाएगा।
भारत की इस चिंता से अमेरिका भी वाकिफ है। पिछले महीने जब उसने दुनिया के देशों पर रूस से खरीद-फरोख्त रोकने को कहा था तब भी उसने भारत को अपने स्व विवेक से निर्णय लेने की छूट दी थी।
रही बात टू प्लस टू संवाद की तो यह दोनों देशों के बीच पहला अवसर नहीं है। इससे पहले के दो संवाद वर्ष 2018 तथा 2019 में हो चुके हैं। हिन्द प्रशांत क्षेत्र में शांति, स्थिरता, सुरक्षा, नियम आधारित एवं नौवहन की स्वतंत्रता के लिए महत्वपूर्ण इस बैठक के बाद माइक पोम्पियो और मार्क एस्पर का भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मिलना और रणनीतिक महत्व के मुद्दों एवं चुनौतियों पर विमर्श करना मायने रखता है।
इसके बाद दोनों अमेरिकी नेताओं की श्रीलंका यात्रा और वहां के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे से मिलना यह बताता है कि विदेशी राजनय के क्षेत्र में अमेरिका कुछ बड़ा करने की फिराक में है। वह चीन प्रताड़ित देशों से मिलकर उसके खिलाफ माहौल बना रहा है। उसकी योजना दरअसल चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने की है। वह स्वतंत्र और मुक्त हिंद-प्रशांत क्षेत्र बनाए रखने के लक्ष्य को और आगे बढ़ाना चाहता है।
एक सच यह भी है कि अमेरिका भारत को युद्धभूमि बनाना चाहता है लेकिन भारत अभी युद्ध से अधिक चीन को समझाने में जुटा है। युद्ध भूमि कोई भी हो, चीन बुरी तरह घिर चुका है। उससे लगती सीमाओं वाले सभी 14 देश खार खाए बैठे हैं, कोरोना वायरस के चलते पहले ही पूरी दुनिया उससे नाराज है। ऐसे में चीन को समझदारी से काम लेना होगा।