नई दिल्ली। नेपाल से दोस्ती गांठने के बाद अब चीन को इस बात की भी तकलीफ होने लगी है कि आखिर नेपाली नागरिक भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट में क्यों हैं? इसकी वजहें तलाशने के लिए चीन ने नेपाल में सर्वे कराने के मकसद से बाकायदा एनजीओ चाइना स्ट्डी सेंटर को 12 लाख रुपये में ठेका दिया है।
इतना ही नहीं चीन अब नेपाल में भर्ती अभियान चलाकर खुद भी ‘गोरखा रेजिमेंट’ बनाने के सपने देखने लगा है। नेपाल में चीन की राजदूत हाओ यान्की ने एनजीओ को यह रायशुमारी करने की जिम्मेदारी दी है कि क्या नेपाल के गोरखा समुदाय के लोगों को भारतीय सेना से तोड़कर उन्हें चीन की बनने वाली ‘गोरखा रेजिमेंट’ में शामिल किया जा सकता है।
भारतीय सेना में गोरखा रेजिमेंट का अपना अलग ही महत्त्व है। गोरखा भारत की सेना का सम्मान हैं और इनके लहू में वीरता घुली हुई है। इस रेजिमेंट के जवानों में अधिकांश नेपाली हैं लेकिन उनकी कर्मभूमि हिन्दुस्तान है। गोरखा रेजिमेंट के जवान भारत में भी ज्यादातर पहाड़ी इलाकों पर तैनात रहते हैं। गोरखा सैनिकों के बारे में यह भी कहा जाता है कि पहाड़ों पर उनसे बेहतर लड़ाई कोई और नहीं लड़ सकता है।
चीन से तनातनी शुरू होने से पहले भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट के 1642 सैनिक छुट्टियों पर अपने-अपने घर गए थे। इस बीच लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून को चीनी सैनिकों के साथ हुई हिंसक झड़प के दूसरे दिन 17 जून को थल सेना, नौसेना और वायुसेना में सभी तरह की छुट्टियों को रद्द कर दिया गया। अवकाश पर गए सभी सैनिकों को 72 घंटे के भीतर रिपोर्ट करने के आदेश दिए गए।
उस समय तक चीन की नेपाल से दोस्ती परवान चढ़ चुकी थी। इसी बीच नेपाल में मांग उठी कि छुट्टी पर आये गोरखा रेजिमेंट के सैनिक वापस भारतीय सेना की ड्यूटी पर न लौटें। नेपाली प्रतिबंधित संगठन कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल के नेता बिक्रम चंद ने अपील कर दी कि गोरखा नागरिकों को भारतीय सेना का हिस्सा बनने से रोका जाए। गोरखा सैनिकों को छुट्टियों से वापस बुलाकर भारत हमारे नेपाली नागरिकों को चीन के खिलाफ सेना में उतारना चाहता है।
गोरखा सैनिकों को चीन के खिलाफ तैनात किया जाना नेपाल की विदेश नीति के खिलाफ जाएगा। नेपाल से तनातनी के बीच तमाम विरोधों के बावजूद भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट के नेपाली सैनिकों ने भारत के प्रति अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्य को समझते हुए मोर्चे पर लौटना उचित समझा और सभी 1642 गोरखा सैनिक छुट्टी से वापस लौट आये।
चीन को यह बात अखर गई कि आखिर नेपाल के लोग अपनी सेना को छोड़कर भारत की सेना में क्यों शामिल होते हैं? इसकी वजहें तलाशने के लिए चीन ने नेपाल में सर्वे कराने का फैसला लिया। इसके लिए नेपाल में चीन की राजदूत हाओ यान्की ने नेपाल के एनजीओ चाइना स्टडी सेंटर को 12 लाख रुपये में ठेका दिया है। इस समय करीब एक लाख नेपाली गोरखा इस रेजिमेंट का हिस्सा हैं।
हर साल नेपाल से करीब 1500 गोरखा सैनिक सेना में शामिल होते हैं। हाल ही में इंडियन मिलिट्री एकेडमी (आईएमए) देहरादून से तीन नेपाली नागरिक ट्रेनिंग पूरी होने के बाद भारतीय सेना में शामिल हुए हैं। गोरखा जवानों ने चीन से 1962 की जंग में, फिर 1965 और 1971 में पाकिस्तान से युद्ध में दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दिया है। यही वजह है कि चीन को ये गठजोड़ खटक रहा है।