देहरादून। पिछले दो वर्ष से वैश्विक महामारी कोरोना का साया और इस कारण चुनाव प्रचार अभियान की फीकी रंगत, मगर इसके बावजूद उत्साहजनक मतदान प्रतिशत ने राजनीतिक दलों को चकित किया है। इस चुनाव में लगभग 65.10 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने लोकतांत्रिक अधिकार का इस्तेमाल किया। हालांकि निर्वाचन आयोग के मुताबिक पोलिंग पार्टियों के अभिलेखों के मिलान के बाद इसमें कुछ परिवर्तन हो सकता है।
उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद हुए पहले तीन विधानसभा चुनावों में मतदान प्रतिशत में लगातार वृद्धि हुई, जबकि वर्ष 2017 के चौथे विधानसभा चुनाव में इसमें एक प्रतिशत से अधिक की गिरावट दर्ज की गई थी। मतदाता के दिल में क्या है, इसे भांप पाने में अंत तक राजनीतिक दल सफल नहीं हुए। बदली परिस्थितियों में 65 प्रतिशत से अधिक मतदान को लेकर राजनीतिक विश्लेषक व दल अलग-अलग आकलन कर रहे हैं।
पांच साल की सरकार की एंटी इनकंबेंसी को लेकर सतर्क भाजपा को इस चुनाव में भी मोदी मैजिक का पूरा भरोसा रहा और अब जिस तरह मतदाता खासी संख्या में घरों से निकल मतदान को पहुंचे, उसने भाजपा को राहत दी है। यह बात अलग है कि कांग्रेस भी इसे सत्ता में बदलाव के संकेत के रूप में परिभाषित करते हुए अपने पक्ष में बता रही है। अब भाजपा का विश्वास कायम रहता है या फिर कांग्रेस का दावा सच साबित होगा, यह 10 मार्च को मतगणना के बाद सामने आ जाएगा।
इस चुनाव में मोदी मैजिक के साथ ही भाजपा को विकास के नाम पर जनादेश मिलने का भरोसा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जादू उत्तराखंड में हर बार चला है। मोदी के राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश के बाद भाजपा पिछले आठ वर्षों से उत्तराखंड में अविजित है।
वर्ष 2014 व 2019 के लोकसभा चुनाव में सभी पांचों सीटों पर परचम फहराने के अलावा वर्ष 2017 के पिछले विधानसभा चुनाव में 70 में से 57 सीटों पर जीत इसे प्रमाणित करती है। भाजपा ने पिछली बार की तरह यह चुनाव भी डबल इंजन के स्लोगन के साथ लड़ा। दरअसल, पिछले पांच वर्षों में केंद्र व राज्य में भाजपा की ही सरकार रहने से उत्तराखंड को केंद्र से एक लाख करोड़ से अधिक की विकास परियोजनाओं की सौगात मिली, जिन पर काम चल रहा है।
कांग्रेस की चुनाव में सबसे बड़ी उम्मीद भाजपा सरकार की पांच साल की एंटी इनकंबेंसी है। इसे हर पांच वर्ष में सत्ता में बदलाव के मिथक से जोड़ते हुए पार्टी जीत का दावा कर रही है। कांग्रेस ने भाजपा की पांच साल की सरकार में तीन-तीन मुख्यमंत्री के मुद्दे को भी भुनाने की कोशिश की। इसके अलावा महंगाई और बेरोजगारी दो ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर कांग्रेस को उम्मीद है कि मतदाता बड़ी संख्या में मतदान केंद्रों तक पहुंचे।
हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर जिलों, जहां कुल 20 सीटें हैं, में किसान आंदोलन के असर को भी पार्टी अपने पक्ष में मानकर चल रही है और उसे लगता है कि यह चुनाव परिणाम में भी झलकेगा। मतदान के दौरान मुस्लिम बहुल इलाकों व बस्तियों में मतदाताओं के उत्साह ने कांग्रेस के भरोसे को बढ़ाया है।