महायुति सरकार के लिए राह आसान नहीं, रेवड़ियों की बारिश भी बेअसर

इस चुनावी राज्य में दो ‘खबरें’ खूब चर्चा में रहीं। उद्धव ठाकरे ने बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस से संपर्क किया और शिव सेना प्रवक्ता संजय राउत ने फोन पर केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से बात की। बड़ी चतुराई से कांग्रेस के अनाम ‘सूत्रों’ के हवाले से इन्हें एक टीवी चैनल ने प्रसारित किया जिसे बीजेपी का मित्र माना जाता है।

अन्य मीडिया हाउस की ओर से भी 20 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले एमवीए की एकता पर संदेह वाली चटपटी खबरें भी कई घंटों तक चलाई गईं। इसी दौरान मराठी और क्षेत्रीय चैनलों ने अपनी पड़ताल में पाया कि ये खबरें विश्वसनीय नहीं बल्कि झूठी हैं। लेकिन तब तक काफी नुकसान हो चुका था। राज्य के बाहर विशेषकर नई  दिल्ली के कुछ आउटलेट्स अगले 24 घंटे तक वही सब करते रहे।

न्यू इंडियन एक्सप्रेस के वरिष्ठ पत्रकार सुधीर सूर्यवंशी ने ट्वीट किया कि दुनिया की सबसे पार्टी ने एक खबर प्लांट की जिसके बारे में उसका दावा है कि यह खबर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी से आई है। उन्होंने कहा कि यह शुरू से ही संदिग्ध लग रहा था। जब दोनों के बीच किसी तरह का संबंध नहीं है और फडणवीस की अपनी पार्टी में खुद की स्थिति भी कमजोर है, तब वह क्यों मिलेंगे?

शिव सेना (उद्धव बाला साहब ठाकरे) नेता संजय राउत इसे झूठ का पुलिंदा बताते हैं। पार्टी की राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा, ‘फेक न्यूज अलर्ट’। लेकिन इन फर्जी खबरों ने सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन में चल रहे घमासान से लोगों का ध्यान भटकाने में जरूर सफलता पाई। इस सबके बीच बीजेपी ने 99, शिव सेना (शिंदे) ने 45 और एनसीपी (अजित पवार) ने 38 प्रत्याशियों की घोषणा कर दी। स्पष्ट है कि गठबंधन संयुक्त घोषणा करने में विफल रहा जो भीतरी खींचतान को दर्शाता है।

बीजेपी को राज्य में कभी भी बहुमत नहीं मिला। पार्टी के पहले मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस 2014 में थे। हरियाणा के नतीजों से उत्साहित बीजेपी एमवीए के इस कदर बिखराव की कहानी को आगे कर रही है। लेकिन महाराष्ट्र हरियाणा नहीं है। विदर्भ, पश्चिमी महाराष्ट्र, कोंकण और मराठवाड़ा में क्षेत्रीय स्थितियां भिन्न-भिन्न हैं। ‘मामू’ (मराठा-मुस्लिम) फैक्टर के अलावा दलित, ओबीसी और कुनबी भी हैं जिनमें से प्रत्येक के अपने मुद्दे और राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हैं।

बीजेपी ने अपनी सूची में शिव सेना (शिंदे) के कुछ बागियों के नाम भी शामिल किए हैं। इनमें शिंदे के मजबूत गढ़ माने जाने वाले गृह क्षेत्र ठाणे से भी उम्मीदवार शामिल हैं। पार्टी ने बागी गणेश नाइक के अलावा ऐरोली और कल्याण पूर्व से भी प्रत्याशी उतारे हैं। शिंदे के कट्टर विरोधी संजय केलकर को उतारना स्पष्ट संदेश है कि बीजेपी उन्हें मात देने को आतुर है। इससे बिना विचलित हुए शिंदे ने केलकर के खिलाफ मीनाक्षी शिंदे को उतारा है।

बीजेपी राज्य में खुद को सबसे पार्टी के रूप में स्थापित करने में जुटी है। गठबंधन सहयोगियों को किनारे करने की कोशिश बताती है कि वह उनके बिना भी काम चला सकती है। बीजेपी के प्रत्याशियों की पहली सूची ने ही विरोध को भी उभार दिया है क्योंकि इसमें पार्टी नेताओं के परिवार के सदस्य भी थे। इससे पार्टी की परिवार पर निर्भरता और राजनीतिक वंशवाद के बारे में उसका पाखंड उजागर हुआ है।

एकनाथ शिंदे को भी यह पता है कि इन चुनाव में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाए तो उनका राजनीतिक भविष्य संकट में फंस सकता है। वह दो मोर्चों पर जूझ रहे हैं। एक गठबंधन के भीतर बीजेपी के खिलाफ और दूसरा शिव सेना (यूबीटी) के खिलाफ जिससे वह अलग हुए थे। चुनाव आयोग की बदौलत उन्हें लोकसभा चुनाव में मूल शिव सेना के चुनाव चिन्ह के उपयोग का मिला लाभ आगे मिलने की संभावना कम ही नजर आ रही है क्योंकि शिव सेना (यूबीटी) के पास अपने नए चुनाव चिन्ह (मशाल या टार्च) को लोकप्रिय बनाने के लिए पर्याप्त समय है।

कुछ टिप्पणीकारों का मानना है कि फर्जी खबरें उल्टी पड़ गई है जिससे बीजेपी एक षडयंत्रकारी पार्टी के रूप में सामने आई है जबकि उद्धव ठाकरे के लिए लोगों में सहानुभूति बढ़ी है।

दूसरी तरफ, एमवीए की ओर से 23 अक्तूबर की शाम को आयोजित संवाददाता सम्मेलन में घोषणा की गई कि 288 में से 270 सीटों पर बातचीत सफलतापूर्वक पूरी हो गई है। कांग्रेस, शिव सेना (यूबीटी) और एनसीपी (शरद पवार) बराबर (85-85) सीटें बांटने पर एकमत थे। संवाददाता सम्मेलन में नाना पटोले, विजय वडेट्टीवार, जयंत पाटिल और संजय राउत मौजूद थे। इसके कुछ मिनट पहले ही शिव सेना (यूबीटी) ने अपने प्रत्याशियों की पहली आधिकारिक सूची जारी की थी।

रेवड़ियों की बारिश भी बेअसर

हर कोई जानता है कि महायुति सरकार कुछ महीनों से रेवड़ियां बरसा रही है। लाडकी-बहीण योजना के तहत 4.6 करोड़ महिला मतदाताओं में से 40 प्रतिशत को नकद राशि हस्तांतरित करने के अलावा 7.5 हॉर्स पावर तक के पंप इस्तेमाल करने वाले 44 लाख किसानों के बिजली बिल माफ करके किसानों को लुभाने की कोशिश की गई। कपास और सोयाबीन की गिरती कीमतों के मद्देनजर सरकार ने एमएसपी और बाजार मूल्य के बीच का अंतर पाटने के लिए प्रति हेक्टेयर पांच हजार रुपये अनुदान देने की घोषणा की। प्याज उत्पादकों को निर्यात शुल्क घटाकर लुभाया गया जिससे अगले सीजन के बाद घरेलू प्याज की कीमतों में उछाल की उम्मीद है।

मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया जो 2013 से केन्द्र सरकार के पास लंबित मांग थी। यह शिकायत दूर करने के लिए कि डबल इंजन सरकार निवेश और उद्योगों को गुजरात ले जा रही है, राज्य सरकार ने विश्व आर्थिक मंच के क्लॉस श्वाब को आमंत्रित किया और डब्ल्यूईएफ के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया। श्वाब ने मुंबई महानगर क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को 300 मिलियन डॉलर तक बढ़ाने में मदद का वादा किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सार्वजनिक रूप से कहा कि वह चाहते हैं कि मुंबई वैश्विक वित्तीय गतिविधि का केन्द्र बने।

लेकिन इस तरह की नौटंकी मराठा मतदाताओं की बीजेपी विरोधी छवि को नहीं मिटा सकेगी। बेरोजगारी और महंगाई लगातार बढ़ रही है। महिला मजदूरों के कपास की कटाई के लिए नहीं आने से मजदूरी की लागत बढ़ गई है जिसका किसानों पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। महिलाओं को नकद हस्तांतरण कोई बड़ा बदलाव नहीं ला सकता। न ही सब्सिडी ही कारगर साबित होगी क्योंकि किसान लगातार बढ़ती लागत और कम बाजार कीमतों से जूझ रहे हैं।

चुनाव आयोग के दोहरे मापदंड

झारखंड के पुलिस महानिदेशक अनुराग गुप्ता को उनके कथित राजनीतिक पक्षपात के कारण बदलने का चुनाव आयोग का निर्देश और साथ ही राजनीतिक रूप से पक्षपाती रश्मि शुक्ला को महाराष्ट्र के डीजीपी पद से हटाने से इनकार करना एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। शुक्ला को देवेंद्र फडणवीस का करीबी माना जाता है। उन पर बीजेपी के भीतर विपक्षी नेताओं और फडणवीस के प्रतिद्वंद्वियों के फोन टैप करने का आरोप लगाया गया था। कांग्रेस ने आयोग से चुनाव तक शुक्ला को डीजीपी के पद से निलंबित करने का आग्रह किया था ताकि निष्पक्षता सुनिश्चित हो सके। इस बाबत पूछे जाने पर मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने अजीब बचाव करते हुए कहा कि चूंकि शुक्ला की वरिष्ठता यूपीएससी द्वारा निर्धारित की गई थी, इसलिए उन्हें बदला नहीं जा सकता। वरिष्ठता कब से प्रतिरक्षा निर्धारित करती है?

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