मेरठ। चुनाव से पहले ही समाजवादी पार्टी व राष्ट्रीय लोकदल के बीच गठबंधन में बिखराव के संकेत मिलने लगे हैं। दोनों ही पार्टियों के लिए मेरठ की सिवालखास सीट प्रतिष्ठा बन गई है। सपा यहां से पूर्व विधायक गुलाम मोहम्मद को प्रत्याशी बनाना चाहती है। जबकि रालोद इस सीट पर जाट उम्मीदवार उतारना चाहती है।
बागपत जिले से सटी सिवालखास विधानसभा को लेकर आरएलडी के लिए प्रतिष्ठा बन चुकी है। मेरठ में शहर सीट और किठौर सीट पर समाजवादी पार्टी पहले ही मुस्लिम प्रत्याशी उतार चुकी है। जबकि आरएलडी के खाते में एक भी सीट नहीं मिली है। ऐसे में यदि सपा ने इस सीट पर भी मुस्लिम को टिकट दिया तो आरएलडी के लिए मेरठ में जाट प्रत्याशी का विकल्प खत्म हो जाएगा।
सिवालखास व सरधना चाहती थी आरएलडी
आरएलडी के नेता मेरठ की दो सीट अपने खाते में चाहते थे। इनमें सबसे पहले सिवालखास सीट और दूसरी सीट सरधना। सरधना सीट पर सपा ने अखिलेश यादव के करीबी अतुल प्रधान को प्रत्याशी बना दिया। अतुल प्रधान गुर्जर हैं और दो बार भाजपा के संगीत सोम से चुनाव हार चुके हैं। जिसके बाद लोकदल सिवालखास सीट के लिए लड़ाई लड़ रही है। लोकदल मेरठ में जाटलैंट की सिवालखास को प्रतिष्ठा बनाए हुए। यदि सिवालखास लोकदल से छिटकती है, तो मेरठ की छह सीटों पर जाट बिरादरी भी गठबंधन से खिसक सकती है। यही सीट है जिस पर लोकदल एक जाट प्रत्याशी के सहारे मेरठ में जाटों को साध सकती है।
2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जाट और मुस्लिमों में बिखराव हुआ। जिसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में भाजपा ने हिंदु वोटों के सहारे एक तरफ जीत हासिल की। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी लोकदल को सिर्फ छपरौली सीट पर ही जीत से संतोष करना पड़ा। अब जब लोकदल व सपा में गठबंधन हुआ है तो लोकदल व सपा जाट व मुस्लिमों को एक साथ लाने का प्रयास कर रही हैं।
मेरठ में सपा पूर्व कैबिनेट मंत्री शाहिद मंजूर को किठौर सीट, सपा विधायक रफीक अंसारी को शहर सीट, सपा नेता अतुल प्रधान को सरधना सीट, पूर्व विधायक व महापौर पति योगेश वर्मा को सपा हस्तिनापुर से प्रत्याशी बना चुकी है। दक्षिण सीट मुस्लिमों का गढ़ और कैंट भाजपा का गढ़ है। ऐसे में आरएलडी को एक भी सीट नहीं मिली है।भाजपा इसका पूरा फायदा उठाना चाहती है। भाजपा ने सिवालखास पर जाट प्रत्याशी को उतारा है।