डॉ. वेदप्रताप वैदिक
कल मास्को में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की बातचीत चीन के रक्षामंत्री वी फंगहे के साथ हुई। अगले हफ्ते दोनों देशों के विदेश मंत्री मिलकर बात करनेवाले हैं। पहले भी फोन पर उनकी बात हुई है। पिछले पांच दिनों से दोनों देशों के फौजी अफसर भी चुशूल में बैठकर बात कर रहे हैं।
बातचीत के लिए चीन की तरफ से पहल हुई है, इससे क्या साबित होता है? एक तो यह कि भारत ने पेंगांग झील के दक्षिण में पहाड़ियों पर जो कब्जा किया है, उससे चीन को पता चल गया है कि उसी की तरह भारत भी जवाबी कार्रवाई कर सकता है। दूसरा, आजकल अमेरिका चीन से इतना गुस्साया हुआ है कि उसके विदेश और रक्षामंत्री लगभग रोज़ ही उसके खिलाफ बयान दे रहे हैं। इन बयानों में वे लद्दाख में हुई चीनी विस्तारवाद की हरकत का जिक्र जरूर करते हैं।
तीसरा, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, जापान और भारत का जो चौगुटा बना है, वह अब सामरिक दृष्टि से भी सक्रिय हो रहा है। चीन के लिए यह कई दृष्टियों से नुकसानदेह है। चौथा, भारत ने गलवान-घाटी हत्याकांड की वजह से चीनी माल, एप्स और कई समझौतों का बहिष्कार कर दिया है। भारत की देखादेखी अमेरिका और यूरोप के भी कुछ राष्ट्र इसी तरह का कदम उठाने जा रहे हैं। वे चीन में लगी अपनी पूंजी भी वापस खींच रहे हैं।
दूसरे शब्दों में कोरोना और गलवान, ये दोनों मिलकर चीन की खाल उतरवा सकते हैं। इसीलिए चीन अब अपनी अकड़ छोड़कर बातचीत की मुद्रा धारण कर रहा है, हालांकि भारतीय सेना-प्रमुख ने लद्दाख का दौरा करने के बाद कहा है कि सीमांत की स्थिति बहुत नाजुक और गंभीर है।
इस मामले में मेरी राय यह है कि दोनों तरफ से अब प्रयत्न यह होना चाहिए कि वे किसी भी नए क्षेत्र पर कब्जा करने की कोशिश न करें और वे बात सिर्फ गलवान घाटी के आसपास की ही न करें बल्कि 3500 किमी की संपूर्ण वास्तविक नियंत्रण रेखा को स्पष्ट रूप से चिन्हित और निर्धारित करने की बात करें।
यह बात तभी हो सकती है जबकि नरेंद्र मोदी और शी चिन फिंग, दोनों इसे हरी झंडी दे दें। यह नियंत्रण रेखा इतनी अवास्तविक है कि हर साल इसे हमारे और चीनी सैनिक 300 या 400 बार लांघ जाते हैं।
पिछले कई दशकों से इस अपरिभाषित सीमा पर जैसी शांति बनी हुई थी, उसका उदाहरण मैं अपनी मुलाकातों में हमेशा पाकिस्तानी राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों और सेनापतियों को देता रहा हूं।
हमें किसी भी महाशक्ति के उकसावे में आकर कोई ऐसा कदम नहीं उठाना चाहिए, जिससे परमाणु संपन्न पड़ोसी आपस में भिड़ जाएं।
(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।)