यादें… यूं ही नहीं फ्लाइंग सिख कहलाते थे भारत का परचम लहराने वाले मिल्खा सिंह

नई दिल्ली। एथलेटिक्स में भारत का परचम लहराने वाले धावक मिल्खा सिंह यूं नहीं फ्लाइंग सिख कहलाते थे। यूं तो मिल्खा ने भारत के लिए कई पदक जीते, लेकिन रोम ओलंपिक में उनके पदक से चूकने की कहानी लोगों को आज भी याद है। लेकिन अब यह फ्लाइंग सिख हमारे बीच नहीं दिखेगा, क्योंकि लगभग 30 दिन तक कोरोना से लड़ाई लड़ने के बाद ये योद्धा जिंदगी की जंग हार गया। आइए जानते हैं आजाद भारत का पहला गोल्ड मेडल जीतने वाले मिल्खा सिंह के ‘फ्लाइंग सिख’ कहलाने की कहानी…

1958 ओलंपिक मेें इतिहास रचने वाले मिल्खा सिंह ने दूसरी बार 1960 के ओलंपिक में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। ये उनकी काफी चर्चित रेस रही। इस रेस में फ्लाइंग सिख कांस्य पदक से चूक गए थे। वे तब चौथे स्थान पर रहे मगर उनका 45.73 सेकंड का ये रिकॉर्ड अगले 40 साल तक नेशनल रिकॉर्ड रहा।

तीसरे स्थान पर रहकर दक्षिण अफ्रीका के मैल्कम स्पेंस ने ब्रॉन्ज जीता था। इस रेस में 250 मीटर तक मिल्खा पहले स्थान पर भाग रहे थे, लेकिन इसके बाद उनकी गति कुछ धीमी हो गई और बाकी के धावक उनसे आगे निकल गए थे। खास बात ये है कि 400 मीटर की इस रेस में मिल्खा उसी एथलीट से हारे थे, जिसे उन्होंने 1958 कॉमनवेल्थ गेम्स में हराकर स्वर्ण पदक जीता था।

बता दें कि रोम ओलंपिक में मिल्खा सिंह पांचवीं हीट में दूसरे स्थान पर आए। क्वार्टरफाइनल और सेमीफाइनल में भी उनका स्थान दूसरा रहा। मगर लोगों को उम्मीद तो पदक से थी, लेकिन वो ऐसा करने में नाकाम रहे। हालांकि, पदक हारने के बाद भी मिल्खा को दर्शकों का खूब साथ मिला। इससे पहले सारी दुनिया ये उम्मीद लगा रही थी कि रोम ओलंपिक में कोई अगर 400 मीटर की दौड़ जीतेगा तो वो भारत के मिल्खा सिंह होंगे।

एक इंटरव्यू में मिल्खा ने कहा था, ‘जब भी मैं स्टेडियम में दाखिल होता था, सारा स्टेडियम बेस्ट विशेज से गूंज उठता था। लोग कहते थे कि ये साधू है क्योंकि इससे पहले उन्होंने सरदार देखा नहीं था। वो कहते थे कि इसके सिर पर जो जूड़ा है, साधुओं की तरह है।’

1958 कॉमनवेल्थ गेम्स में ऐतिहासिक जीत से ज्यादा लोगों को रोम ओलंपिक में मिली हार का गम था। इस ओलंपिक के दौरान मिल्खा सिंह का नाम अंजान था। मगर पंजाब के एक साधारण लड़के ने बिना किसी खास ट्रेनिंग के दक्षिण अफ्रीका के मैल्कम स्पेंस को पछाड़ते हुए इतिहास रच दिया था। मिल्खा ने कॉमनवेल्थ गेम्स में आजाद भारत का पहला गोल्ड मेडल अपने नाम किया था।

साल 1960 में मिल्खा सिंह ने पाकिस्तान में इंटरनेशनल एथलीट कंपीटशन में भाग लेने से इनकार कर दिया था। असल में वो दोनों देशों के बीच के बंटवारे की घटना को नहीं भुला पाए थे। इसलिए पाकिस्तान के न्योते को ठुकरा दिया था। हालांकि, बाद में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें समझाया कि पड़ोसी देशों के साथ मित्रतापूर्ण संबंध बनाए रखना जरूरी है।

इसके बाद उन्होंने अपना मन बदल लिया। पाकिस्तान में इंटरनेशनल एथलीट में मिल्खा सिंह का मुकाबला अब्दुल खालिक से हुआ। यहां मिल्खा ने अब्दुल को हराकर इतिहास रच दिया। इस जीत के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने उन्हें ‘फ्लाइंग सिख’ की उपाधि से नवाजा।

अब्दुल खालिक को हराने के बाद उस समय के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान मिल्खा सिंह से कहा था, ‘आज तुम दौड़े नहीं उड़े हो। इसलिए हम तुम्हे फ्लाइंग सिख के खिताब से नवाजते हैं।’ इसके बाद से मिल्खा सिंह को पूरी दुनिया में ‘फ्लाइंग सिख’ के नाम से जाना जाने लगा।

कभी कभार जब उनसे 80 दौड़ों में से 77 में मिले अंतरराष्ट्रीय पदकों के बारे में पूछा जाता था तो वे कहते थे, ‘ये सब दिखाने की चीजें नहीं हैं, मैं जिन अनुभवों से गुजरा हूं उन्हें देखते हुए वे मुझे अब भारत रत्न भी दे दें तो मेरे लिए उसका कोई महत्व नहीं है।’

बता दें कि आज की तारीख में भारत के पास बैडमिंटन से लेकर शूटिंग तक में वर्ल्ड चैंपियन है। बावजूद इसके ‘फ्लाइंग सिख’ मिल्खा सिंह की ख्वाहिश अधूरी है। उनका कहना है कि वे दुनिया छोड़ने से पहले भारत को एथलेटिक्स में ओलंपिक मेडल जीतते देखना चाहते हैं।

एक इंवेंट के दौरान मिल्खा सिंह ने कहा था, ‘मैं आज जहां भी जाता हूं वहां बच्चे क्रिकेट खेलते दिखते हैं। हमने बैडमिंटन, कुश्ती और कुछ अन्य खेलों को छोड़कर बाकी खेलों में कभी भी अच्छा प्रदर्शन नहीं किया। मैं चाहता हूं कि सरकार एथलेटिक्स जैसे खेलों को आगे बढ़ाए। मेरी आखिरी ख्वाहिश है कि जो गोल्ड मेडल मुझसे रोम ओलंपिक में गिर गया था, वह मेडल कोई भारतीय जीते। मैं दुनिया छोड़ने से पहले भारत को ओलंपिक में एथलेटिक्स में गोल्ड मेडल जीतते देखना चाहता हूं।

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