यूएई। यूक्रेन-रूस युद्ध ने यूरोप के साथ ही साथ मध्य पूर्व के देशों को भी चिंता में डाल दिया है। रूस पर सीधे तौर पर निर्भर ये देश न तो खुलकर उसका समर्थन कर पा रहे हैं और न ही पश्चिमी ताकतों के साथ खड़े हो पा रहे हैं। मध्य पूर्व के देशों को डर है कि, कहीं रूस के साथ उनके संबंध खराब न हो जाएं और उन्हें पुतिन की नाराजगी का सामना करना पड़े।
दरअसल, ये देश रूस से बड़ी मात्रा में तेल, गैस के साथ अन्य वस्तुओं का आयात करते हैं। यूरोप द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के कारण इन वस्तुओं की सप्लाई में फर्क पड़ रहा है। ऐसे में मध्य पूर्व के देशों का भी आर्थिक संतुलन बिगड़ता जा रहा है, लेकिन रूस के प्रति निर्भरता के कारण ये देश खुलकर इसका विरोध नहीं कर पा रहे हैं। सीरिया और ईरान को छोड़कर अन्य सभी देशों, जिन्होंने ने भी रूस का समर्थन किया और नाटो को युद्ध के लिए जिम्मेदार बताया, वे सभी देश मध्य एशिया के ही हैं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, फिनलैंड, लातविया, एस्टोनिया, बुल्गारिया, स्लोवाकिया, क्रोएशिया और चेक गणराज्य ने 2020 में कुल खपत की लगभग दो-तिहाई से अधिक गैस रूस से आयात की थी। वहीं जर्मनी, ऑस्ट्रिया, ग्रीस, इटली, लिथुआनिया, पोलैंड, हंगरी और स्लोवेनिया अपनी 40 प्रतिशत से अधिक गैस के लिए रूस पर निर्भर रहे। ऐसे में अमेरिकी प्रतिबंधों से नाराज होकर अगर रूस गैस आपूर्ति में कटौती करता है, तो सभी देशों को एक बड़े ऊर्जा संकट का सामना करना पड़ेगा।
यूएई, कतर और सऊदी अरब ने खींचे हाथ
रूस पर प्रतिबंधों के बाद यूरोप के साथ अमेरिका भी ऊर्जा संकट के मुहाने पर खड़ा है। तेल और गैस की कीमतों में भारी इजाफा हो रहा है। ऐसे में यूरोपीय संघ के साथ अमेरिका ने भी सुयंक्त अरब अमीरात, कतर और सऊदी अरब जैसे तेल उत्पादक देशों से उत्पादन बढ़ाने को कहा था, जिससे यूरोप और अमेरिका की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके। हालांकि, तीनों ही देशों ने तेल उत्पादन बढ़ाने से इंकार कर दिया है। साथ ही पेट्रोलियम पदार्थ उत्पादित करने वाले देशों के संगठन ‘ओपेक’ के नियमों में किसी बदलाव की संभावना से भी इंकार कर दिया है।