यूपी के डेढ़ लाख शिक्षा मित्रों को फिर निराश होना पड़ेगा। हाल फिलहाल उनका न तो मानदेय बढ़ेगा, न ही परमानेंट किया जाएगा। विधानसभा के शीतकालीन सत्र में 17 दिसंबर को सपा विधायक पंकज मलिक ने शिक्षा मित्रों के मानदेय बढ़ाने और उन्हें नियमित करने का सवाल उठाया था।
सरकार की ओर से बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संदीप सिंह ने जवाब दिया कि मानदेय बढ़ाने या नियमित करने का अभी कोई विचार नहीं है।
मानदेय नहीं बढ़ने और अन्य कारणों से अब तक करीब 20 हजार शिक्षा मित्र नौकरी छोड़ चुके हैं। 2017 में इनकी संख्या 1.75 लाख थी, अब 1.48 लाख है। विधानमंडल के सत्र में कमोबेश दोनों सदनों में शिक्षा मित्रों के मानदेय बढ़ाने और उन्हें नियमित करने का मुद्दा विपक्ष की ओर से उठाया जाता है।
प्राथमिक शिक्षा की अहम कड़ी हैं शिक्षामित्र प्रदेश के परिषदीय स्कूलों में करीब 1.48 लाख शिक्षामित्र हैं। प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षक छात्र अनुपात 1:30 होना चाहिए। शिक्षामित्रों की संख्या के कारण ही परिषदीय स्कूलों में यह अनुपात 1:22 है। शिक्षामित्रों की संख्याबल के कारण ही शिक्षा मंत्री संदीप सिंह ने कहा कि फिलहाल सहायक टीचर भर्ती की आवश्यकता नहीं है।
शिक्षामित्रों के संख्या बल की ताकत को देखते हुए भाजपा ने विधानसभा चुनाव 2017 के संकल्प पत्र में शिक्षामित्रों की समस्या के विधिक समाधान का वादा भी किया था।
न्यूनतम मजदूरी से भी कम है मानदेय केंद्र सरकार उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में छह महीने की औसत वृद्धि के आधार पर न्यूनतम मजदूरी तय करती है। 2017 में श्रमिकों की न्यूनतम औसत मजदूरी 176 रुपए थी। इसी साल सरकार ने कुशल श्रमिकों की न्यूनतम औसत मजदूरी को बढ़ाकर 1035 रुपए प्रतिदिन किया है। बढ़ी हुई दर 1 अक्टूबर 2024 से लागू हो गई है।
25 जुलाई 2017 को हुआ समायोजन रद्द यूपी में 2001 से शिक्षामित्रों की नियुक्ति शुरू हुई थी। सपा की सरकार ने 2013-14 में 1.78 लाख शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक के पद पर समायोजित किया था। जिनका समायोजन नहीं हुआ उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में इसके खिलाफ याचिका दायर की।
हाईकोर्ट ने 12 सितंबर 2015 को इन शिक्षामित्रों का समायोजन रद्द करने का आदेश दिया। सपा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। 25 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए शिक्षामित्रों का समायोजन रद्द कर दिया।
कमेटी की रिपोर्ट भी नहीं साझा हुई उत्तर प्रदेश दूरस्थ बीटीसी शिक्षक संघ के अध्यक्ष अनिल यादव का कहना है कि सरकार ने तत्कालीन डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा की अध्यक्षता में कमेटी बनाई थी। कमेटी को शिक्षा मित्रों का मानदेय बढ़ाने सहित अन्य समस्याओं के समाधान पर रिपोर्ट देनी थी। कमेटी की रिपोर्ट अभी तक साझा नहीं की गई है।
सहायक अध्यापक से फिर शिक्षामित्र बना दिए गए 25 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश से एक साथ 1.78 लाख सहायक अध्यापक फिर शिक्षामित्र बना दिए गए। 50 हजार रुपए वेतन पाने वाले फिर 3500 रुपए महीने के मानदेय पर आ गए।
इसके खिलाफ प्रदेश भर से आए शिक्षामित्रों ने लखनऊ में गोमती के तट पर बड़ा आंदोलन किया। आंदोलन के बाद सरकार ने शिक्षामित्रों का मानदेय 3500 से बढ़ाकर 10 हजार रुपए महीने करने की घोषणा की।
शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक भर्ती में वरीयता देने के लिए 68,500 सहायक अध्यापक भर्ती की घोषणा भी की।
शिक्षामित्रों को आयु सीमा के साथ 25 बोनस अंक भी दिए गए। उसके बाद 2019 में फिर 69,000 सहायक अध्यापक भर्ती की घोषणा की। इसमें भी शिक्षामित्रों को आयु सीमा में छूट के साथ बोनस अंक दिए गए। दोनों भर्ती में करीब 13 हजार से अधिक शिक्षामित्र सहायक अध्यापक बने।
‘नियमावली बनाकर स्थायी करे सरकार’ उत्तर प्रदेश दूरस्थ बीटीसी शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अनिल यादव का कहना है कि शिक्षामित्र लगातार सरकार से मानदेय बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। सात साल में एक भी रुपए मानदेय नहीं बढ़ा है। लेकिन सरकार ध्यान नहीं दे रही है। अब तक करीब 2700 से अधिक शिक्षा मित्रों की मौत हो चुकी है। वहीं गरीबी से तंग आकर 30 से ज्यादा शिक्षामित्रों ने आत्महत्या की है।
हर साल बढ़ना चाहिए मानदेय शिक्षक एमएलसी उमेश द्विवेदी का कहना है कि जब एक सामान्य सरकारी कर्मचारी का वर्ष में दो बार महंगाई भत्ता बढ़ता है तो शिक्षामित्रों का मानदेय क्यों नहीं बढ़ाया जा रहा है। महंगाई की मार तो शिक्षामित्र भी झेल रहे हैं। आज के समय में मात्र 10 हजार रुपए महीने में परिवार का पालन पोषण करना किसी के लिए भी संभव नहीं है।