रक्षा सौदों की ​ऑफसेट पॉलिसी में किया गया बदलाव

​​नई दिल्ली।​ ​​​​फ्रांस के साथ राफेल सौदे में ऑफसेट पॉलिसी पूरी न होने पर ​नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ​के सवाल खड़े किये जाने के बाद सोमवार को जारी की गई ​नई ​​रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया ​(​​डीएपी)-2020 ​में ​​​इस व्यवस्था को बदल दिया गया है​। ​​नई गाइडलाइंस ​इस तरह की बनाई गई है कि अब सरकार-से-सरकार, अंतर-सरकार और एकल विक्रेता ​से ​रक्षा ​खरीद ​में ​​​​​​ऑफसेट पॉलिसी ​लागू नहीं ​होगी।​​​

नई डीएपी-2020 बनाने के लिए अगस्त 2019 में महानिदेशक (अधिग्रहण) अपूर्वा चंद्रा की अध्यक्षता में मुख्य समीक्षा समिति के गठन को मंजूरी दी थी। इसके बाद विभिन्न एजेंसियों से मिले सुझावों का विश्लेषण करने के बाद कई लोगों से व्यक्तिगत रूप से और वेब कॉन्‍फ्रेंस के माध्यम से संवाद भी किए गए, ताकि उनकी चिंताओं के बारे में अच्‍छी तरह से समझा जा सके। अब इसके बाद मसौदे को फाइनल करके जारी किया गया है।

अपूर्वा चंद्रा ने सोमवार को कहा कि हमने ​ऑफसेट पॉलिसी के दिशा-निर्देशों में बदलाव किए हैं। अब ऐसी व्यवस्था की गई है जिसमें सरकार से सरकार, एकल-विक्रेता और आईजीए सौदों में ऑफसेट पॉलिसी नहीं लागू होगी। नई रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी)-2020 के अनावरण मौके पर चंद्रा ने स्पष्ट किया कि अन्य रक्षा सौदों के संबंध में एक ऑफसेट नीति होगी। ​

दरअसल नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने मानसून सत्र के दौरान डिफेंस ऑफसेट पॉलिसी पर संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा गया है कि फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट एविएशन से 59 हजार करोड़ रुपये में 36 राफेल विमानों की डील करते समय ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट में डीआरडीओ को कावेरी इंजन की तकनीक देकर 30 प्रतिशत ऑफसेट पूरा करने की बात तय हुई थी लेकिन अभी तक यह वादा पूरा नहीं किया गया है।

फ्रांस के साथ 36 विमानों की डील 59 हजार करोड़ रुपये में की गई थी। भारत की ऑफसेट पॉलिसी के मुताबिक विदेशी कंपनियों को अनुबंध का 30 प्रतिशत हिस्सा भारत में रिसर्च या उपकरणों पर खर्च करना होता है। पुरानी ​रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया में रक्षा मंत्रालय ने यह ऑफसेट नीति विदेशी कंपनियों से 300 करोड़ रुपये से ज्यादा के रक्षा सौदों के लिए बनाई थी जिसे ​डीएपी-2020 में बदल दिया गया है।

कैग रिपोर्ट के मुताबिक ​राफेल सौदे के अलावा ​​2015 से लेकर अब​ ​तक​ ​​काफी ऐसे मसले हैं जिनमें ​ऑफसेट पॉलिसी​ ​का पालन नहीं हुआ है​।​ ​रिपोर्ट में ​यह भी ​कहा ​​गया कि ​​ऑफसेट का समझौता पूरा ​न होने पर ​​पॉलिसी में ऐसा कुछ भी नियम नहीं है जिसके मुताबिक विदेशी कंपनी पर कोई जुर्माना लगाया जा सके​​​।​

​2005 से 2018 तक विदेशी कंपनियों से 66 हजार करोड़ रुपये के कुल 46 ऑफसैट साइन हुए​​।​ इनमें से 90 फीसदी मामलों में कंपनियों ने ऑफ​सेट के बदले में सिर्फ सामान खरीदा है, किसी भी केस में टेक्नॉलॉजी ट्रांसफर नहीं ​की गई ​है​।

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