नई दिल्ली. रघुवंश प्रसाद सिंह राष्ट्रीय जनता दल का सवर्ण चेहरा थे, लेकिन उनकी पैठ समाज के हर वर्ग में बराबर थी. सादगी उनकी पहचान थी. लालू यादव की तरह बेबाक थे. आम लोगों को बहुत आसानी से उपलब्ध हो जाते थे. वह बिहार के कैबिनेट मंत्री रहे हों या फिर केन्द्रीय मंत्री लेकिन उनके दरवाज़े सभी के लिए खुले रहते थे. उन्हें जानने वालों में भी उन लोगों की संख्या बहुत कम थी जो यह जानते हों कि रघुवंश प्रसाद सिंह राजनीति में आने से पहले गणित के प्रोफ़ेसर थे.
रघुवंश प्रसाद सिंह ने बीएससी के बाद गणित विषय लेकर एमएससी किया और बिहार यूनीवर्सिटी से पीएचडी किया. वर्ष 1969 से 1974 तक सीतामढ़ी के गोयनका कालेज में गणित के प्रोफ़ेसर थे. शिक्षक आन्दोलन के ज़रिये चर्चा में आये रघुवंश प्रसाद सिंह के भीतर छुपी राजनीति को कर्पूरी ठाकुर ने पहचाना. वही उन्हें राजनीति में लाये.
32 साल पहले वह लालू प्रसाद यादव से जुड़े तो उनके साथ छाया की तरह रहे. लालू की राजनीति से लेकर उनके पारिवारिक फैसलों तक में रघुवंश प्रसाद सिंह की राय शामिल रहती थी. लालू के साथ लगातार रहते हुए भी रघुवंश प्रसाद सिंह ने अपनी पहचान और अपने व्यक्तित्त्व को लालू से अलग रखा. लालू प्रसाद यादव की मौजूदगी में भी वह बेबाकी से अपनी बात कह देते थे. वह बात कई बार लालू की सोच के विपरीत होती थी लेकिन लालू प्रसाद यादव के लिए रघुवंश प्रसाद सिंह इतने ख़ास थे कि वह कभी विरोध नहीं करते थे.
राष्ट्रीय जनता दल के सम्बन्ध में कोई फैसला लेना हो या फिर सरकार चलाने को लेकर कोई बात तय करनी हो तो उसमें लालू यादव और रघुवंश प्रसाद सिंह दोनों की राय ज़रूरी होती थी. बीते बत्तीस सालों में यह पहली बार हुआ कि रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के बाहुबली सांसद रामा सिंह को राष्ट्रीय जनता दल में शामिल करने का फैसला लालू के बेटों ने तब लिया जब लालू जेल में थे और रघुवंश प्रसाद सिंह के विरोध को तरजीह नहीं दी गई तो रघुवंश प्रसाद सिंह ने पार्टी का उपाध्यक्ष पद छोड़ दिया. उन्होंने कहा कि वह राजद भी छोड़ सकते हैं. इस पर तेज प्रताप सिंह ने कहा कि राजद समुद्र है. उसमें से एक लोटा पानी निकल जाता है तो क्या फर्क पड़ेगा.
तेज प्रताप की यह बात रघुवंश प्रताप सिंह को इतने गहरे तक चुभ गई कि उन्होंने वाकई राष्ट्रीय जनता दल से इस्तीफ़ा दे दिया. तेज प्रताप को हालांकि लालू यादव ने उस बयान पर डांटा भी था लेकिन रघुवंश ने लालू यादव को भेजे इस्तीफे में लिखा कि जननायक कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद 32 साल तक आपके पीछे खड़ा रहा, लेकिन अब नहीं. पार्टी नेता, कार्यकर्त्ता और आम जन ने बड़ा स्नेह दिया. कृपया क्षमा करें.
इस्तीफ़ा देखते ही लालू यादव ने उसे नामंजूर करते हुए लिखा कि आप कहीं नहीं जा रहे हैं. लालू ने जिस अधिकार के साथ रघुवंश प्रसाद सिंह का इस्तीफ़ा नामंजूर किया था उससे लगा था कि रघुवंश मान जायेंगे और कहीं नहीं जाएंगे लेकिन सिर्फ तीन दिन बाद रघुवंश प्रसाद सिंह ने दुनिया को ही अलविदा कह दिया.
रघुवंश प्रसाद सिंह सिर्फ 74 साल के थे. लालू प्रसाद यादव के साथ उनका दिल का रिश्ता था. गणित के प्रोफ़ेसर रहे रघुवंश प्रसाद सिंह का पहनावा ग्रामीण परिवेश वाला था. यही परिवेश उन्हें आम लोगों से जोड़े हुए था. उनके पास ज्ञान का भण्डार था. उनके पास मंत्रियों वाले नखरे नहीं थे. वह जिस विभाग की ज़िम्मेदारी संभालते थे उसके बारे खूब अध्ययन करते थे.
केन्द्रीय मंत्री रहने के दौरान बिहार में विकास की तमाम योजनायें लेकर वह गए. उन योजनाओं को अमली जामा पहनाने के लिए रघुवंश प्रसाद सिंह बिहार सरकार और सम्बंधित जिले के डीएम के सीधे सम्पर्क में रहते थे. वह चिट्ठी लिखकर आदेश भी देते थे और फोन कर यह भी पूछते रहते थे कि क्या प्रगति है.
रघुवंश प्रसाद सिंह कर्पूरी ठाकुर के साथ लम्बे समय तक जुड़े रहे. इसी वजह से कई बार उनके हाव-भाव कर्पूरी ठाकुर जैसे लगते थे लेकिन कई बार उनका अंदाज़ लालू यादव जैसा हो जाता था. कर्पूरी ठाकुर और लालू दोनों के अंदाज़ ही आम लोगों को पसंद हैं. रघुवंश सिंह की एक खासियत यह थी कि जनहित के मुद्दे पर वह पार्टी के मंच पर ही मुखर हो जाते थे. कई बार पार्टी लाइन के खिलाफ बोलने लगते थे, लेकिन लालू प्रसाद रघुवंश की बात का कभी बुरा नहीं मानते थे.
रघुवंश प्रसाद सिंह ने अचानक दुनिया को अलविदा कहा तो लालू चौंक गये. सच तो यह है चुनाव के ठीक पहले रघुवंश प्रसाद सिंह का जाना लालू प्रसाद यादव का बहुत बड़ा नुक्सान है. कोई समझे या न समझे लेकिन लालू के लिए तो इस नुक्सान की कोई भरपाई नहीं है.