मृगांक शेखर
भारत जोड़ो यात्रा के पहले और दूसरे फ़ेज के बीच राहुल गांधी लंदन दौरे पर हैं और विदेशी धरती से भी वो करीब करीब वही सारी बातें कह रहे हैं, जो देश भर में घूम घूम कर पूरे साल कहते रहते हैं. बीजेपी भी वैसे ही हमलावर है, जैसे हमेशा ही हुआ करती है। कभी कोई बीजेपी प्रवक्ता तो कभी कोई बीजेपी नेता, कभी कोई केंद्रीय मंत्री राहुल गांधी को अपने अपने तरीके से घेर रहा है और उसमें भी कोई नयी बात नजर आ रही हो, ऐसा नहीं लगता। सब कुछ करीब करीब रूटीन जैसा ही है।
भारत जोड़ो यात्रा और लंदन यात्रा में एक भौगोलिक फर्क है। एक तरफ देश की धरती से की गयी बातें हैं, देश की संसद में कही गयी बातें और दूसरी तरफ विदेशी धरती से कही जा रही बातें हैं। बीजेपी के हमले को विदेशी जमीन होने से थोड़ी धार मिल जा रही है – देश से बाहर देश की बुराई को लेकर राहुल गांधी लगातार निशाने पर हैं। कांग्रेस को फायदा तो हो रहा है, लेकिन नुकसान भी हो रहा है।
क्या ज्यादा है, और क्या कम ये आकलन तो कांग्रेस को ही करना होगा। कभी राहुल गांधी को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विदेशी मीडिया के सवाल पर जवाब की याद दिला कर नसीहत दी जा रही है। कभी सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के देश से बाहर भारत को एक ही नजरिये से पेश करने को लेकर, लेकिन राहुल गांधी को ऐसी बातों से कोई फर्क नहीं पड़ रहा है – वो अपने तरीके से बेरोक-टोक बढ़ते चले जा रहे हैं।
फर्क तो राहुल गांधी पर तब भी नहीं पड़ रहा है, जब उनको भारतीय मीडिया रिपोर्ट का जिक्र करते हुए ध्यान दिलाया जा रहा है। जाहिर है, राहुल गांधी की टीम उनको ऐसी चीजों को लेकर फीडबैक तो देती ही होगी। वैसे राहुल गांधी के ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करने वाले सैम पित्रोदा ही इस बार भी वैसी सी तन्मयता से जुटे हुए हैं। हो सकता है, सैम पित्रोदा को मीडिया रिपोर्ट की परवाह न हो, जब वो 1984 के दिल्ली के सिख दंगों को लेकर कह सकते हैं हुआ तो हुआ फिर ये भी समझ लेना चाहिये कि राहुल गांधी को वो किस तरह का फीडबैक दे होंगे?
अब तो तो कभी लगा भी नहीं कि राहुल गांधी को नफ़े नुकसान की कोई परवाह भी रही हो। एक बार जब वो कमिटमेंट कर लेते हैं तो किसी की सुनते ही कहां हैं? कैब्रिज लेक्चर को लेकर सैम पित्रोदा की तरफ से काफी सतर्कता बरती गयी थी। पूरा कार्यक्रम हो गया उसके बाद ही सैम पित्रोदा ने राहुल गांधी का लेक्चर सोशल मीडिया पर जारी किया। माना जा रहा था कि ये एहतियाती उपाय इसलिए किया गया था ताकि राजनीतिक विरोधी कोई छोटी सी वीडियो क्लिप शेयर कर नये सिरे से बवाल न मचायें, लेकिन जो घात लगा कर बैठा हो वो शिकार तो कर ही लेता है।
ये सब ऐसे वक्त हो रहा है जब कांग्रेस राहुल गांधी के लिए भारत जोड़ो यात्रा 2।० की तैयारी कर रही है। यात्रा का नया दौर पूरब से पश्चिम की तरफ प्लान किया जा रहा है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने बताया था कि भारत जोड़ो यात्रा का दूसरा दौर अरुणाचल प्रदेश के पासीघाट से शुरू होकर गुजरात के पोरबंदर तक का सफर तय करेगा। ये तो पहले ही बताया जा चुका है कि कन्याकुमारी से कश्मीर तक चली भारत जोड़ो यात्रा के बाद भी ऐसी यात्राएं होंगी, लेकिन वे छोटी हो सकती हैं।
फिर तो यात्रियों की संख्या भी कम हो सकती है। राहुल गांधी के बयानों का हवाला देकर बीजेपी अपनी तरफ से समझाने की कोशिश कर रही है कि लुक भले बदल जाये वो तो बिलकुल नहीं बदलने वाले बीजेपी नेताओं की तरफ से यहां तक कहा जा रहा है कि कम से कम अंतर्राष्ट्रीय मंच का तो वो ख्याल रखें क्योंकि वहां कोई उनको ‘पप्पू’ नहीं समझता। सियासी नसीहत तो ऐसे ही दी जाती है।
राहुल गांधी को खतरनाक बता कर बीजेपी अपने समर्थकों को वैसा ही मैसेज दे रही है जैसा 2०19 में देने की कोशिश रही – ये कह कर कि कांग्रेस और विपक्ष की बातों से पाकिस्तान में हेडलाइन बनती है। बीजेपी देश से बाहर, राहुल गांधी पर देश की छवि खराब करने का आरोप लगा रही है। राहुल गांधी की बातों को ही अपने तरीके से समझा कर बीजेपी लोगों को समझाने की कोशिश कर रही है कि क्यों बीजेपी ही देश की जरूरत है, और कांग्रेस क्यों नहीं?
राहुल गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना कर बीजेपी ये भी समझाने की कोशिश कर रही है कि क्यों मोदी ही देश के लिए सबसे अच्छे हैं और राहुल गांधी ‘खतरनाक’ हैं? कश्मीर पर राहुल गांधी के बयानों को भी बीजेपी अपने हिसाब से भुना रही है। वैसे भी एक आतंकवादी से मुलाकात का जिक्र कर राहुल गांधी ने मोदी सरकार की कश्मीर नीति को सर्टिफिकेट तो दे ही दिया है।
ये ठीक है कि राहुल गांधी लंदन जाकर भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस को लेकर बने माहौल को बनाये रखने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस को अगर फिर से कुछ हासिल करना है तो उसे सिर्फ माहौल बनाने भर से काम नहीं चलने वाला है। और माहौल भी कोई बहुत प्रभावी नहीं बन सका हो, अब तक ऐसा तो नहीं ही लगता है। माहौल इतना भर ही बन सका है कि कांग्रेस हेडलाइन से बाहर नहीं हुई है – लेकिन अगर बाउंसबैक की कोई छोटी सी भी ख्वाहिश है तो राहुल गांधी के ऐसे प्रयासों से भी कांग्रेस को बहुत कुछ नहीं मिलने वाला है।
कांग्रेस अब भी अपने बूते खड़ा हो पाने में सक्षम नहीं है। ऐसे में कांग्रेस को विपक्ष को साथ लेकर चलने में भी फायदा हो सकता है – लेकिन मुश्किल तो ये है कि वो कहीं भी ड्राइविग सीट छोड़ने को तैयार ही नहीं है। और राहुल गांधी भी तो इंसान ही हैं। गलती से मिस्टेक हो जाती है। पूरी बातचीत का अपना अर्थ होता है, लेकिन बीच से ली गयी एक छोटी सी क्लिप में असली मंशा साफ तौर पर समझ में नहीं आती।