‘रेसलर का सेक्शुअल हैरेसमेंट नहीं हो सकता, पॉलिटिकल कनेक्शन

नई दिल्ली। ओलिंपियन रेसलर साक्षी मलिक और विनेश फोगाट दिल्ली के जंतर-मंतर पर 26 दिन से प्रोटेस्ट कर रही हैं। मामला सेक्शुअल हैरेसमेंट से जुड़ा है, पॉक्सो एक्ट के तहत FIR दर्ज है, लेकिन आरोपी BJP नेता और WFI प्रेसिडेंट बृजभूषण शरण सिंह की अब तक गिरफ्तारी नहीं हो पाई। धार्मिक किताबों में कुश्ती को मल्लयुद्ध कहा जाता था, लेकिन औरतों के ये खेल खेलने का जिक्र कहीं नहीं है।

पहला जिक्र साल 1950 में मिलता है, जब UP के मिर्जापुर की रहने वाली हमीदा बानो ने मर्दों के टूर्नामेंट में कुश्ती लड़ना शुरू किया। उन्होंने अलीगढ़ आकर कुश्तियां लड़ीं और वे काफी मशहूर भी थीं। मैट रेसलिंग की बात करें, तो सोनिका कालीरमन को भारत की पहली महिला पहलवान माना जाता है।

सोनिका के पिता मास्टर चंदगीराम ने पहली बार लड़कियों के लिए दिल्ली में अखाड़ा शुरू किया था। खुद भी मशहूर पहलवान थे। उन्हें अर्जुन अवॉर्ड और पद्मश्री मिल चुका है। सोनिका की ट्रेनिंग इसी अखाड़े में हुई।

सवाल: WFI के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर 7 महिला पहलवानों ने यौन शोषण का आरोप लगाया है। इस आंदोलन में आप किस तरफ हैं?
सोनिका कालीरमन: मेरा आंदोलन करने वालों से कहना है कि रेसलिंग जैसे खेल की नाक मत कटवाइए। एक लड़की अगर एथलीट है, जो 100 मीटर का स्प्रिंट मार सकती है, वो एक आदमी को मैट में भी ठूंस सकती है। मैं नहीं मानती कि वो किसी आदमी से मोलेस्ट हो सकती है।

वो लड़की मर जाएगी, पिट जाएगी, लेकिन मोलेस्ट नहीं होगी। वो सेल्फ डिफेंस कर सकती है। एक एक्टिव स्पोर्ट्स गर्ल को कोई यूं ही टच नहीं कर सकता। कोई न कोई रीजन जरूर होगा। मैं किसी विशेष के बारे में नहीं कह रही हूं, लेकिन मैं खुद रेसलर हूं। रेसलिंग बहुत ताकत वाला खेल है। एक रेसलर का यौन शोषण नहीं हो सकता, कहीं न कहीं उसका कंसेंट रहा होगा।

सवाल: आपको क्या लगता है महिला पहलवानों का तरीका गलत है?
​​​​​​​सोनिका: अगर ऐसा हुआ है, तो सामने आना चाहिए था। आप शेरनियां हैं। अगर आप ही डरकर बैठ जाएंगीं, तो फिर आम लड़कियों का क्या होगा। उन लड़कियों और उनके पेरेंट्स को सामने आना चाहिए था। निर्भया के मामले में उसकी मां अड़कर खड़ी हो गई थीं। वह आज भी वैसे ही खड़ी हैं।

सवाल: रेसलर्स के विरोध प्रदर्शन से आपको दिक्कत है?
सोनिका: देखिए, धरना करने या झंडा उठाने से कुछ नहीं होगा। आपको प्रॉपर चैनल से शिकायत करनी चाहिए। कोच होता है, फिर सीनियर कोच होता है। फेडरेशन के अधिकारी होते हैं। ओलिंपिक एसोसिएशन होती है।

उन्होंने नहीं सुनी, तो कम से कम हर जगह थाने तो होते ही हैं। उस व्यक्ति को पकड़कर थाने ले जाना था। इससे केवल रेसलिंग का नुकसान हो रहा है। आप कह रहे हैं फेडरेशन खत्म कर दो। तो फिर फेडरेशन का काम कौन करेगा? कैंप इतने महंगे होते हैं कि उन्हें कोई पेंरेंट करा नहीं पाएगा। स्टेट, नेशनल, इंटरनेशनल तक जाने का रास्ता कैसे बनेगा।

सवाल: इससे तो रेसलिंग फेडरेशन सुधरनी चाहिए, आपके हिसाब से नुकसान क्या हुआ?
सोनिका: रेसलर का पूरा एक साल बर्बाद हो गया। कितने सारे टूर्नामेंट कैंसिल हो गए। अब गर्मी शुरू हो गई है, गर्मी में खेल होता नहीं। कम से कम एक साल पीछे चले गए। अगर इनका सजेशन है कि फेडरेशन भंग हो, तो किसी को आगे आना चाहिए।

फोगाट फैमिली या फिर पूनिया कहें कि वे लोग एक फोरम बनाएंगे। अगर कुछ हुआ, तो उसे ऐसे धरने से तो नहीं सुलझाया जा सकता। सारे अचीवमेंट के बाद इन्हें यह सब अचानक याद आया। इनका तो सब कुछ हो चुका, नए बच्चों का नुकसान है। मैं नहीं मानती, इन पहलवानों के साथ कोई कुछ करके चला गया। इसके पीछे पॉलिटिक्स तो है।

सवाल: आपने भी तो 1998 में अपने कोच पर यौन शोषण के आरोप लगाए थे?
सोनिका: मैंने आरोप लगाए थे, पर मीडिया में जो दिखाया जा रहा, वो सही नहीं है। 1999 में हमारा ग्रुप पहली बार पोलैंड गया था। हमने पहली बार कैडेट वर्ल्ड चैंपियनशिप में रिप्रेजेंट किया था। उस वक्त हरियाणा का एक कोच था, जिसके एक दूसरी खिलाड़ी के साथ कुछ मसले थे।

कोच हमारे कैंप में आता था, गाली देता था। भद्दी बातें बोलता था। मैं लौटी तो मैंने पिताजी से शिकायत की। उसके बाद काफी हंगामा हुआ। तब महासंघ के अध्यक्ष जीएस मंढेर थे। उन्हें हटना पड़ा। मैंने इसका खामियाजा भी झेला।

सवाल: किस खामियाजे की बात कर रही हैं?
सोनिका: मैं 2010 में अमेरिका से ट्रेनिंग के बाद इंडिया आई। उस वक्त तक फेडरेशन में मंढेर दोबारा आ चुके थे। उन्होंने मुझसे रिवेंज लिया। मैं उनसे मिलने गई तो उन्होंने कहा, ‘तुम तो सेलिब्रिटी हो, टीवी में आती हो। अमेरिका में रहती हो। अब तुम्हें क्या जरूरत है खेलने की।’

मेरे पिता का देहांत हो चुका था। कॉमनवेल्थ गेम्स में उस साल मुझे मौका नहीं मिला। 72 किलो वेट कैटेगरी के रेसलिंग कॉम्पिटिशन में एक भी मेडल देश को नहीं मिला। मैं इस कैटेगरी की बेस्ट पहलवान थी। दूसरे नंबर पर पंजाब की एक रेसलर थीं। उन पर डोपिंग का आरोप लग गया था। तीसरे और चौथे नंबर की रेसलर्स ने इंडिया को रिप्रेजेंट किया, दोनों हार गईं।

सवाल: ऐसी ही पॉलिटिक्स अब नहीं हो रही?
सोनिका: फेडरेशन चाहे तो एक रेसलर का करियर खत्म कर सकती है। यहां मामला बिल्कुल अलग है। ये जो लोग धरने पर हैं, वे क्रीम हैं। इन्हें अर्जुन अवॉर्ड, पद्म अवॉर्ड मिल चुका है। मतलब इनका डन है। अब इन्हें सब याद आया।

सवाल: क्या यह UP बनाम हरियाणा का झगड़ा भी है?
सोनिका: ये कैसे हो सकता है। हम देश के लिए खेलते हैं। नॉर्थ-ईस्ट में भी रेसलिंग है। UP-पंजाब में भी है। पहली अर्जुन अवॉर्डी अलका तोमर UP से हैं। रही कैंप की बात तो हमारे कैंप भी लखनऊ, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में लगते थे। महीनों हम पटियाला में पड़े रहते थे। सबसे ज्यादा सरकारी नौकरियां हरियाणा के रेसलर को मिली हैं। यह खेल देश का है, किसी स्टेट का नहीं।

सवाल: रेसलर कह रहे हैं बृजभूषण शरण सिंह का रेसलिंग बैकग्राउंड नहीं है, फेडरेशन का अध्यक्ष किसी पहलवान को होना चाहिए?
सोनिका: रेसलर का काम अलग है। फेडरेशन का अध्यक्ष पावरफुल और रीच वाला होना चाहिए। पॉलिटिकल कनेक्शन बेहद जरूरी हैं। उसे पैसा लाना है, पहलवानी नहीं करनी है। उसे एक ऑफिस क्रिएट करना है, जहां से इंटरनेशनल कम्युनिकेशन हो सके। आप धरने पर बैठे लोगों में से किसी को भी एक मेल करने को कह दो। दो लाइन नहीं लिख पाएंगे। उनका काम पहलवानी है, ऑफिस संभालना नहीं।

सवाल: पहलवानी शुरू की तो माहौल कैसा था?
सोनिका: मैंने 14 साल की उम्र में पहलवानी शुरू की थी। इससे पहले इस तरह का कोई खेल कभी नहीं था। हमारे सपने तो आम लड़कियों जैसे ही थे। मॉडल बनेंगे, सजना-धजना, लेकिन गुरुजी यानी पिताजी के मन में लड़कियों को दंगल कराने का प्लान था।

उन्होंने जब ये कहा तो कई शागिर्द ही उनके खिलाफ हो गए। सबका सवाल था कि लड़कियां दंगल कैसे करेंगीं। सबसे बड़ी बात अखाड़ों में हनुमानजी का वास होता है। वे ब्रह्मचारी हैं। वहां लड़कियां दंगल कैसे करेंगीं।

किसी ने पिताजी से कह दिया कि आपके घर में ही तीन लड़कियां हैं। वहीं से शुरू करो। पिताजी ने हमें उस वक्त की बड़ी खिलाड़ियों के फोटो दिखाए। वेटलिफ्टर कर्णम मल्लेश्वरी की तस्वीर दिखाकर उन्होंने पूछा था कि क्या तुम लोगों को कुछ नहीं करना। इनके जैसा नहीं बनना। फिर क्या, हम बन गए पहलवान।

सोनिका ने 2010 में रेसलिंग से संन्यास ले लिया था। इसके बाद अमेरिका बेस्ड बिजनेसमैन सिद्धार्थ मलिक से शादी की और वहीं सेटल हो गईं।
सोनिका ने 2010 में रेसलिंग से संन्यास ले लिया था। इसके बाद अमेरिका बेस्ड बिजनेसमैन सिद्धार्थ मलिक से शादी की और वहीं सेटल हो गईं।

सवाल: अखाड़े से क्या रिस्पॉन्स मिला, खेलने गईं तो क्या रिएक्शन था?
सोनिका: मिक्स था। हम पहले तो स्कूल से सीधा घर आते थे। शॉपिंग भी हमारे लिए मां ही करती थीं। अखाड़े के लड़कों को हिदायत थी कि जब हम स्कूल जाएं या आएं, वे नहाकर नंगे बदन बाहर न निकलें। लोग पहले लड़कियों की कुश्ती प्लेजर के लिए देखने आते थे।

उन्होंने लड़कों को जांघिया में देखा था। उनको लगता था कि देखें अब लड़कियां कैसे खेलेंगीं। उनके कपड़े कैसे होंगे। उनके दांव-पेंच कैसे होंगे। हरियाणा के पलवल में तो हम पर पत्थर तक फेंके गए। कुछ जगह बहुत अच्छा रिएक्शन भी मिला। कहीं कोई 10 रुपए देकर सिर पर हाथ फेरता था, कहीं कोई 5000 का इनाम देता था।

जहां से निकली पहली वुमन रेसलर, अब उस अखाड़े में कोई महिला पहलवान नहीं
दिल्ली के जंतर-मंतर पर महिला पहलवान धरने पर बैठी हैं, वहां से करीब 12 किलोमीटर दूर है चंदगीराम अखाड़ा। इसी जगह पहली बार महिलाओं को पहलवानी की ट्रेनिंग दी गई। इस अखाड़े का नाम दिग्गज पहलवान चंदगीराम के नाम पर है। सोनिका से बात करने के बाद, मैं यहां पहुंची तो अखाड़े की मैट पर ट्रेनिंग चल रही थी। ये चौंकाने वाला था कि अब यहां कोई महिला पहलवान ट्रेनिंग नहीं करती।

दिल्ली के सिविल लाइंस एरिया में मास्टर चंदगीराम के नाम से अखाड़ा चल रहा है। हरियाणा में हिसार के सिसाई गांव में जन्मे चंदगीराम ने हिंद केसरी, भारत भीम और रुस्तम-ए-हिंद का टाइटल जीता था।
दिल्ली के सिविल लाइंस एरिया में मास्टर चंदगीराम के नाम से अखाड़ा चल रहा है। हरियाणा में हिसार के सिसाई गांव में जन्मे चंदगीराम ने हिंद केसरी, भारत भीम और रुस्तम-ए-हिंद का टाइटल जीता था।

अखाड़े को WFI से मान्यता मिली है। यहां के कोच दीपक चहल से प्रोटेस्ट के बारे में पूछा तो सरकारी नौकरी का हवाला देकर बोलने से मना कर दिया। ऑफ द रिकॉर्ड ये भी बताया, ‘महिलाओं के लिए यहां सुविधाएं नहीं हैं, अब उन्हें यहां रखकर ट्रेनिंग देना मुमकिन ही नहीं।’

चंदगीराम अखाड़े में अभी सिर्फ लड़के ट्रेनिंग लेते हैं। सुविधाएं न होने से यहां महिला रेसलर्स नहीं हैं।

यहां चंदगीराम का स्टैच्यू लगा है, लेकिन सवाल है कि चंदगीराम की इस विरासत को आगे क्यों नहीं बढ़ाया गया। बेटी सोनिका कालीरमन का घर अखाड़े में ही है, लेकिन अब उनका परिवार वहां नहीं रहता। पता चला उनकी दादी घर पर हैं, उनके साथ सोनिका का छोटा भाई भी रहता है, लेकिन उन्होंने भी बोलने से मना कर दिया।

पुरानी पिच और कसरत के इक्विपमेंट्स धूल फांक रहे
हमने कोच से गुजारिश की कि हमें वो जगह दिखाएं, जहां सोनिका और उनकी दोनों बहनों ने पहलवानी की प्रैक्टिस शुरू की थी। कोच दीपक चहल ने बताया, ‘अखाड़े के बिल्कुल पीछे एक मिट्टी की पिच है। वहां अब प्रैक्टिस नहीं होती, लेकिन उसे याद के तौर पर जिंदा रखा गया है।’

इस पिच के सामने मोटे-मोटे रस्से टंगे थे। पिच पर रस्सी से बंधा एक भारी वजन पड़ा दिखा। पूछने पर पता चला कि पुराने समय में मिट्टी की पिच को बराबर करने के लिए इसी का इस्तेमाल होता था। इससे महिला या पुरुष दोनों पहलवान कसरत भी करते हैं।

चंदगीराम अखाड़े के पीछे बनी मिट्टी की पिच। अब पहलवान मैट पर प्रैक्टिस करते हैं, इसलिए पिच का इस्तेमाल नहीं होता।
चंदगीराम अखाड़े के पीछे बनी मिट्टी की पिच। अब पहलवान मैट पर प्रैक्टिस करते हैं, इसलिए पिच का इस्तेमाल नहीं होता।

दीपक हमें अखाड़े के पीछे खाली पड़ी जमीन पर ले गए। सूखे पत्ते और घास हटाई और वहां से पहिए जैसा कुछ निकाला। मुझसे कहा- ‘जरा हिलाइए। वह मुझसे नहीं हिला।’ मुस्कुराते हुए बताने लगे कि ‘इसे गले में डालकर सोनिका प्रैक्टिस करती थीं।’

पहिए जैसी दिखने वाली इसी चीज से सोनिका प्रैक्टिस करती थीं। इसका वजन करीब 35-40 किलो है।
पहिए जैसी दिखने वाली इसी चीज से सोनिका प्रैक्टिस करती थीं। इसका वजन करीब 35-40 किलो है।

वुमन रेसलर क्यों नहीं, सोनिका के पास भी जवाब नहीं
अखाड़े से निकलते हुए बुरा लग रहा था, जिस गुरु ने समाज से लड़कर पहली बार महिलाओं को मर्दों की पिच में एंट्री दलाई, उसमें महिला पहलवान न होना अजीब था। हमने इस बारे में सोनिका से भी सवाल किया। उन्होंने कहा- ‘पता नहीं, वहां महिला पहलवान क्यों नहीं हैं। मैं अमेरिका आ गई। बहुत कुछ बस में नहीं होता।’

सोनिका जब ये कह रहीं थीं, उनके चेहरे पर बेबसी थी। मैंने फिर पूछा, ये तो बड़ी लेगेसी थी, आपने इसे आगे क्यों नहीं बढ़ाया…उनका जवाब था, ‘कई बार परिवार कुछ और चाहता है। हम जो चाहते हैं वह कर नहीं पाते। भविष्य का कुछ नहीं पता।’

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