नई दिल्ली। लॉकडाउन में पूरा वेतन देने की अधिसूचना पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि वो अधिसूचना की वैधता पर हलफनामा दाखिल करे। कोर्ट ने कहा कि अभी किसी भी उद्योग पर दंडात्मक कार्रवाई नहीं हो। कोर्ट ने पिछले 4 जून को फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले पर अब अगली सुनवाई जुलाई के आखिरी हफ्ते में होगी।
कोर्ट ने उद्योग और मज़दूर संगठनों को समाधान की कोशिश करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारें समाधान निकालने में मदद करें। कोर्ट ने कहा कि अगर 54 दिन की अवधि के वेतन पर सहमति न बने तो श्रम विभाग की मदद लें।
गृह मंत्रालय ने 29 मार्च को कहा था कि कर्मचारियों को लॉकडाउन पीरियड की पूरी सैलरी दी जाए। कुछ प्राइवेट कंपनियों ने इस आदेश को कोर्ट में चैलेंज किया था। उनका कहना था कि लॉकडाउन में काम बंद होने की वजह से आर्थिक दिक्कतें हैं।
सुप्रीम कोर्ट के 3 आदेश
1. कोई कंपनी अपने कर्मचारियों को लॉकडाउन पीरियड का पूरा पेमेंट नहीं कर पाए तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं की जाए।
2. राज्य सरकारें कंपनियों और कर्मचारियों के बीच मध्यस्थता करें और श्रम आयुक्त को रिपोर्ट सौंपें।
3. केंद्र सरकार 4 हफ्ते में एफिडेविट पेश कर 29 मार्च के सर्कुलर की वैधता (लीगलिटी) के बारे में बताए।
कोर्ट ने दो टिप्पणी भी कीं
- ‘‘कंपनियों और मजदूरों को एक-दूसरे की जरूरत होती है। पेमेंट विवाद को सुलझाने की कोशिश की जानी चाहिए।’’
- ‘‘जो कर्मचारी काम पर लौटना चाहें उन्हें परमिशन मिलनी चाहिए, भले ही सैलरी को लेकर विवाद चल रहा हो।
4 जून को सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने यू-टर्न लेते हुए सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि कर्मचारियों के काम वाली जगह छोड़कर गृहराज्यों की ओर पलायन को रोकने के लिए अधिसूचना जारी की गई थी लेकिन अंततः ये मामला कर्मचारियों और कंपनी के बीच का है और सरकार इसमे दखल नहीं देगी।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि ये कर्मचारियों और कंपनी के बीच का मामला है। जस्टिस एमआर शाह ने कहा था कि वे केंद्रीय गृह मंत्रालय के 29 मार्च के नोटिफिकेशन को चुनौती दे रहे हैं। अटार्नी जनरल ने कहा कि नेशनल एक्जीक्युटिव कमेटी इस नीति के लिए जिम्मेदार है।
जस्टिस भूषण ने कहा कि सरकारी प्राधिकार ही दिशा-निर्देश जारी करती है। अटार्नी जनरल ने कहा कि लोग करोड़ों की संख्या में पलायन कर रहे थे। वे चाहते थे कि उद्योग चले। ये नोटिफिकेशन मजदूरों को रोकने के लिए किया गया था। इसमें लोगों की भी सुरक्षा का सवाल था लेकिन वेतन देने का मामला कर्मचारियों और नियोक्ता के बीच का है।-