नयी दिल्ली। भाजपा का इतिहास गवाह रहा है कि वह जब भी विधानसभाओं में हारी है तब तब उसने लोकसभा चुनावों में बड़ी जीत हासिल की है। इसको देखते हुए माना जा रहा है कि अगर कोई उलटफेर नहीं हुआ तो 2019 में फिर भाजपा सरकार आ सकती है। वहीं पांच राज्यों में हार के पीछे एससी एसटी एक्ट और राम मंदिर पर सरकार द्वारा पल्ला झाड़े जाने के कारण हार मिलना बताया जा रहा है। यह बात सच भी दिख रही है क्योंकि मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा वोट नोटा को चले गये थे जिससे माना जा रहा है कि कांग्रेस और भाजपा से नाराज वोटरों ने नोटा को चुना है। यह वोटर भाजपा के बताए जा रहे हैं क्योंकि भाजपा की हार में 0.1 प्रतिशत का अंतर है वहीं नोटा में जाने वाले वोटों की संख्या 1.40 से ज्यादा है।
बीजेपी ने हिंदी हार्टलैंड के तीन अहम राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की सत्ता कांग्रेस के हाथों गंवा दी है। आम चुनावों से कुछ महीने पहले लगे इस झटके ने बीजेपी की 2019 की दावेदारी पर भी ग्रहण लगाने का काम किया है। हालांकि बीजेपी की इस हार में भी पीएम मोदी और योगी आदित्यनाथ के लिए गुड न्यूज छिपी हुई है। बीजेपी के तीन मुख्यमंत्रियों (शिवराज सिंह चौहान, रमन सिंह और वसुंधरा राजे) की हार हुई है। 2014 से पहले ये तीनों नेता चुनावों में पार्टी को नेतृत्व देने लायक समझे जाते थे। अब इनकी हार के बाद बीजेपी में मोदी ऐसे अकेले नेता बचे हैं। राहुल गांधी की तरफ से चुनौती मिलने के बाद 2019 में दोनों के बीच प्रेजिडेंशियल स्टाइल के चुनाव कैंपेन की संभावनाओं में बीजेपी की जीत की निर्भरता भी मोदी पर ही है।
बीजेपी जिन तीन राज्यों में हारी है वहां से लोकसभा की 65 सीटें आती हैं। 2014 के चुनावों में बीजेपी ने इसमें से 62 सीटों पर जीत दर्ज की थी। अगर इस बार के विधानसभा चुनावों के परिणाम संसदीय सीटों के हिसाब से बांट कर देखे जाएं तो बीजेपी 2019 में 31 सीटें हार सकती है। ऐसे में पड़ोसी प्रदेश उत्तर प्रदेश की अहमियत और बढ़ गई है जहां बीजेपी ने 71 और उसके सहयोगियों ने 2 सीटों पर जीत दर्ज की थी। यूपी के साथ-साथ यहां के सीएम योगी आदित्यनाथ का महत्व भी बीजेपी की 2019 योजना में बढ़ जाता है। ऐसे समय में जब 2019 की लड़ाई जीतने के लिए बीजेपी का यूपी जीतना अनिवार्य शर्त बन गया है और योगी सरकार के विकास का रिकॉर्ड कुछ खास नहीं दिख रहा तो नजरें राम मंदिर मुद्दे की तरफ उठेंगी। उम्मीद है कि आने वाले दिनों में मंदिर आंदोलन और तीखा हो सकता है। संसद में इस मुद्दे पर प्राइवेट मेंबर बिल भी देखने को मिल सकता है। ऐसे में राम मंदिर का मुद्दा लोगों के ध्रुवीकरण में कामयाब हो सकता है। बीजेपी इस मुद्दे से सरकार विरोधी लहर और हिंदू जातियों के वोट बंटवारे को रोकने में कामयाब हो सकती है। जब मंदिर मुद्दे के लिए कैंपने की बात आएगी तो इसके लिए योगी आदित्यनाथ से बेहतर चेहरा और कौन होगा?
भाजपा के कई साथी पार्टी से दूर होते जा रहे हैं इसके पीछ्रे योगी आदित्यनाथ बताए जा रहे हैं जिन्होने प्रदेश में विधायकों और सांसदों के सारे अधिकार छीनकर सिर्फ विदूषक के रोल में रखा है। सरकारी अधिकारियों को मिली खुली छूट से आम जनता भी बेहाल होती जा रही है। वहीं रोजगार के मुद्दे पर योगी सरकार पूरी तरह फेल है। वह रोजगार पैदा करने के बजाए दूसरों की नौकरी ही खाए जा रही है। जिससे बेरोजगारों में बहुत गुस्सा फैल रहा है। वैसे तो बीजेपी के अपने तीन सबसे अहम क्षत्रपों को हार का सामना करना पड़ा है लेकिन केसीआर जैसे क्षत्रप और मजबूत हुए हैं। तेलंगाना में केसीआर हों या ओडिशा में नवीन पटनायक, बीजेपी के लिए ये क्षत्रप काफी अहम हैं। वह 2019 के लिए इनमें अपने नए दोस्तों की तलाश में भी जुटी है। लेकिन जिस तरह भाजपा काम कर रही है उससे लगता है कि अन्य साथी भी एनडीए से दूर हो सकते है। अब देखना होगा कि भाजपा अपने बिखरे साथियों को दोबारा एक करने में कैसे सफल होती है।?
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