नई दिल्ली। G2O समिट के लिए नई दिल्ली आए सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान आज भारत की स्टेट विजिट पर हैं। राष्ट्रपति भवन में उन्हें सेरेमोनियल वेलकम दिया गया। उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने रिसीव किया। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सऊदी क्राउन प्रिंस के बीच हैदराबाद हाउस में द्विपक्षीय बातचीत हो रही है। इससे पहले दोनों देशों के बीच कई मैमोरैंडम साइन किए गए। मोहम्मद बिन सलमान की ये दूसरी स्टेट विजिट है।
क्राउन प्रिंस के वेलकम के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मोहम्मद बिन सलमान के साथ आए डेलिगेशन से मुलाकात की। इससे पहले क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान 2019 में भी भारत की स्टेट विजिट की थी।
तब दोनों देशों ने स्ट्रैटजिक पार्टनरशिप काउंसिल बनाई थी। आज की बैठक में इसी काउंसिल के कामों को लेकर चर्चा की जाएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से राजनीति, सिक्योरिटी, डिफेंस, ट्रेड और अर्थव्यवस्था के मुद्दों पर भी चर्चा करेंगे। सऊदी क्राउन प्रिंस PM मोदी के साथ द्विपक्षीय बैठक भी करेंगे।
क्राउन प्रिंस के वेलकम की तस्वीरें…
एनर्जी कोऑपरेशन पर होगी बातचीत
सऊदी और देशों के बीच एनर्जी कोऑपरेशन और डिफेंस डील हो सकती है। इसी साल फरवरी में इंडियन एयरफोर्स के विमानों ने पहली बार सऊदी अरब की धरती पर लैंड किया था। दोनों देशों के बीच साल 2022-23 में 52.75 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ। भारत सऊदी का दूसरा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है। सऊदी में 20 लाख से ज्यादा भारतीय समुदाय के लोग रहते हैं। 1 लाख 75 हजार भारतीय हर साल हज के लिए सऊदी जाते हैं।
भारत-सऊदी के रिश्तों में पाकिस्तान बड़ा फैक्टर
2019 में जब सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद सलमान भारत की स्टेट विजिट पर आए तो वो पाकिस्तान होते हुए आए थे। सऊदी भारत से नजदीकियां बढ़ा रहा है। हालांकि, वो पाकिस्तान को बहुत ज्यादा खफा नहीं कर सकता है। भारत ने G20 समिट की एक बैठक कश्मीर में की थी। इसमें सऊदी ने अपने प्रतिनिधि को शामिल होने से इनकार कर दिया था। 1998 में जब पाकिस्तान ने परमाणु परीक्षण किया तो सऊदी अरब ने खुलकर उनका साथ दिया था।
हालांकि,अब लगातार बदल रही जियोपॉलिटिक्स में सभी देशों के रिश्ते बदल रहे हैं। सऊदी अरब अपनी अर्थव्यवस्था की तेल पर निर्भरता को कम करना चाहता है। ऐसे में वो ट्रेड के लिए नए पार्टनर ढूंढ़ रहा है। भारत भी उनमें से एक है। सऊदी ने भले ही कश्मीर में हुई G20 समिट में हिस्सा नहीं लिया, लेकिन जब भारत सरकार ने कश्मीर को दिया विशेष राज्य का दर्ज समाप्त किया तो पाकिस्तान के दबाव के बावजूद सऊदी ने भारत की आलोचना करने से इनकार कर दिया था।
सऊदी पाकिस्तान की आर्थिक तौर पर काफी मदद करता है। जुलाई में सऊदी ने पाकिस्तान को आर्थिक तंगहाली के बीच 2 बिलियन डॉलर का लोन दिया था।
पाकिस्तान की मदद करने के पीछे सऊदी का मकसद…
BBC की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने कार्यकाल में 32 विदेश दौरे किए थे। इनमें से 8 विदेश यात्राएं सऊदी अरब की थीं। 2021 में इमरान की सरकार गिरने के बाद प्रधानमंत्री बने शाहबाज शरीफ भी अपने पहले विदेश दौरे पर सऊदी ही गए थे। पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों का पहले विदेश दौरे पर सऊदी जाना आम बात है। इसकी मेन वजह पाकिस्तान को सऊदी से मिलने वाला पैसा है। 2020 तक पाकिस्तान को कर्ज देने वाले देशों में सऊदी पहले नंबर पर था।
पाकिस्तान पर सऊदी के इतना खर्च करने के पीछे 2 मकसद हैं।
1) 1947 से ही पाकिस्तान के सऊदी से अच्छे संबंध हैं। 1970 के दशक में ये और मजबूत हुए। इसकी वजह ईरान का इस्लामिक रेवोल्यूशन है। ईरान में 1979 में इस्लामिक क्रांति हुई। तब से यहां शिया धर्मगुरुओं को सत्ता मिल गई। वहीं सऊदी अरब सुन्नी बहुल देश है। ऐसे में सालों से दोनों के बीच मिडल ईस्ट में दबदबे की लड़ाई है। सऊदी पाकिस्तान को अपने खेमे में रखना चाहता है। हालांकि, पाकिस्तान ने भी ईरान से अपने संबंधों को संतुलित कर रखा है।
2) वहीं, पाकिस्तान से ईरान का 909 किलोमीटर का बॉर्डर लगता है। पाकिस्तान को आर्थिक मदद देकर सऊदी रणनीतिक रूप से अपनी पोजिशन को मजबूत करना चाहता है। पाकिस्तान से निष्कासित पत्रकार ताहा सिद्दकी के मुताबिक सऊदी आर्थिक पैकेज और निवेश के जरिए पाकिस्तानी सरकार की वफादारी खरीद रहा है। सऊदी अपने हिसाब से पाकिस्तान की सीमाओं पर नीति बनवाता है।