नई दिल्ली। 20 जनवरी को दिल्ली में भाजपा के केंद्रीय कार्यालय में तृणमूल कांग्रेस के विधायक अरिंदम भट्टाचार्य ने भाजपा की सदस्यता ली, वहीं पटना में बसपा के एकमात्र विधायक जमा खां ने जदयू का दामन थामा। हाल ही में भाजपा महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि उनके पास तृणमूल कांग्रेस के ऐसे 42 विधायकों की सूची है, जो भाजपा में आना चाहते हैं।
बंगाल, तमिलनाडु चुनाव से पहले फिर बड़े पैमाने पर दल-बदल शुरू हो गया है। लोकनीति-सीएसडीएस के रिसर्च फैलो की स्टडी रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि 2017 से 2020 तक पद पर रहते हुए 168 सांसद-विधायकों ने दल-बदल किया है। दल-बदल करने वालों में 82% यानी 138 लोगों ने भाजपा को चुना।
भाजपा में जाने वालों में सबसे ज्यादा 79 या 57% कांग्रेस के रहे। हालांकि, इस कैलकुलेशन में पूर्व मंत्री, पूर्व विधायक-सांसद, वरिष्ठ नेताओं आदि को शामिल नहीं किया है।
सीएसडीएस के प्रोफेसर और राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार कहते हैं कि दल-बदल तो हमेशा होता रहा है। हमेशा ही ऐसा होता है कि जिस दल की सरकार होती है, लोग उस दल को ही चुनते हैं। पांच साल की स्थिति थोड़ी सी अलग है। जो पार्टी सत्ता में है, वह बहुत मजबूत दिखाई देती है और विपक्ष कमजोर दिखाई देता है। ऐसी स्थिति में यह दल-बदल भाजपा की ओर ज्यादा जाता दिख रहा है, क्योंकि लगातार दो लोकसभा चुनाव हारने के बावजूद कांग्रेस में मजबूती के संकेत दिखाई नहीं पड़ रहे हैं।
सख्त कानून के बाद भी सिलसिला नहीं रुक रहा
- 1985 से पहले दल-बदल रोकने वाला कोई कानून नहीं था। दल-बदल कानून एक मार्च 1985 में आया, संविधान में 10वीं अनुसूची जोड़ी गई, ये संविधान का 52वां संशोधन था, इससे सुविधा के हिसाब से पार्टी बदल लेने वाले विधायकों और सांसदों पर लगाम लगाई गई।
- 2003 में इस कानून में भी संशोधन किया गया। इसके बाद अगर किसी मूल पार्टी में बंटवारा होता है और एक तिहाई विधायक एक नया ग्रुप बनाते हैं, तो उनकी सदस्यता नहीं जाएगी, इसके बाद किसी दल में टूट के लिए दो तिहाई सदस्यों का होना अनिवार्य किया गया।
दल-बदल के 6 प्रमुख उदाहरण
1. हाल में बंगाल में 10 विधायक और एक सांसद ने भाजपा जॉइन की।
2. अरुणाचल प्रदेश में सात में से छह जदयू विधायक भाजपा में आए।
3. 2020 में मध्य प्रदेश में कांग्रेस के 26 विधायक भाजपा में चले गए।
4. जुलाई 2019 में कांग्रेस के 11 और जेडीएस के 3 विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष को इस्तीफा दिया और भाजपा जॉइन की। दिसंबर में हुए उपचुनाव में 15 में से 12 सीटें भाजपा ने जीतीं।
5. 2019 में एसडीएफ के 10 विधायक रातोरात पाला बदलकर भाजपा में गए।
6. 2017 में मणिपुर में कांग्रेस के मंत्री रहे टी श्यामकुमार की अगुवाई में सात विधायकों ने भाजपा जॉइन की।
सिर्फ पावर से मतलब
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) के त्रिलोचन शास्त्री का कहना है कि लोग राजनीति में चढ़ते सूरज और जीतने वाले को प्रणाम करते हैं। राजनीति में शीर्ष स्तर पर जो हैं, उन्हें तो पावर से ज्यादा मतलब होता है, लेकिन आम विधायक या सांसद की स्थिति थोड़ी अलग भी हो सकती है।
बढ़ गया है दल बदल
पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के चक्षु रॉय का कहना है कि सत्ता के लालच में दल-बदल बढ़ गया है। जनप्रतिनिधि इसलिए दूरी बना लेते हैं, क्योंकि राजनीतिक दलों का आंतरिक लोकतंत्र कमजोर है और वे अपनी बात पार्टी के अंदर नहीं कह पा रहे हैं।