सरकार को करोड़ों की चोट दे रहे हैं 20 से ज्यादा फर्जी शिक्षक, कुलपति मौन

कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय की कहानियाँ आपको चौंकाने वाली है । यूपी के कई जिलों के किसानों को लाभ पहुचाने के लिए बनाए गए इस  कृषि विश्वविद्यालय में एक ऐसा रैकेट काम कर रहा है जिसके लिए न तो भारत सरकार के नियम मायने रखते हैं और न ही यूपी सरकार के ।

ताज़ा मामला इस विश्वविद्यालय में काम करे शिक्षकों से जुड़ा हुआ है । फिलहाल यहाँ करीब 22 ऐसे लोग हैं जिनकी मूल नियुक्ति भारत सरकार के कृषि विज्ञान केंद्रों पर है मगर वे लोग विश्वविद्यालय  में शिक्षक के रूप में काम कर रहे हैं।

इस मामले में भारत सरकार के साफ दिशा निर्देश हैं कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद  (ICAR) द्वारा संचालित होने वाले कृषि विज्ञान केंद्रों पर नियुक्त किए गए किसी भी वैज्ञानिक या कर्मचारी की नियुक्ति कहीं और नहीं की जा सकती । इन कृषि वैज्ञानिकों के वेतन का भुगतान भी ICAR द्वारा किया जाता है।

लेकिन कृषि विज्ञान केंद्रों के 22 वैज्ञानिक इस नियम को धता बताते हुए बीते कई साल से कृषि विश्वविद्यालय में बतौर शिक्षक  न सिर्फ अपना डेरा जमाए हुए हैं बल्कि हर महीने यूपी की सरकार को लंबा आर्थिक नुकसान भी दे रहे हैं।

विश्वविद्यालय में इस रैकेट की ताकत का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश शासन ने एक के बाद एक कई चिट्ठियाँ लिखी मगर कुलपति कार्यालय से इस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई है ।

बीते साल 26 जून 2019 को विभाग के सचिव वी रामास्वामी ने कुलपति को एक पत्र के जरिए कहा था कि कृषि ज्ञान केंद्रों के वैज्ञानिकों को विश्वविद्यालय में गलत ढंग से नियुक्त किया गया है और इन्हे तत्काल वापस भेजा जाए अन्यथा कठोर कार्यवाही होगी , लेकिन कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति कार्यालय ने इस पर कोई हरकत नहीं की।

इसके बाद 15 जुलाई 2020 को विशेष सचिव बृजराज यादव ने भी इस मामले में पत्र लिखा जिसमें उन्होंने 30 दिसंबर 2019 के दो पत्रों, 5 फरवरी 2020 के पत्रक , 2 जून 2020 के पत्र और 10 जुलाई 2020 के पत्र का हवाला देते हुए कुलपति से यह कहते हुए आख्या मांगी की यह मामला माननीय मंत्री के संज्ञान में है और इसपर तत्काल कार्यवाही होनी चाहिए , लेकिन खबर लिखने तक इस पर भी किसी कार्यवाही की सूचना नहीं थी।

इस मामले को जोरशोर से उठाने में लगे डॉ महेश सिंह कहते हैं की यह पूरी तरह से शासन और भारत सरकार के नियमों को दरकिनार रखने का मामला है । यूपी सरकार और भारत सरकार के बीच यह अनुबंध है की कृषि विज्ञान केंद्रों के लोगों को विश्वविद्यालय में समायोजित नहीं किया जा सकता । लेकिन शासन के लगातार पत्रों के बावजूद ऐसे लोग अभी भी विश्वविद्यालयों में न सिर्फ जमे हैं बल्कि नियम विरुद्ध इंक्रीमेंट भी ले रहे हैं। जबकि हाईकोर्ट में गए एक मुकदमे में इन्हे असिस्टेंट प्रोफेसर का पदनाम भी नहीं स्वीकृत किया गया था।

डॉ महेश सिंह इस पूरे मामले की SIT द्वारा जांच करने की मांग भी कर रहे हैं। मिली जानकारी के अनुसार वर्तमान कुलपति अभी भी न सिर्फ इस मामले पर चुप्पी साढ़े हुए हैं बल्कि लगातार इस तरह की नियुक्तियों को स्वीकृति दे रहे हैं।

इस पूरे प्रकरण से यूपी सरकार को हर महीने करीब 50 लाख रुपये का नुकसान भी हो रहा हैं जों वेतन के रूप में दिया जा रहा है जबकि नियमानुसार इन कृषि वैज्ञानिकों का वेतन ICAR के द्वारा किया जाना था। साथ ही जिन कृषि विज्ञान केंद्रों से ये लोग आए हैं वहाँ के किसानों को भी इनके होने का लाभ नहीं मिल रहा ।

अब देखना होगा कि कृषि मंत्री के संज्ञान में आने के बाद भी क्या ये लोग विश्वविद्यालय में बने रहने में कामयाब हो जाते हैं या फिर कुलपति इन्हे वापस इनके केंद्र भेज पाएंगे ?

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