सस्ती बिजली से राज्यों पर एक लाख करोड़ कर्ज, बिजली पर सब्सिडी कितनी सही?

नई दिल्ली। फ्रीबीज के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है। इन फ्रीबीज में भारत में राजनीतिक रूप से सबसे ज्यादा संवेदनशील मुद्दा बिजली सब्सिडी का है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार मुफ्त बिजली देती है। पंजाब चुनाव में आम आदमी पार्टी ने मुफ्त बिजली का वादा किया था। कई अन्य राज्यों में भी बिजली पर सब्सिडी दी जाती है। उधर, देश में पूरा बिजली सेक्टर घाटे में है और ज्यादातर वितरण कंपनियों के कर्ज बढ़ते जा रहे हैं।

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सब्सिडी का इनएफिशिएंट स्ट्रक्चर ही बिजली क्षेत्र में घाटे के लिए जिम्मेदार है? सरकारों का बिजली पर सब्सिडी देना सही है या नहीं? बिजली कंपनियों को हो रहे नुकसान से निपटने के लिए सरकार क्या कर रही है? अगर ऐसे ही बिजली कंपनियों को नुकसान होता रहेगा तो भ‌विष्य का इंफ्रास्ट्रक्चर कैसे मजबूत होगा? तो चलिए बिजली सब्सिडी से जुड़े ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब जानते हैं…

सबसे पहले सब्सिडी समझें?
किसी भी चीज पर सरकार की तरफ से दी जाने वाली छूट को सब्सिडी कहते हैं। यह सरकार के नॉन-प्लान्ड खर्चों का एक हिस्सा होता है। दुनियाभर में सरकारें अपने नागरिकों को अलग-अलग चीजों पर सब्सिडी देती है। भारत में प्रमुख सब्सिडी पेट्रोलियम, फर्टिलाइजर, फूड, इलेक्ट्रिसिटी पर मिलती है। कई अर्थशास्त्री कहते हैं, अगर सब्सिडी किसी देश की समग्र अर्थव्यवस्था में सुधार करने में विफल रहती है, तो सब्सिडी एक विफलता है।

अब बात बिजली सब्सिडी की…
बिजली सब्सिडी कृषि और घरेलू उपभोक्ताओं के साथ पावर और हैंडलूम जैसे कुटीर उद्योगों और ग्राम पंचायतों को दी जाती है। इसके अलावा कई राज्यों में इंडस्ट्री और बिजनेस को भी बिजली सब्सिडी दी जा रही है। वसुधा फाउंडेशन के CEO श्रीनिवास कृष्णास्वामी कहते है कि जैसे जैसे बिजली की खपत बढ़ती है वैसे वैसे सब्सिडी कम होती जाती है और टैरिफ बढ़ता है। ऐसे में अधिक खपत वाले कई उपभोक्ताओं को बिजली ऊंची दर पर मिलती है।

एक साल में 1.32 लाख करोड़ रुपए खर्च
पावर मिनिस्ट्री के आंकड़ों से पता चलता है कि 36 में से 27 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश उपभोक्ताओं को सब्सिडी वाली बिजली प्रदान कर रहे हैं, जिसमें कम से कम 1.32 लाख करोड़ रुपए देश भर में अकेले 2020-21 वित्तीय वर्ष में खर्च किए गए हैं। मध्य प्रदेश, राजस्थान और कर्नाटक ने 36.4% या 48,248 करोड़ की सबसे ज्यादा बिजली सब्सिडी दी।

तीन साल के डेटा एनालिसिस से पता चलता है कि दिल्ली ने 2018-19 और 2020-21 के बीच अपने सब्सिडी एक्सपेंडिचर में 85% की बढ़ोतरी देखी। ये 2018-19 में 1,699 करोड़ रुपए थी, जो बढ़कर 3,149 करोड़ रुपए हो गई। ये सभी राज्यों में दूसरी सबसे अधिक है। मणिपुर ने इन तीन वर्षों में बिजली सब्सिडी में सबसे बड़ी 124% की उछाल देखी गई। 120 करोड़ रुपए से बढ़कर ये 269 करोड़ पर पहुंच गई।

राज्यों में सब्सिडी के अलग-अलग ब्रैकेट
देश के अलग-अलग राज्यों में सब्सिडी के अलग-अलग ब्रैकेट हैं। दिल्ली और पंजाब में 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त है, तो हरियाणा में 150 यूनिट बिजली फ्री दी जाती है। झारखंड में भी 200 यूनिट तक बिजली फ्री है और उसके बाद खर्च बढ़ने के साथ सब्सिडी के स्लैब तय किए गए हैं। राज्यों पर फरवरी 2022 में पावर जनरेटिंग कंपनियों का 1,00,931 करोड़ रुपए का बकाया था। मार्च 2021 में ये 67,917 करोड़ था।

क्या बिजली कंपनियों के घाटे के लिए सब्सिडी जिम्मेदार है इसे समझने से पहले जानें की बिजली आप तक कैसे पहुंचती है।

बिजली आप तक कैसे पहुंचती है?
बिजली तीन स्टेज से होकर हम तक पहुंचती है। पहली स्टेज प्रोडक्शन, दूसरी ट्रांसमिशन और तीसरी डिस्ट्रीब्यूशन स्टेज होती है। बिजली का प्रोडक्शन करने वाली कंपनियों को जेनकोज (GenCos) कहा जाता है। GenCos बिजली को ट्रांसमिशन करने वाली कंपनियों यानी ट्रांसकोज को भेजती है। फिर ट्रांसमिशन कंपनियां बिजली को डिस्ट्रीब्यूशन करने वाली कंपनियों (डिस्कॉम्स) तक पहुंचाती हैं। यह कंपनियां ही आपके घरों तक बिजली पहुंचाती है।

क्या घाटे के लिए सब्सिडी जिम्मेदार?

  • मद्रास स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के डायरेक्टर के.आर. शनमुगम कहते हैं, राजनीतिक दल चुनावी वादों के रूप में फ्रीबीज/सब्सिडी की घोषणा कर सकते हैं, लेकिन ऐसे चुनावी वादे तभी लागू किए जाना चाहिए जब राज्य के बजट में रेवेन्यू सरप्लस हो। हालांकि, जमीनी स्तर पर जो हो रहा है वह यह है कि राज्य सरकारें इन फ्रीबीज को लागू करने के लिए उधार लेती हैं जो बदले में उनके कर्ज के बोझ को बढ़ाती हैं।
  • शनमुगम ने कहा, ‘सब्सिडी दो तरह की होती है- गुड और बैड। गुड सब्सिडी दूसरे सेक्टर्स को प्रभावित नहीं करतीं, जबकि बैड सब्सिडी का अन्य सेक्टर्स पर निगेटिव असर पड़ता है।’ उन्होंने कहा कि फ्री इलेक्ट्रिसिटी कीमतों को प्रभावित करती है इसलिए ये बैड सब्सिडी है। ऐसा इसलिए क्योंकि बिजली एक स्केअर्स कमोडिटी है और इसे मुफ्त देने से उपयोग में बढ़ोतरी होती है जो बदले में अन्य सेक्टर्स में कीमतों को प्रभावित करती है।
  • अर्थशास्त्री गौरी रामचंद्रन ने कहा, ‘श्रीलंका की अर्थव्यवस्था और राजनीतिक दलों के चुनावी वादों से फ्रीबीज और सब्सिडी का मुद्दा सामने आया है।’ उनके अनुसार, फ्रीबीज वास्तव में फ्री नहीं हैं, बल्कि अन्य टैक्सपेयर्स पर बोझ हैं। उन्होंने कहा कि ‘सब्सिडी से कैलकुलेटेड मैनर में डील करना चाहिए। इसमें राजकोषीय घाटे और मैक्रोइकोनॉमिक एक्टिविटी का ध्यान रखा जाना चाहिए।’

बिजली सब्सिडी देना सही या गलत?

  • दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बीते दिनों एक बयान में कहा था, ‘अगर राजनेताओं को हर महीने 3,000 से 4,000 यूनिट तक बिजली फ्री मिल सकती है तो आम जनता को भी मुफ्त बिजली मिलनी चाहिए। इसे फ्री रेवडी कहना गलत होगा। उन्होंने कहा कि एक तरफ जनता महंगाई की मार महसूस कर रही है, जबकि पॉलिटिशियन सबसे कम प्रभावित हैं।
  • PM नरेंद्र मोदी बीते दिनों कहा था ‘हमें देश की रेवड़ी कल्चर को हटाना है। रेवड़ी बांटने वाले कभी विकास के कार्यों जैसे रोड नेटवर्क, रेल नेटवर्क का निर्माण नहीं करा सकते। ये अस्पताल, स्कूल और गरीबों को घर नहीं बनवा सकते।’ PM मोदी ने युवाओं से इस पर विशेष रूप से काम करने की बात कही और कहा कि ये रेवड़ी कल्चर आने वाली पीढ़ियों के लिए घातक साबित होगा।’
  • सरदार पटेल यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर (अर्थशास्त्र) जिगर पटेल का मानना है कि सरकार को सब्सिडी बंद कर देनी चाहिए और मुफ्त में सेवाएं भी नहीं देनी चाहिए। उनके अनुसार, अगर यह जारी रहा तो यह बाकी समाज, बिजनेस और इंडस्ट्री पर वित्तीय बोझ डालेगा। जिगर पटेल कहते हैं, ‘आप जितनी अधिक सब्सिडी या मुफ्त सेवाएं देंगे, राज्य का खर्च बढ़ेगा। लंबे समय में सब्सिडी और मुफ्त सेवाएं विकास विरोधी हैं।
  • इकोनॉमिस्ट जयती घोष ने कहा, ‘यदि आप मानव जीवन की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए न्यूनतम स्तर पर मुफ्त पानी और मुफ्त बिजली दे रहे हैं, तो मेरा मानना ​​है कि यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह प्रत्येक नागरिक को प्रदान करे।

भ‌विष्य का इंफ्रास्ट्रक्चर कैसे मजबूत होगा?
जैसे-जैसे भारत की इकोनॉमी बढ़ेगी और मॉडर्न होगी उसकी ऊर्जा जरूरतों में भी बढ़ोतरी होगी। IEA के इंडिया एनर्जी आउटलुक 2021 के अनुसार आने वाले समय में भारत की उर्जा जरूरत ग्लोबल एवरेज की तीन गुना होगी। वर्तमान में भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है और इसके 2030 तक यूरोपीय संघ को पीछे छोड़ते हुए तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता बनने की उम्मीद है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते दिनों कहा था, कहा, ‘डिस्ट्रीब्यूशन और ट्रांसमिशन के दौरान जो नुकसान होता है, उसे कम करने के लिए राज्यों में जरूरी निवेश क्यों नहीं होता? इसका उत्तर ये है कि अधिकतर बिजली कंपनियों के पास फंड की भारी कमी रहती है। इस स्थिति में कई-कई साल पुरानी ट्रांसमिशन लाइनों से काम चलाया जाता है। ऐसे में इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के लिए कंपनियों में फायदे में लाने जरूरी है।’

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