‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ पर कायम भाजपा को टक्कर देगा कौन?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13 दिसंबर को अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के ड्रीम प्रोजेक्ट का लोकर्पण किया. सनातन धर्म से जुड़े कई बड़े धर्माचार्य, साधु-संत इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बने. 1669 में अहिल्याबाई होल्कर के काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनरूद्धार कराने के लगभग 352 सालों बाद पीएम नरेंद्र मोदी काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के जरिये इस मंदिर के पुराने गौरव को लौटाया है.

एक दिन पहले ही योगी आदित्यनाथ ने विपक्षी दलों पर हमलावर होते हुए कहा कि क्या कांग्रेस या ‘बुआ’ (बसपा सुप्रीमो मायावती) ने काशी विश्वनाथ का निर्माण किया है? या ‘बबुआ’ (सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव) ने भगवान शिव के गीत गाए हैं? दरअसल, भारतीय संस्कृति के हजारों गौरवों यानी मंदिरों के लिए काम कर रही भाजपा ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ के सहारे लगातार आगे बढ़ रही है. और, आजादी के बाद सर्वाधिक समय तक शासन करने वाली कांग्रेस और राज्यों में सत्ता पाने वाले राजनीतिक दलों ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को एक छुआछूत के रोग के तौर पर माना. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ पर कायम भाजपा को टक्कर कौन देगा?

Narendra Modi inaugurates Kashi Vishwanath Corridorजनसंघ के भाजपा में बदलने तक पार्टी ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के एजेंडे को नहीं छोड़ा.

कांग्रेस की चलाई परिपाटी, अब पड़ रही भारी

इत‍िहास पर नजर डालेंगे, तो काफी हद तक स्पष्ट हो जाता है कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद भारत के लिए कोई नई बात नही है. देश की आजादी से पहले कई राज्यों में बंटा भारत भी अपनी संस्कृति की वजह से ही एक था. ये सांस्कृतिक राष्ट्रवाद ही था, जिसने भारत को एक लोकतांत्रिक देश के तौर पर स्थापित होने में मदद की. क्योंकि, पड़ोसी देशों की स्थितियां आज किसी से छिपी हुई नही हैं. आजादी के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू ने सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार पर जो परिपाटी रखी, भविष्य में भी कांग्रेस उसी पर चलती रही.

आस्था दर्शाने के लिए मंदिर जाने तक सीमित रहे कांग्रेस के तमाम नेताओं ने कभी ऐतिहासिक मंदिरों के जीर्णोद्धार के प्रयास नहीं किए. जनसंघ के भाजपा में बदलने तक पार्टी ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के एजेंडे को नहीं छोड़ा. वहीं, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की इस पूरी बहस में 1986 में सबसे अहम मोड़ आया. जब शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को राजीव गांधी ने मुस्लिम वोटरों की नाराजगी से बचने के लिए पलट दिया.

इस एक फैसले से भाजपा को राष्‍ट्रवाद और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के एजेंडे पर मजबूती से आगे बढ़ने का मौका मिला. आसान शब्दों में कहा जाए, तो कांग्रेस ने तुष्टिकरण के एजेंडे पर चलकर बहुसंख्यक आबादी को कट्टर बनाने में महती भूमिका निभाई.

भाजपा ने राम मंदिर आंदोलन के सहारे के सहारे लोगों में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अलख जगाई. राम मंदिर आंदोलन को लेकर कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने भाजपा को सांप्रदायिक पार्टी घोषित कर दिया. इतना ही नहीं, भाजपा पर हमलवार होने की चक्कर में सपा, बसपा, कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दल कहीं न कहीं बहुसंख्यक आबादी की भावनाओं पर हमला करने लगे.

2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद सुप्रीम कोर्ट में राम जन्मभूमि मामले को लेकर सुनवाई में आई तेजी ने करोड़ों लोगों के बीच सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के मुद्दे को फिर से जगा दिया. इस बीच चित्रकूट, मथुरा, काशी, कुशीनगर, कपिलवस्तु, श्रावस्ती सहित कई धार्मिक स्थलों का पर्यटन के लिहाज से विकास और सौंदर्यीकरण का काम नरेंद्र मोदी सरकार की प्रसाद योजना के तहत किया जा रहा है. यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि भारतीय संस्कृति के हजारों गौरवों यानी मंदिरों और तीर्थस्थलों के लिए काम कर रही भाजपा के ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ में केवल हिंदू धर्म ही नहीं अन्य धर्मों के तीर्थ भी शामिल हैं.

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार की ही बात करें, तो भगवान राम, कृष्ण से लेकर बुद्ध तक से जुड़े तीर्थस्थानों को धार्मिक पर्यटन स्थलों के तौर पर विकसित करने का काम तेजी से चल रहा है.

लेकिन, देश के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने अपने अंतिम भाषण में कहा था कि ‘धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धांतों को दोहराना और पुनर्जीवित करना आज की चुनौती है. इनमें सहिष्णुता और धर्म की स्वतंत्रता शामिल है. राष्ट्रीयता का संस्करण जो अपने मूल पर सांस्कृतिक प्रतिबद्धता रखता है, यानी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद अपने आप में रूढ़िवादी और अनुदार होता है. यह असहिष्णुता और अहंकारी देशभक्ति को बढ़ावा देता है.’

जबकि, संस्कृति और राष्ट्र के नाम पर लोगों के एकजुट होने की बात करना सांप्रदायिक नहीं हो सकता है. खासतौर से यह तब और अहम हो जाता है, जब सभी धर्मों का सम्मान किया जा रहा हो. और, भाजपा सभी लोगों के लिए समान रूप से योजनाएं चलाकर संस्कृति और राष्ट्रवाद के नाम पर खुद को मजबूत करने में पारंगत है. नरेंद्र मोदी ने गुजरात में अपने मुख्यमंत्रित्व काल में इसे साबित भी किया है.

Narendra Modi Kashi Vishwanath Corridorमुख्तार अब्बास ने कहा था कि मोदी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रतीक हैं.

नरेंद्र मोदी ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ के प्रतीक

2003 में छत्‍तीसगढ़, राजस्‍थान और मध्‍य प्रदेश के विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने गुजरात के मुख्‍यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी को चुनाव प्रचार के लिए भेजा था. उस समय भाजपा के महासचिव मुख्तार अब्बास नकवी से एक सवाल पूछा गया था कि नरेंद्र मोदी को इन राज्यों में लौह पुरुष के रूप में स्थापित किया जाएगा या विकास पुरुष के रूप? मुख्तार अब्बास ने इसका जवाब दिया था कि मोदी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रतीक हैं. 2014 में सत्ता में आने से पहले भाजपा ने नरेंद्र मोदी को हिंदुत्व के साथ ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रतीक के तौर पर गढ़ दिया.

गुजरात में सोमनाथ मंदिर को भव्यता के शीर्ष पर पहुंचाने का श्रेय नरेंद्र मोदी से शायद ही कोई छीन सकता है. भाजपा ने लगातार दो आम चुनावों में जीत के साथ साबित किया है कि पार्टी ने हिंदुत्व के नाम पर लोगों को एक करने का रास्ता आसानी से पा लिया. पीएम नरेंद्र मोदी ने 2014 के बाद अयोध्या से लेकर काशी और उत्तराखंड से लेकर कश्मीर तक के मंदिरों का जीर्णोद्धार दर्जनों विकास परियोजनाओं के जरिये किया जा रहा है.

देश के बदल चुके राजनीतिक परिदृश्य में किसी समय हाशिये पर रहने वाला बहुसंख्यक हिंदू समाज अब सत्ता के केंद्र में आ चुका है. भाजपा ने हिंदुत्व के एजेंडे पर चलते हुए हिंदू धर्म के प्रतीकों यानी मंदिरों पर अपनी राजनीति को केंद्रित रखा. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ होने के बाद भाजपा के इस सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के एजेंडे को और बल मिला है. यही वजह है कि अब मंदिरों में राहुल गांधी, अखिलेश यादव के नजर आने पर इसे चुनावी लाभ पाने की कोशिश माना जाता है.

अयोध्या पहुंचने के बाद रामराज्य की कल्पना को साकार करने की कोशिश में जुटे अरविंद केजरीवाल दिल्ली के बुजुर्गों को रामलला के दर्शन कराने के लिए उतावले नजर आते हैं. हर राज्य में बहुसंख्यक हिंदू समाज के प्रतीक मंदिरों को लेकर योजनाओं का अंबार लगता जा रहा है. और, ये सब कुछ 2014 में नरेंद्र मोदी के देश की सत्ता संभालने के बाद ही हुआ है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो विपक्षी दलों के लिए ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ पर कायम भाजपा को टक्कर देना आसान नहीं है.

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