नई दिल्ली। लगातार दो दिन से मोदी की जुबान में आजाद शब्द आ चिपका है। सोमवार को आजाद हिंद फौज और उसके पहले प्रधानमंत्री सुभाष चंद्र बोस का जिक्र। मंगलवार को गुलाम नबी आजाद का हवाला। जगह एक ही- संसद में राज्यसभा। और समय भी एक सा… करीब साढ़े दस बजे।
मंगलवार सुबह प्रधानमंत्री राज्यसभा में खड़े हुए। मौका जम्मू-कश्मीर के चार सांसदों को विदाई देने का था। ये राज्यसभा से रिटायर हो रहे हैं। मोदी ने एक-एक कर गुलाम नबी आजाद, शमशेर सिंह, मीर मोहम्मद फयाज और नजीर अहमद का नाम लिया और शुभकामनाएं दीं।
मोदी 16 मिनट बोले, इनमें से 12 मिनट आजाद पर बात रखी। इतने भावुक हुए कि रो दिए, आंसू पोंछे, पानी पिया। करीब 6 मिनट तक सिसकियां लेते हुए आजाद से अपने संबंधों को याद करते रहे।
इन दो दिनों के भाषण में 3 बड़ी बातें भी छिपी हैं। शब्द एक है- आजाद। लेकिन इसमें बंगाल से कश्मीर तक की राजनीति शामिल है। एक-एक करके देखते हैं…
1. आजाद का बगीचा कश्मीर घाटी की याद दिलाता है
मोदी बोले- गुलाम नबी आजाद देश की फिक्र परिवार की तरह करते हैं। उनका बगीचा, कश्मीर घाटी की याद दिलाता है। आजाद दल की चिंता करते थे, लेकिन वे देश और सदन की उतनी ही चिंता करते थे। ये छोटी बात नहीं है।
2. मेरे द्वार आपके लिए हमेशा खुले रहेंगे
मोदी बोले- व्यक्तिगत रूप से मेरा उनसे आग्रह रहेगा कि मन से मत मानो कि आप इस सदन में नहीं हो। आपके लिए मेरे द्वार हमेशा खुले रहेंगे। आपके विचार और सुझाव बहुत जरूरी हैं। अनुभव बहुत काम आता है। आपको मैं निवृत्त नहीं होने दूंगा।
3. आजाद हिंद फौज के प्रथम प्रधानमंत्री
मोदी ने सोमवार को कहा था- यह कोटेशन आजाद हिंद फौज की प्रथम सरकार के प्रथम प्रधानमंत्री नेताजी सुभाष चंद्र बोस का है। भारत का राष्ट्रवाद न तो संकीर्ण है, न स्वार्थी है और न ही आक्रामक है। यह सत्यम, शिवम, सुंदरम से प्रेरित है।
आजाद और कांग्रेस के बीच सबकुछ ठीक नहीं-
- राहुल ने आजाद पर भाजपा से साठगांठ का आरोप लगाया था
गुलाम नबी आजाद कांग्रेस हाईकमान से नाराज बताए जा रहे हैं। पिछले साल अगस्त में तो एक वक्त ऐसा आ गया था, जब राहुल गांधी ने उन पर भाजपा से साठगांठ तक का आरोप लगा दिया था। कहा था- ‘पार्टी के कुछ लोग भाजपा की मदद कर रहे हैं।’ इस पर आजाद ने इस्तीफे की पेशकश तक कर डाली थी। आजाद ने कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन और संगठन चुनाव को लेकर सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी थी।
आजाद कब क्या बोले…
- पहली बार: अगर पार्टी में चुनाव नहीं हुए तो 50 साल तक हम विपक्ष में बैठेंगे
आजाद ने पिछले साल 29 अगस्त को कहा था कि ‘जो लोग पार्टी में चुनाव का विरोध कर रहे, वे अपना पद जाने से डर रहे हैं। कई दशकों से पार्टी में चुनी हुई इकाइयां नहीं हैं। हमें 10-15 साल पहले ही ऐसा कर लेना था। पार्टी यदि अगले 50 साल तक विपक्ष में बैठना चाहती है, तो पार्टी के अंदर चुनावों की जरूरत नहीं है।’
- दूसरी बार: चुनाव 5 स्टार कल्चर से नहीं जीते जाते
आजाद ने पिछले साल 22 नवंबर को बिहार चुनाव के नतीजों को लेकर पार्टी पर सवाल उठाए थो। उन्होंने कहा था कि चुनाव 5 स्टार कल्चर से नहीं जीते जाते। हम बिहार और उप चुनावों के नतीजों से चिंतित हैं।
मोदी के भाषण के राजनीतिक मायने
- कांग्रेस के अंदर आजाद को लेकर संदेह पैदा हो सकता है
वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मोहन कहते हैं कि यह मोदी का आजाद को खुश करने का प्रयास हो सकता है, लेकिन आजाद उम्र के इस पड़ाव पर अब पाला नहीं बदलेंगे। हां, मोदी का मकसद हो सकता है कि वे कांग्रेस के अंदर संदेह पैदा कर दें, क्योंकि आजाद कुछ समय से पार्टी में साइड लाइन हैं। कांग्रेस के अंदर खटपट भी जारी है। राहुल कामयाब होते तो ये लोग पहले ही किनारे हो गए होते।
- मोदी के बोल आजाद के व्यवहार की जीत है
राज्यसभा टीवी में वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह कहते हैं कि आजाद कांग्रेस को छोड़कर कभी नहीं जाएंगे। जब आजाद को दिल्ली से काटने के चक्कर में जम्मू-कश्मीर का प्रदेश अध्यक्ष बनाकर भेजा गया था, तब संयोग से ही सही, वे वहां मुख्यमंत्री बन गए। मोदी ने आजाद पर जो चारा फेंका है, वो दरअसल राज्यसभा में कांग्रेस का साथ लेने के लिए है। साथ ही मल्लिकार्जुन खड़गे को भी नरम करना चाह रहे होंगे, क्योंकि अभी राज्यसभा में खड़गे का बोलना बाकी है। मोदी ने सोमवार को भी संसद में आजाद की तारीफ की थी। मोदी ने जो उनके बारे में बोला है ये आजाद के व्यवहार की जीत है।