राजस्थान में कई दिनों से जारी सियासी घमासान के बीच लोगों के मन में सवाल उठ रहे हैं कि क्या राज्यपाल कैबिनेट की सलाह मानने से मना कर सकते हैं? मालूम हो कि सीएम अशोक गहलोत राज्यपाल से लगातार विधानसभा सत्र बुलाने का अनुरोध कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने 24 घंटे के भीतर दूसरी बार राज्यपाल कलराज मिश्र के साथ मुलाकात की है।
इस मामले में कानून के विशेषज्ञ मानते हैं कि राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र के पास मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कैबिनेट की विधानसभा सत्र आयोजित करने की अनुशंसा स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। राज्यपाल की शक्तियां और कर्तव्य पर संविधान में वर्णित तथ्यों का हवाला देते हुए उनका विचार था कि राज्यपाल कैबिनेट की सलाह मानने के लिए बाध्य हैं। राज्य में जारी राजनीतिक नौटंकी के बीच गहलोत ने मिश्रा पर शुक्रवार को आरोप लगाया कि विधानसभा का सत्र बुलाने को लेकर वह दबाव में हैं।
गहलोत ने कहा कि राज्य सरकार ने राज्यपाल से सत्र बुलाने का आग्रह किया लेकिन उन्होंने अभी तक आदेश जारी नहीं किया है। गहलोत कांग्रेस के 19 बागी विधायकों की चुनौती का सामना कर रहे हैं जिसमें बर्खास्त उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट भी शामिल हैं। नबर रेबिया (अरुणाचल प्रदेश) मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले का जिक्र करते हुए वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी और विकास सिंह ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा है कि राज्यपाल कैबिनेट की सलाह मानने के लिए बाध्य है और उन्हें विधानसभा सत्र बुलाना पड़ेगा।
द्विवेदी ने कहा कि राज्यपाल के पास कोई अधिकार नहीं होता और वह सत्र आयोजित करने के लिए मुख्यमंत्री द्वारा बताई गई तारीख को केवल टालने का आग्रह कर सकते हैं। एक अन्य वरिष्ठ वकील ने कहा कि कैबिनेट अनुशंसा भेजती है तो राज्यपाल शक्ति परीक्षण के लिए विधानसभा की बैठक बुलाने को बाध्य है। सिंह ने ‘पीटीआई-भाषा’ से बात करते हुए कहा, ‘नबम रेबिया मामले में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा है कि राज्यपाल कैबिनेट की सलाह मानने के लिए बाध्य है। वह मना नहीं कर सकता है और मुख्यमंत्री जब भी कहें उन्हें विधानसभा की बैठक आयोजित करनी होगी।’
वरिष्ठ वकील ने कहा कि यह मुख्यमंत्री को देखना है कि कोरोना वायरस का खतरा होगा या नहीं। सिंह ने कहा, ‘यह राज्यपाल को नहीं देखना है। वह लोगों को नियमों का पालन करने और सामाजिक दूरी बनाए रखने का निर्देश दे सकते हैं। लेकिन वह मुख्यमंत्री को मना नहीं कर सकते हैं।’ संविधान के अनुच्छेद 163 (1) का हवाला देते हुए उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य है।
‘मंत्रिपरिषद की सलाह मानना बाध्यकारी’
शीर्ष अदालत ने कहा था, ‘राज्यपाल महज संवैधानिक प्रमुख होता है। उसकी कार्यकारी शक्तियां मंत्रिपरिषद् की सलाह और सहयोग पर निर्भर करती हैं। चूंकि ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि राज्यपाल अपने निजी फैसले के मुताबिक कार्य करें, इसलिए उन्हें मंत्रिपरिषद की सलाह मानना बाध्यकारी है।’ राजस्थान उच्च न्यायालय ने शुक्रवार की सुबह में आदेश दिया कि सचिन पायलट सहित कांग्रेस के 19 बागी विधायकों को विधानसभा अध्यक्ष की तरफ से जारी अयोग्यता नोटिस पर यथास्थिति बनाए रखी जाए।