सेना के इतिहास में पहली बार महिला अधिकारियों का स्थायी सेवा के लिए चयन

नई दिल्ली। भारतीय सेना के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि पचास प्रतिशत महिला अधिकारियों का स्थायी सेवा के लिए चयन हुआ है। जिन महिला अधिकारियों को स्थायी सेवा मिली है वे सेना में अपने पूरे कार्यकाल तक सेवाएं दे सकेंगी और वो समय समय पर पदोन्नति की पात्र भी बन जाएंगी।

यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश की वजह से ही संभव हो पाया है। सेना के मुताबिक स्थायी सेवा यानी परमानेंट कमिशन (पीसी) के लिए जिन 615 महिला प्रत्याशियों का मूल्यांकन किया गया था उनमें से 300 को चुन लिया गया है।

मीडिया में प्रकाशित खबरों में दावा किया गया है कि जिन महिला अधिकारियों का चयन नहीं हो पाया उनमें चयन के मानदंडों पर खरी ना उतरने वाली और मेडिकल जांच में उत्तीर्ण ना होने वाली प्रत्याशियों के अलावा वो महिला अधिकारी भी शामिल हैं जिन्होंने स्थायी सेवा नहीं चुनी।

ऐसी महिला अधिकारी 20 सालों की सेवा के बाद सेवानिवृत्त हो जाएंगी और उन्हें पेंशन भी मिलेगी। अब जिन महिला अधिकारियों को स्थायी सेवा मिली है वे सेना में अपने पूरे कार्यकाल तक सेवाएं दे सकेंगी और वो समय समय पर पदोन्नति की पात्र भी बन जाएंगी।

मालूम हो कि 13 लाख सिपाहियों और अधिकारियों वाली भारतीय सेना में 43,000 अधिकारी हैं जिनमें महिला अधिकारियों की संख्या लगभग 1,600 है।

 

सेना में अभी महिलाओं की भर्ती शॉर्ट सर्विस कमिशन के जरिए किया जाता था, लेकिन फरवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने सेना में लिंग के आधार पर भेदभाव को खत्म करने का आदेश दिया था।

उसके बाद सेना ने अपनी 10 शाखाओं में महिला अधिकारों को स्थायी सेवा देने के लिए चयन प्रक्रिया शुरू कर दी थी।

सेना की कानूनी और शिक्षा संबंधी शाखाओं में महिला अधिकारियों को इसके पहले से स्थायी सेवा  दिया जा रहा था, लेकिन अब ये बाकी आठ शाखाओं में भी हो पाएगा।

इसके लिए एक विशेष चयन बोर्ड का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष एक लेफ्टिनेंट जनरल थे। बोर्ड में ब्रिगेडियर रैंक की एक महिला अधिकारी भी थी।

हालांकि महिला अधिकारियों को अभी भी लड़ाई की किसी भी भूमिका में शामिल होने की अनुमति नहीं है। नौसेना में भी महिलाएं लड़ाकू जहाजों और सबमरीनों में सेवा नहीं कर सकती हैं। सिर्फ वायु सेना में महिलाएं लड़ाकू भूमिका में सक्रिय हैं।

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