हमारी शिक्षा व्यवस्था-एक रोचक एवं गंभीर संस्मरण

प्रोफ़ेसर अशोक कुमार

राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर के शिक्षा के कई प्रांगण है। राजस्थान विश्वविद्यालय के मुख्य प्रांगण में स्नातकोत्तर एवं शोध कार्य होता है।

विश्वविद्यालय के स्नातक की कक्षाएं लड़कियों के लिए महारानी कॉलेज में , विज्ञान के विद्यार्थियों के लिए महाराजा कॉलेज में, वाणिज्य के विद्यार्थियों के लिए कॉमर्स कॉलेज में , एवं आज के भी संदर्भ में कला एवं साहित्य के विषयों के लिए राजस्थान कॉलेज में शिक्षक शिक्षण का कार्य होता है! बात बहुत पुरानी है। लेकिन आज के संदर्भ में भी बहुत महत्वपूर्ण है।

बात सन 1998 की है , मुझे उस वर्ष महाराजा कॉलेज में स्नातक की कक्षाओं के प्रवेश के लिए अधिकारी बनाया गया ! उस वर्ष हमने यह भी सुनिश्चित किया की विद्यालय में कक्षाएं नियमित रूप से संचालित हों और विद्यार्थियों की संख्या अधिकतम हो ! इस कार्य के लिए मुझको जिम्मेदारी दी गई।

कॉलेज के प्रांगण में जब भी विद्यार्थी आए तो यह अवश्य सुनिश्चित करें कि उनके पास पुस्तक तथा शिक्षण के लिए विभिन्न सामग्री होनी चाहिए।

एक दिन की बात है कि मैं विद्यालय के प्रांगण में छात्रों के आगमन को देख रहा था तभी एक विद्यार्थी ने विद्यालय में प्रवेश किया लेकिन उसके हाथ बिल्कुल खाली थे ! उसके पास कोई पुस्तिका , कोई पुस्तक, यहां तक की लेखन के लिए भी कोई सामग्री नहीं थी।

मैंने उसको रोका और मुस्कुराते हुए पूछा : क्या नाम है तुम्हारा ? उसने अपना नाम बताया। मैंने उससे प्रश्न किया :यहां इस विद्यालय के प्रांगण में तुम किस लिए आए हो, क्या तुम चाय पीने आए हो, नाश्ता करने आए हो, क्या करने आए हो । यह सुनकर विद्यार्थी मुस्कुराने लगा और उसने कहा कि मैं तो बहुत समय बाद कक्षा में जाना चाहता हूं और देखना चाहता हूं।

मैं बहुत आश्चर्यचकित हुआ, मैंने उससे कहा कि तुम्हारे पास तो किसी भी प्रकार की शिक्षण सामग्री ही नहीं है , तुम तो बिल्कुल खाली हाथ हो , क्या इस तरह कक्षाओं में जाते हैं ।

विद्यार्थी मुस्कुराया और बोला मैं तो कुछ समय बिताने के लिए यहां पर आया हूं ! मैंने कहा इस प्रकार से मैं तुमको कक्षा में नहीं जाने दूंगा। वह एक बार फिर मुस्कुराया और उसने मुझसे पूछा गुरु जी यह बताइए की कक्षा में जाने में क्या लाभ है, क्या फायदा है।

यह सवाल मेरे लिए भी बहुत ही मुश्किल था ! मैंने उसको विभिन्न बातों की ओर ध्यानाकर्षण किया : कक्षा में जाने से विषय के ज्ञान की प्राप्ति होती है तुम अपने सहपाठियों से मिलते हो, विभिन्न प्रकार के शैक्षणिक और सामाजिक सीख तुमको मिलती है जो कि तुम्हारे जीवन में अत्यंत लाभदायक हो सकती है।

यदि तुमको आगे बढ़ना है तो शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जो कि किसी व्यक्ति को ऊंचे ऊंचे स्थान पर ले जा सकता है । यह सुनकर छात्र कुछ देर तक शांत रहा फिर उसने मुझसे एक और प्रश्न किया : कक्षा में आने के क्या इतना ही लाभ है ! गुरु जी मैं आपको कक्षा ना आने के इससे ज्यादा लाभ बताता हूं ।

मैं एकदम से हतप्रत हो गया और छात्र की ओर देखने लगा ! उसने मुझसे बहुत गंभीर वार्ता करी और मेरा ध्यानाकर्षण किया और कहा कि गुरु जी वर्तमान समय में हर कक्षा में प्रवेश पाने के लिए छात्रों को प्रवेश परीक्षा देनी होती है यदि इस प्रवेश परीक्षा में छात्र उत्तीर्ण ना हो , उसका नाम मेरिट लिस्ट में ना हो तब वह कक्षा में प्रवेश नहीं पा सकता।

उसने कहा कि मुझे बी।BSc करने के बाद MSc करना है और MSc में प्रवेश परीक्षा है !गुरु जी आप भी जानते हैं कक्षा में वर्तमान समय में उपस्थिति के कोई मायने नहीं होते मैं कक्षा में 1 दिनों के लिए आऊँ या कक्षा में ना आऊँ तब भी मुझे कोई परीक्षा देने से नहीं रोक सकता।

एक और भी महत्वपूर्ण बात है कि मेरे यदि बीएससी में 90% भी आयें या उससे ज्यादा भी अंक आ जाए लेकिन यदि में एमएससी की प्रवेश परीक्षा में सफल नहीं हो सका तब यह मेरे बीएससी के 90% अंक कोई मायने नहीं रखते इसलिए मेरा मेरा पूरा ध्यान एमएससी की प्रवेश परीक्षा की तैयारी करना है।

गुरु जी आप बुरा ना माने तो एक बात कहूँ : प्रवेश परीक्षा का प्रश्न पत्र आप गुरु लोग ही बनाते हैं और परीक्षा में ऐसे प्रश्न पूछते हैं जो गुरु लोग कक्षा में नहीं पढ़ाते।

इसके लिए छात्रों को कोचिंग केंद्र में जाना होता है। जहां पर उन्हें प्रवेश परीक्षा के लिए शिक्षा दी जाती है, तैयारी करी जाती है ! इसलिए गुरु जी आप खुश रहिए, स्वस्थ रहिए, छात्रों को भी खुश रहने दीजिए। आप तो बस वेतन लीजिए और हम लोगों को आशीर्वाद दीजिए। मैंने उस छात्र की बात सुनकर उससे पूछा कि जब तुमको इतनी पारदर्शिता है तब तुमने महाराजा कॉलेज में प्रवेश क्यों लिया।

यह सुनकर छात्र जोर से हंसा और बोला गुरुजी महाराजा कॉलेज में प्रवेश तो मैंने एक विद्यार्थी का परिचय पत्र पाने के लिए लिया है।

इसके अतिरिक्त कॉलेज का छात्र होने के कारण मुझे बस में, रेलवे में, सिनेमाघर में एवं अन्य स्थानों में इसका लाभ मिलता है।मैंने एक बार फिर कहा लेकिन तुम विद्यालय में फीस जमा करते हो उसका क्या मतलब है ! छात्र ने कहा गुरुजी मैंने तो फीस के समकक्ष पुस्तकालय से किताबें ले रखी है ! यदि मैं पास हो गया तब पुस्तकें वापस कर दूंगा अन्यथा नहीं।

यह सुनकर छात्र कक्षा में तो नहीं गया लेकिन एक बहुत ही गंभीर प्रश्न मेरे लिए छोड़ गया मैं आज भी उसके उत्तर के लिए चिंतित रहता हूं । वास्तव में आज विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालयों में छात्रों की उपस्थिति धीरे-धीरे नगण्य होती जा रही है और समानांतर रूप से कोचिंग केंद्र पर संख्या बढ़ती जा रही है।

आज औपचारिक शिक्षा ( Formal Education) खतरे में है !यदि इसको हमें बचाना है तो इस पर हमें विचार करना पड़ेगा।विशेष तौर पर हमें अपनी प्रवेश की नीतियों पर भी पुनर्विचार करना पड़ेगा।मेरा व्यक्तिगत मानना है की इस प्रवेश नीतियों के कारण विद्यार्थी विश्वविद्यालय / महाविद्यालय में ना जाकर कोचिंग केंद्र में जा रहे हैं ! क्या आपने कभी इसके बारे में सोचा है ? मेरा आप सभी से निवेदन है कि आप इस विषय पर गंभीरता से विचार करें और औपचारिक शिक्षा ( (Formal Education ) को बचाएं !

(लेखक पूर्व विभागाध्यक्ष प्राणीशस्त्र विभाग , राजस्थान विश्वाविद्यालय ,जयपुर , पूर्व कुलपति, डीडीयू गोरखपुर विश्वविद्यालय और सीएसजेएम विश्वविद्यालय कानपुर, सीएसए कृषि विश्वविद्यालय कानपुर, वैदिक विश्वविद्यालय निम्बाहेड़ा, निर्वाण विश्वविद्यालय जयपुर हैं ) 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here