– कम लागत और कम पानी में 95 दिनों में तैयार होती है ग्रीष्मकालीन तिल की फसल
-किसानों की आमदनी दोगुनी करने की दिशा में अब वैज्ञानिकों की पहल लायी रंग
हमीरपुर। जनपद में ग्रीष्मकालीन गुजरात तिल 2 व 5 प्रजाति की फसलें अब लहलहा रही हैं। कृषि विज्ञान केन्द्र के चार सदस्यीय वैज्ञानिकों की टीम ने बुधवार को गोहांड ब्लॉक के चिल्ली गांव में पहुंचकर नवीनतम तकनीक की फसल का स्थलीय निरीक्षण किया। किसानों के साथ खेतों में तिल की गुजरात प्रजाति की फसलें देख वैज्ञानिकों के चेहरे खुशी से खिल उठे हैं।
कुरारा कृषि विज्ञान केन्द्र की वैज्ञानिक डॉ. शालिनी की विशेष पहल पर पहली मर्तबा जनपद में गर्मी के मौसम में होने वाली गुजरात की तिल प्रजाति-3 व 5 की फसलें बोयी गयी हैं जो अब खेतों में लहलहा रही हैं। इस फसल के परिणाम जानने के लिये वैज्ञानिकों की एक टीम ने गोहांड ब्लॉक के चिल्ली गांव में स्थलीय निरीक्षण किया है।
वैज्ञानिक डॉ. शालिनी ने बताया कि अब किसान मात्र तीन माह की ग्रीष्मकालीन तिल की फसल की फरवरी के मध्य से मार्च के मध्य में बोआई कर सकता है। इससे किसानों को भारी लाभ मिलेगा। इस फसल को बोने से ग्रीष्म कालीन ऋतु में खेत खाली भी नहीं रहेगा और बोआई करने से शासन की मंशा के अनुसार किसानों की आमदनी दोगुनी करने में भी ये फसल मील का पत्थर साबित होगी।
उन्होंने बताया कि इस प्रजाति की फसल में सात से आठ कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन रहने की प्रबल संभावना है। चिल्ली गांव के किसान रघुवीर सिंह के खेत में गुजरात की तिल की फसल का निरीक्षण करने के दौरान वैज्ञानिक हतप्रभ रह गये। किसानों ने वैज्ञानिकों के सामने कहा कि अब अगले साल ये फसल की जायेगी।
रघुवीर सिंह का कहना है कि बहुत कम खर्च और कम पानी में ये फसल 90 से 95 दिनों के अंदर पककर तैयार हो जाती है। उन्होंने कहा कि आगामी साल में गांव के किसानों को बीज देकर अधिक से अधिक क्षेत्रफल में तिल की बोआई करायी जायेगी।
इस मौके पर कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ. प्रशांत कुमार, डॉ. फूल कुमारी, डॉ. एसपी सोनकर व शिवम मिश्रा तथा अरविन्द के अलावा तमाम किसान मौजूद रहे।