हाय ताज! हम तुम्हारी नींव ही कमजोर होते देख रहे

ताजमहल के मंदिर होने का दावा समय-समय पर किया जाता रहा है, हालांकि इस बारे में अबतक कोई छोटा प्रमाण भी सामने नहीं लाया गया है। यह मुद्दा प्रशासनिक कौशल से ही निबटा लिया जाने वाला है। असली खतरा ताजमहल की संरचना को हो रहा नुकसान है जबकि भारत में विदेशी पर्यटन के केन्द्र में ताजमहल ही रहता है और देश के विभिन्न हिस्सों से भी भारी संख्या में लोग इसे देखने ही आगरा को अपने रूट में रखते ही हैं।

दरअसल, पिछले दिनों ताजमहल के केन्द्रीय गुंबद की दीवार पर बड़ा-सा पौधा उगा दिखा। ऐसा वहां बरसाती पानी के ठहर जाने की वजह से था। बारिश का यही रिसता हुआ पानी नीचे मुगल शासक शाहजहां और उनकी पत्नी मुमताज महल की कब्रों तक पहुंच गया। माना जाता है कि शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में इसे बनवाया था। इसका निर्माण 1632 में शुरू हुआ जो 1648 में खत्म हुआ। वैसे, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को इस इमारत में वर्षा का पानी इस तरह रिसने की बात कोई खास नहीं लगती और उसने कहा कि “लगातार भारी बारिश के कारण पानी की कुछ बूंदें देखी गईं। यह कोई गंभीर संरचनात्मक मुद्दा नहीं है।“

सन 1983 में यूनेस्को द्वारा घोषित विश्व विरासत ताजमहल को खतरा चौतरफा है लेकिन जो भी उपाय हो रहे हैं, वे सब सतही। ताजमहल का सफेद संगमरमर पीला पड़ रहा है लेकिन पिछले करीब तीस साल से इस पर सरकारें चिंता भर ही जताती रही हैं। वैसे, समय-समय पर कुछ उपाय किए गए हैंः जैसे, आगरा में गोबर के उपलों और तंदूर वगैरह जलाने पर रोक; यहां से विभिन्न उद्योगों को हटाना ताकि प्रदूषण न फैले, आदि।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद ताज से सटे श्मसान घाट को न तो हटाया जा सका है, न धोबी घाट को ही। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कई बार कहा है कि ताजमहल के आसपास नाईट्रोजन आक्साईड, सल्फरडाई आक्साईड और एसपीएम की मात्रा निर्धारित मात्रा से चार गुना अधिक हैं। अन्य कारणों के अलावा इसकी वजह यह भी है कि आगरा शहर के सभी नाले बगैर किसी उपचार के यमुना में गिर रहे हैं और इसे रासायनिक अपशिष्ट और शहरी गंदगी का नाला बना दिया गया है।

प्रदूषण कम करने के नाम पर शायद सबसे बड़ा काम यही हुआ है कि शहर में चलने वाले डीजल के टेम्पो को हरे रंग से पोत दिया गया है! उद्योगों को हटाने के नाम पर यह भी हुआ है कि इसकी आड़ में अधिकांश गरीब पुश्तैनी कारीगरों और छोटे उद्योगों पर गाज गिराई गई है। एक जनहित याचिका पर सन 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने लगभग साढ़े 500 उद्योगों को ताजमहल की खातिर बंद करवा दिया था लेकिन इनमें से अधिकांश कारखानों ने प्रदूषणरोधी संयत्र लगवाने की सूचना के साथ प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सर्टिफिकेट दे दिए, तो अदालत ने फिरोजाबाद क्षेत्र के 65 उद्योगों को छोड़कर शेष सभी को चलाने की अनुमति दे दी। लेकिन  आगरा से सटे मथुरा, फिरोजाबाद, हाथरस, भरतपुर और अलीगढ़ के कई कारखाने हर रोज सैंकड़ों टन सल्फर डाय आक्साईड गैस अब भी छोड़ रहे हैं। समझा ही जा सकता है कि इन सबका कितना असर  ताजमहल के संगमरमर पर हो रहा है और वह क्यों काला या पीला हो रहा है।

वैसे, ताजमहल को सबसे बड़ा नुकसान यमुना के बहाव को लेकर है। ताजमहल को बनाते समय उसकी नींव को नदी के जल स्तर तक खोदा गया था। फिर ककईर्या ईंटों (पतली ईंटें) और चूने से कुएं की आकृति की नींव तैयार की गई थी। यहां कोई साढ़े तीन सौ कुएं हैं जिनमें चूना और लकड़ी का बुरादा भरा है। उस वक्त ध्यान रखा गया था कि इसकी नींव सदैव यमुना के पानी से तर रहे। यमुना के साथ लगातार खिलावड़ों के कारण यह व्यवस्था छिटक गई है। इसकी मीनारों का झुकाव नदी की ओर बढ़ने और मुख्य इमारत में आ रही दरारों की एक बड़ी वजह यही है।

ताजमहल को सबसे बड़ा खतरा तो यमुना का बहाव बदलने से है। आजादी से पहले सन 1942 में सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में बताया गया था कि ताज यमुना नदी में 1.44 इंच धंस गया है। तभी सन 1942 में ही मीनारों पर पर्यटकों के जाने पर रोक लगा दी गई थी जो अब भी जारी है। यमुना नदी को छेड़ते रहने का यह सिलसिला अब भी जारी है जबकि समय-समय पर कई रिपोर्टों में इस खतरे को रेखांकित किया गया है।

सन 1965 में प्रसिद्ध इतिहासविद् प्रो. रामनाथ ने सर्वेक्षण के बाद बताया था कि यदि ताज के सौंदर्य को अक्षुण्ण रखना है तो जरूरी है कि यमुना में पानी का स्तर उतना ही रखा जाए जितना 17वीं शताब्दी में यहां हुआ करता था। सन 1993 में रुड़की विश्वविद्यालय के इंजीनियरों के एक दल ने भी ताज की  मीनारों के लगातार झुकने की वजह यमुना में पानी की कमी बताई थी। सिविल इंजीनियरिंग विभाग के तीन विशेषज्ञों के दल ने जांच के बाद चेताया था कि ताजमहल स्वयं के वजन के कारण जमीन में 80 मिलीमीटर धंस गया है।

ताज को लेकर सुप्रीम कोर्ट और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के कड़े निर्देश लगातार रहे हैं, फिर भी सन 2000 में ताजमहल और आगरा के किले के बीच कॉरीडोर बनाने का काम शुरू हो गया था। यही नहीं, नदी किनारे का पानी सुखाकर वहां बाजार बसाने की योजना तक बनने लगी थी। बाद में कोर्ट की दखल से काम तो रुक गया, पर ताज को बहुत कुछ नुकसान हुआ। यमुना में जो बंधान का काम हुआ, उससे नदी का बहाव प्रभावित हुआ। करेले पर नीम यह कि इस अधूरे पड़े कॉरिडोर को आगरा नगर निगम ने शहरभर का कचरा डंप करने की खंदक बना लिया है। कचरे के सड़ने से निकलने वाली मीथेन गैस संगमरमर की सेहत के लिए बेहद नुकसानदेय है।

ताज की ताजातरीन समस्या उसके पत्थरों और नक्कासी के जगह-जगह से चटकने की है। मुख्य इमारत के बाहरी हिस्से में जहां बेहतरीन, नफीस नक्कासी है, वहां गहरी दरारें देखी जा सकती हैं। इसके खंबों पर संगमरमर भी कई जगह चटक गया है। सरकारी अफसर इसे कोई बड़ी समस्या नहीं मानते,  इन दिनों ताजमहल को ‘फेस पैक’ लगाया जा रहा है। कोशिश है कि ‘मसाज’ कर उसकी रंगत को वापस लाया जाए।

पुरातत्व विभाग इस पर मुल्तानी मिट्टी का लेप कर इसकी चमक वापसी का दावा कर रहा है। पिछले अनुभव सामने हैं कि इस तरह के लेप से कुछ महीनों तक तो ताज चमकता है लेकिन बाद में इसकी हालत पहले जैसी ही हो जाती हैं । वास्तव में मुल्तानी मिट्टी ‘ फुलर्ज अर्थ’ है जिसका मूल रसायन एल्यूमिनियम सिलिकेट होता है। इस रसायन का इस्तेमाल भेड़ों की ऊन साफ करने में एक रंजक या ब्लीच के तौर पर होता है। इस मिट्टी के पेस्ट को  ताजमहल की बाहरी दीवारों पर लगाया जाता है। दो दिनों में यह पेस्ट अपने आप गिर जाता हैं । इसके बाद संगमरमर की सतह को डिस्टल  वाटर से साफ किया जाता है। इससे पहले सन 1994, 2001 और 2008 में भी ऐसे लेप लगाए गए थे। कहीं ऐसा तो नहीं कि आने वाले दिनों में ऐसे लेप की जरूरत कहीं हर साल होने लगे!

ताजमहल को बचाने के लिए  तीन तरफा  योजना के जरूरत हैः एक, उसकी संरचना में धूल-मिट्टी या जल रिसाव न हो। इसके लिए इस पर नियमित निगाह रखनी होगी और कोई समस्या होने पर उसका तत्काल निदान करना होगा। दूसरा, ताज के पास यमुना की धारा अविरल और शुद्ध रखना। यह सबसे महत्वपूर्ण लेकिन सबसे कठिन काम है, पर दुर्भाग्यवश इस ओर कुछ होता नहीं दिख रहा। यमुना के प्रदूषण पर दिल्ली तक में गंभीरता से कोई काम नहीं हो रहा, तो आगरा की कौन सोचे! तीसरा, ताज के 100 किलोमीटर दायरे के निवासियों को  स्वच्छ परिवेश के प्रति संवेदनशील बना कर  दूरगामी योजना पर काम करना। लेकिन इस पर तो शायद कुछ सोचा भी नहीं जा सका है।

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