नवेद शिकोह
लोकसभा चुनाव की तैयारियों में भाजपा पिछड़ों को साधने के लक्ष्य पर सफल होती नजर आ रही है। अगड़ों का तो पंरपरागत साथ रहा है, ग़ैर यादव पिछड़ी जातियों का विश्वास बर्करार रखने के साथ पसमांदा मुस्लिम समाज को भी अपनाने के प्रयास शुरू हो चुके हैं। सबका साथ और सबका विश्वास जीतकर एनडीए का विकास करने में जुटी भाजपा अपने वोट बैंक के गुलदस्ते में हिन्दुत्व की महक के साथ सभी जातियों और धर्मों के फूल सजाना चाहती है।
क्षेत्रीय दलों की जातिवादी राजनीति की काट के लिए उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जातियों के छोटे दलों और नेताओं को एनडीए की ताक़त बनाने में सफल हो रही पार्टी ने लोकसभा चुनाव से पहले ही सबसे बड़े विपक्षी दल सपा को मात देना शुरू कर दी है। पिछले विधानसभा चुनाव में सपा गठबंधन की ताक़त बने पूर्वांचल में पकड़ रखने वाली पार्टी सुभासपा अध्यक्ष ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद एनडीए से जुड़ने का एलान कर दिया।
सपा विधायक दारा सिंह चौहान का भी भाजपा का दामन थामने के बाद सपा के कई नेता अपनी पार्टी को टाटा बाय बाय करने जा रहे हैं, चर्चाएं ये भी हैं। कई सपा विधायक भाजपा के संपर्क मे हैं ये दावा ओमप्रकाश राजभर कर ही चुके हैं। यूपी की तमाम पिछड़ी जातियों में असर रखने वाली सुभासपा से पहले अपना दल (एस) और निषाद पार्टी यूपी में एनडीए की ताक़त है ही । रघुराज प्रताप सिंह राजा भइया का जनसत्ता दल भी एनडीए का हिस्सा बनकर यूपी में भाजपा को ताकत दे सकता है। इन सबका अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग जातियों का जनाधार है।
ऑक्टोपस की तरह भाजपा की मल्टी भुजाएं
हरफनमौला एक्टर टाइप्ड (अभिनव की एकरूपता) नहीं होता,वो हर किरदार निभाने की काबिलियत रखता है। ऐसे कलाकार की तरह अपने जनाधार का दायरा संकुचित ना रख कर भाजपा समाज के हर वर्ग का चेहरा बनना चाहती है। पार्टी हर वर्ग में अपनी पकड़ मजबूत करने का निरंतर प्रयास जारी रखें हैं।
लोकसभा चुनाव से करीब नौ महीने पहले जीत के लक्ष्य के भ्रूण की एहतियात में लगी पार्टी एनडीए परिवार को बढ़ाने में भरसक प्रयासरत हैं। पार्टी जानती है कि हमेशा से ही उत्तर प्रदेश उसकी सबसे सशक्त प्रयोगशाला रही है। यहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता का जादू सिर चढ़कर बोल रहा है। दंगा मुक्त और बुलडोजर युक्त इस सूबे से ही काशी, मथुरा और अयोध्या में राम मंदिर के शुभारंभ से लेकर यूसीसी (सामान्य नागरिक संहिता) की बयार देशभर में भाजपा को लाभ दे सकती है।
बावजूद इसके पार्टी ख़तरों पर भी नज़र गढ़ाए है। संभावित महागठबंधन के अग्रणी नेताओं में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जातिगत राजनीति का रंग बिखरा तो भगवा का रंग फीका पड़ सकता है। इस आशंका से भाजपा ने अपनी प्रयोगशाला यूपी में ग़ैर यादव पिछड़ी जातियों को साधने की कवायद तेज कर दी गई है। यूपी के पिछले विधानसभा चुनाव की तरह मुस्लिम वोट भाजपा के विरुद्ध लामबंद ना हो इसलिए पसमांदा मुस्लिम समाज का दिल जीत कर उन्हें नर्म करने की भी कोशिश की जा रही है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की इस नई भाजपा की यही ताक़त है कि इसके पास एक ताक़त नहीं बहुरंगी शक्तियां हैं। कभी ये पार्टी अपर कास्ट की कही जाती थी, हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद के दो पैरों से कदमताल करती थी। आज इसके पास भारतीय समाज के हर वर्ग को साथ लाने की कई भुजाएं हैं। दलित समाज से लेकर पिछड़े-अति पिछड़ों के विश्वास हासिल करने के बाद मुस्लिम समाज की अस्सी फीसद आबादी वाले पसमांदा समाज पर भी पार्टी ने डोरे डालना शुरू कर दिए हैं।बिहार और यूपी के क्षेत्रीय दलों और नेताओं की जातिवादी राजनीति से निपटने के लिए भाजपा पूरी तरह चौकन्ना है।
विरोधियों का केंद्र बनाकर विपक्षी गठबंधन की पहली बैठक वाले बिहार में जीतनराम मांझी से लेकर चिराग पासवान और अन्य पिछड़ी जातियों के नेताओं व उनके छोटे-छोटे दलों को साधने में भाजपा किसी हद तक सफल हो ही चुकी है। और अब यूपी में सबसे बड़े विपक्षी दल सपा को कमजोर करने का लक्ष्य है। इसके लिए मुस्लिम वोट बैंक के बिखराव से लेकर गैर यादव ओबीसी को पूरी तरह अपने पाले में लाना पार्टी का मुख्य उद्देश्य है।
उधर अखिलेश यादव जो पिछड़ों की पार्टी सपा के सबसे बड़े नेता हैं वो अपने गठबंधन में अभी तक एक भी पिछड़ी जाति के किसी नेता या दल को जोड़ने में सफल नहीं हुए हैं। यानी जो बच्चा (यूपी भाजपा)पढ़ने में पहले ही तेज है वो परीक्षा की तैयारी में भी एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाए हैं और जो पढ़ाई में कमजोर है (सपा)वो एक्जाम की तैयारियों में भी कमजोर साबित हो रहा है।
राजनीतिक पंडित कहने लगे हैं कि भले ही देश के कुछ राज्यों में भाजपा कमजोर पड़ गई हो पर योगी आदित्यनाथ का यूपी भाजपा की ताक़त का सबसे बड़ा और मज़बूत किला बना हुआ है। भाजपा कभी राम भरोसे थी पर अब योगी भरोसे है। यूपी में भाजपा और उसके सहयोगी दलों में दलितों-पिछड़ों का बढ़ता कुनबा देखकर लगता है कि जिस तरह बसपा के पास दलित समाज हाफ भी नहीं बचा वैसे ही सपा से पिछड़ों का जनाधार साफ हो सकता है।