हिमाचल में मंदा पड़ा ‘परिवारवाद’ का नारा, कांग्रेस-भाजपा ने मुद्दे पर साधी चुप्पी

मंडी। हिमाचल विधानसभा चुनाव में परिवारवाद की बात अब भाजपा और कांग्रेस के लिए एक बराबर हो गई है। पहली बार चुनाव में भाजपा ने भी परिवारवाद के आगे घुटने टेक दिए हैं, क्योंकि मंडी जिले के धर्मपुर, सुंदरनगर ,सदर मंडी में नेताओं के पुत्र-पुत्री चुनावी जंग में हैं, जिन्हें अब अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे ले जाने की चुनौती पूरी करनी होगी।

धर्मपुर की राजनीति में 1993 से अंगद के पांव की तरह जमे भाजपा के महेंद्र सिंह ठाकुर ने अपने पुत्र रजत ठाकुर को टिकट दिला कर भाजपा में नामुमकिन जैसे लगते काम को मुमकिन करवा कर ही दम लिया, हालांकि टिकट कटने से बेटी वंदना गुलेरिया बागी हो गई थीं, लेकिन उन्हें मना लिया गया। ऐसे में अब रजत के लिए पिता की विरासत को आगे ले जाना एक बड़ी चुनौती है।

सुंदरनगर से 6 बार भाजपा के विधायक रहे पूर्व मंत्री ठाकुर रूप सिंह ने भी अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे अभिषेक ठाकुर को सौंप दी है। अभिषेक सालों से क्षेत्र में सक्रिय हैं। जब उन्हें लगा कि पार्टी राकेश जमवाल का टिकट नहीं काटेगी और उन्हें भाजपा का टिकट नहीं मिलेगा तो सुकेत मंच के माध्यम से सामने आकर उन्होंने शक्ति प्रदर्शन किया और अब आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में हैं, लेकिन सुंदरनगर का मैदान मारना उनके लिए एक बड़ी चुनौती की तरह है।

कौल सिंह की बेटी चंपा ठाकुर मंडी सदर से चुनाव लड़ रही हैं। मंडी सदर कौल सिंह का क्षेत्र नहीं रहा है। ऐसे में उनकी विरासत वाली बात तो नहीं, मगर अपनी बेटी, जो 4 बार अलग-अलग वार्डों से जिला परिषद की सदस्य रह चुकी हैं व चेयरमैन भी रही हैं, को राजनीति में स्थापित करना, उनके लिए भी एक बड़ी चुनौती है।

जहां कौल सिंह को अपने ढंग क्षेत्र में अपने लिए मेहनत करनी होगी, वहीं अपनी बेटी के लिए भी देर सवेर काम करना ही होगा। हालांकि चंपा का यह दूसरा विधानसभा चुनाव है, मगर टक्कर चूंकि सुख राम परिवार से हैं और अनिल शर्मा सामने हैं। ऐसे में कौल सिंह और चंपा ठाकुर के लिए भी चुनौती कम नहीं है।

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