अंर्तविरोध और घमासान: कई मोर्चों पर अकेले लड़ते राहुल

यशोदा श्रीवास्तव

कांग्रेस के प्रति सहानुभूति रखने वालों को पंजाब प्रांत के नवनियुक्त कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू का हालिया बयान जरूर विचलित किया होगा जिसमें उन्होंने कहा है कि उन्हें यदि स्वतंत्र रूप से काम नहीं करने दिया गया तो वे ईंट से ईंट बजा देंगे। सीधे -सीधे धमकी भरा उनका एलान किसी और को नहीं कांग्रेस आलाकमान को था।

सिद्धू के इस बयान के बाद पंजाब प्रदेश के प्रभारी व उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का यह कहना कि वे पंजाब के प्रभार से मुक्त होना चाहते हैं, पंजाब कांग्रेस के अंर्तविरोध और घमासान के सच्चाई की अभिव्यक्ति है।

पंजाब की राजनीति पर गौर करें तो साफ दिखता है कि वहां कांग्रेस के अलावा किसी अन्य पार्टी के लिए कुछ खास नहीं है। भाजपा शिअद के बिना कुछ नहीं है। अकेले दम पर अभी उसके सिर्फ तीन विधायक हैं। कांग्रेस के 70 हैं।

पंजाब में कांग्रेस का मतलब कैप्टन अमरिंदर! सिद्धू लंबे समय तक बीजेपी में रहे है। उनके ऐसे ही बयानबाजी की वजह से ही भाजपा उनसे पीछा छुड़ा ली। वे कांग्रेस में आ गए। कांग्रेस में उन्हें खूब सम्मान मिलता रहा। वे हाईकमान के सीधे टच में बने रहे।

सिद्धू कैप्टन के मिजाज के खिलाफ सदैव रहे हैं। दोनों में हमेशा 36 का आंकड़ा रहा। कैप्टन से तनातनी की वजह से सिद्धू उनके मंत्रिमंडल से रुखसत हुए थे।कैप्टन की मर्जी के खिलाफ हाई कमान द्वारा सिद्धू का लगातार मानमानौवल किया जाता रहा।

अंततः सिद्धू की पंजाब प्रदेश अध्यक्ष पद पर ताजपोशी भी हुई जो कैप्टन के मंशा के विपरीत है। अध्यक्ष पद पर सिद्धू की तैनाती के बाद चर्चा तेज थी कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस हाईकमान के पास अपने त्यागपत्र की चिट्ठी तक पंहुचा दिया था। बाद में किसी तरह मामला शांत हुआ।

पंजाब की राजनीति में  सिद्धू की पहचान “ठोको ताली” और उनकी बिंदास तेवर की वजह से थोड़ा हटकर है। जानकार कहते हैं कि सिद्धू यदि कांग्रेस से हट भी जायं तो भी वहां की सिायासत में कांग्रेस का कुछ भी बिगड़ने वाला नहीं लेकिन कांग्रेस में रहकर उनके उलटे सीधे बयानों से नुकसान जरूर हो रहा।इसका फायदा यदि थोड़ा बहुत  किसी के खाते में गया तो वह आम आदमी पार्टी हो सकती है। बसपा,भाजपा और अकेले दम पर शिरोमणि अकाली दल के हिस्से में कुछ खास नहीं आने वाला।

पंजाब में कांग्रेस की हालत देख ऐसा लगता है कि कांग्रेस नेतृत्व  खासकर राहुल गांधी को एक साथ कई मोर्चो पर लड़ना पड़ रहा है जिसमें सबसे बिकट लड़ाई पार्टी के भीतर की ही है।

पंजाब कांग्रेस के भीतर की जंग को कांग्रेस के ही कुछ लोग हवा दे रहे हैं। कैप्टन और सिद्धू के बीच की जंग पर वहां से कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी का तंज काबिले गौर है। सिद्धू के भाषण के वीडियो को ट्विट करते हुए उन्होंने हाई कमान पर तंज कसा कि “वे कत्ल भी करते तो चर्चा नहीं होती हम आह भरते हैं तो हो जाते बदनाम”! 

बता दें कि कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी कांग्रेस के असंतुष्ट 23 सदस्यों में से एक हैं। कांग्रेस के भीतर के इस असंतुष्ट गैंग के निशाने पर राहुल सदैव रहते हैं। एक साथ पार्टी के 23 सदस्यों से निपटना आसान नही है लेकिन राहुल खाामेशी के साथ इनसे भी लड़ रहे हैं।

कांग्रेस के भीतर की लड़ाई केवल पंजाब तक ही नहीं है। राजस्थान में अशोक गहलौत और सचिन पायलेट के बीच का मामला भी अनसुलझा है। हर रोज सचिन के धैर्य टूटने की खबरें अखबार और टीवी चैनलों की सुर्खियां रहती है।

देखने में लग रहा था की छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की सरकार बहुत अच्छे से चल रही है लेकिन अचानक ही बघेल और टीएस सिंह देव के बीच का मामला सामने आने से साफ हो गया कि वहां भी कांग्रेस की सेहत बहुत अच्छी नहीं हैं। कभी सामने नहीं आया लेकिन अब आया है कि वहां बघेल और सिंहदेव में कुर्सी को लेकर फिफ्टी फिफ्टी का करार था जिसकी अवधि जून में पूरी हो गई।

बघेल की ओर से सत्ता हस्तांतरण की पहल नहीं हुई तो सिंहदेव को खुद ही सामने आना पड़ा।उसके बाद सत्ता के इस डील का पर्दाफाश हुआ। खबर है कि छत्तीसगढ़ का मामला हाई कमान के साथ कई घंटे तक चली बैठक में साल्व कर लिया गया।

ऐसी विकट परिस्थति में कांग्रेस के उन लोगों का कुछ अता पता नहीं है जो लोग कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की मांग को लेकर कोप भवन में है। जानकारों का कहना है कि कांग्रेस का अंदूरूनी मसला भी कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने में बड़ी बाधा है।

कहना न होगा कि केंद सरकार के जनविरोधी नीतियों के साथ कांग्रेस के इन अंदरूनी मसलों से भी अकेले राहुल ही लड़ रहे हैं। राहुल को अकेले एक साथ कई लड़ाई लड़नी पड़ रही है।

केंद्र सरकार की नीतियां चाहे वह कृषि विल हो,राफेल सौदे में दलाली हो या देश की संपत्तियों का बेचा जाना हो, इस सबके खिलाफ किसी अन्य विपक्षी नेता की आवाज उठ रही हो,ऐसा न तो देखा जा रहा और न ही सुना गया।

सत्ता पक्ष द्वारा जितनी घेरेबंदी राहुल की हो रही हो उतनी शायद ही किसी विपक्ष के नेता की होती दिखी हो। यहां तक कि केंद्र सरकार के खिलाफ कांग्रेस के ही तमाम नेता खामोश हैं।केंद सरकार पर राहुल के एक अटैक पर सत्ता पक्ष के दर्जन भर मंत्रियों का उतर आना,बताता है कि सरकार अंदर से राहुल से किस तरह चौंकती है।

निसंदेह आज राहुल की कांग्रेस बड़ी तेजी से एक विकल्प के रूप में उभर रही है। 2022 और 023 में यूपी,उत्तराखंड, पंजाब सहित 4-5 प्रदेशों के विधानसभा चुनाव होने हैं।

यूपी छोड़ सभी चुनावी प्रांतो में कांग्रेस सत्ता के करीब है लेकिन पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ जैसे कांग्रेस शासित राज्यों में कांग्रेस की अंदरूनी घमासान जैसी खबर चुनावी राज्यों में कांग्रेस के लिए ठीक नहीं है।

यूपी का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठापरक है। यहां प्रियंका गांधी ने कमान संभाल रखा है। यूपी के हर जिलों में लगे प्रियंका गांधी के बड़े बड़े होर्डिंग इस बात के गवाह है कि यहां कांग्रेस कुछ कर गुजरने की तैयारी में है। वह यूपी के चुनाव को भाजपा के ही तर्ज पर लड़ने की तैयारी में है।

साफ्ट हिंदुत्व के जरिए वह हर वर्ग में पैठ बना रही है। दलित जो कभी कांग्रेस के परंपरागत वोटर रहे उन्हें फिरसे वापस लाने के लिए पार्टी के दलित फोरम द्वारा दलित चेतना रैली की तैयारी है तो ब्राह्मण वोटर कांग्रेस से जुड़ें इसके लिए यूपी विधानसभा में लगातार नौ बार जीतते रहे प्रमोद तिवारी को बड़ी जिम्मेदारी सौंपने की खबर है।

यूपी में कांग्रेस के तेजी से विस्तार को यूं देखा जाय कि आज गांव गांव पार्टी का ग्रामसभा अध्यक्ष है।पार्टी के तमाम वरिष्ठ नेता जिसमें अधिकतर युवा हैं, शहर शहर गांव गांव घूमकर यूपी चुनाव का मेनोफेस्टो तैयार किया जा रहा है।

मतलब यह कि आसन्न विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की इस तैयारी के बीच कांग्रेस के ही तमाम नेता किनारा किए हुए हैं। वह भी इसलिए कि राहुल न मजबूत हो जांय! मध्य प्रदेश के ज्योतिरादित्य सिंधिया हों या यूपी के जितिन प्रसाद या महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुस्मिता देव ,इनके पार्टी छोड़ने की मंशा कांग्रेस और राहुल को कमजोर होते देखना था लेकिन राहुल इस सबसे बेफिक्र अपनी राह चलते रहे। राहुल यदि डंके की चोट पर कहते हैं कि कांग्रेस के भेष में आरएसएस से ताल्लुक रखने वाले लोग बेहिचक चले जायं तो इसका मतलब उन्होंने कांग्रेस के जयचंदो की शिनाख्त कर ली है।

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