लखनऊ। यूपी में होने जा रहे निकाय चुनावों को लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल मानकर सभी राजनीतिक दल तैयारी में जुटे हैं। ऐसे में समाजवादी पार्टी के एमवाई (मुस्लिम-यादव) और बहुजन समाज पार्टी के एमडी (मुस्लिम-दलित) फैक्टर से निपटने के लिए बीजेपी भी इस बार नए फार्मूले को आजमाने की तैयारी में है। लगातार संकेतों के बाद यूपी में योगी आदित्यनाथ सरकार के एकमात्र मुस्लिम मंत्री दानिश अंसारी ने एक निजी चैनल से बातचीत में कहा कि जो भी कार्यकर्ता चुनाव लड़ना चाहेंगे पार्टी उन पर विचार करेगी। उनका इशारा मुस्ल्मि कार्यकर्ताओं की ओर था।
मंत्री ने कहा कि सरकार ने बिना किसी भेदभाव के लिए सभी वर्गों के लिए काम किया है। मुस्लिमों खासकर पसमांदा मुसलमानों को सरकार की विभिन्न कल्याकारी योजनाओं का पूरा लाभ मिला है। दरअसल, बीजेपी पर अब तक अक्सर ये आरोप लगता रहा है कि वह चुनावों में मुस्लिमों को टिकट नहीं देती है। निकाय चुनाव के बहाने इस नैरेटिव को बदलने की कोशिश हो रही है। पिछले कुछ समय से लगातार यह संदेश दिया जा रहा है कि बीजेपी मुसलमान विरोधी नहीं है।
पार्टी प्रवक्ता राजेश सिंह कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ नारा दिया और इस पर केंद्र से लेकर प्रदेश तक बीजेपी की सरकारें पूरा अमल कर रही हैं। राजनीतिक जानकार भी मानते हें कि बीजेपी ने अति पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों के बाद मुस्लिम वोटरों के बीच भी थोड़ी-बहुत ही सही पैठ बढ़ानी शुरू कर दी है।
खास तौर पर मुस्लिम महिलाओं और पसमांदा मुसलमानों को अपने पाले में लाने की कोशिशें तेजी से की जा रही हैं। पिछले दिनों राजधानी लखनऊ में आयोजित ‘पसमांदा बुद्धिजीवी सम्मेलन’ को इसी की एक कड़ी के तौर पर देखा गया।
सपा और बसपा के वोट बैंक में सेंध
यूपी में कांग्रेस के कमजोर पड़ने के बाद मुस्लिम, पिछड़ा और दलित वोटों पर सपा और बसपा दोनों की दावेदारी रही है। पिछले कुछ चुनावों के दौरान बीजेपी काफी हद तक पिछड़ा वर्ग के गैर यादव वोटों और दलित वर्ग के गैर जाटव वोटों को जोड़ने में कामयाब रही है। अब इस कड़ी में पसमांदा मुसलमानों को जोड़ने की कोशिश हो रही है।
पसमांदा मुसलमानों के बारे में कहा जाता है कि मुसलमानों में ये अपेक्षाकृत पिछड़े हैं। वैसे इस्लाम में किसी किस्म का जाति भेद नहीं माना जाता लेकिन अनौपचारिक तौर पर पसमांदा मुसलमानों को पीछे छूट गया माना जाता है। बीजेपी की नज़र इन्हीं पर है। दावा किया जाता है कि मुस्लिम समाज की कुल आबादी में पसमांदा मुसलमानों की तादाद 80 फीसदी है।
बसपा के निशाने पर सपा का वोट बैंक
निकाय चुनाव अपने सिंबल पर चुनाव लड़ने की पहले ही घोषणा कर चुकी बसपा के निशाने पर समाजवादी पार्टी का ही वोट बैंक है। इस वोट बैंक पर चोट करने और अपने पाले में लाने के लिए इमरान मसूद का सहारा लिया गया है। कभी समाजवादी पार्टी में रहे इमरान बसपा में पहुंचे तो खुद मायावती ने सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया और पश्चिमी यूपी की जिम्मेदारी भी दे दी।
बसपा में जिम्मेदारी मिलते ही इमरान मसूद एक्टिव हो गए। लगातार पश्चिमी यूपी के जिलों का दौरा कर रहे हैं। उनके निशाने पर समाजवादी पार्टी के MY समीकरण यानी मुसलमान-यादव गठजोड़ का M है। इमरान मसूद इस M यानी मुलसमान को बसपा से जोड़कर MD यानी मुसलमान-दलित गठजोड़ बनाना चाहते हैं।
सपा ने हर जिले में भेजे पर्यवेक्षक
उधर, समाजवादी पार्टी भी निकाय चुनाव की तैयारी में जोरशोर से जुटी है। पार्टी ने हर जिले के लिए पर्यवेक्षकों की टीम बनाकर भेज दिया है। पार्टी के प्रवक्ता अनुराग भदौरिया कहते हैं कि बीजेपी का सबका साथ, सबका विकास का नारा झूठा है। एक निजी चैनल से बातचीत में भदौरिया ने कहा कि प्रदेश में कहीं किसी का विकास नहीं दिखता। न किसी का साथ है न किसी का विकास है। खुद बीजेपी के विधायक और सांसद भी ये कह रहे हैं।