अटल बिहारी बाजपेई की मदद से शहीद की बेटियां पिता के सपनों को कर रहीं साकार

सुल्तानपुर। दुश्मनों के छक्के छुड़ाते हुए ही सेना के जवानों ने अपने प्राणों को न्यौछावर किया है। ऐसे ही वीर जाबांज शहीद की बेटियां किसी से कम नहीं होती हैं। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी बाजपेई के सहयोग से शहीद की बेटियां उनके सपनों को साकार कर रही हैं।
गौरतलब है कि कारगिल शहीदों की आज 21वीं पुण्यतिथि है। जिले के शहीद हवलदार मानसिंह यादव भी कारगिल में देश की खातिर बलिदान होकर सदा के लिए अमर हो गए। अपने पीछे तीन बेटियां छोड़कर गए हैं। तीनो बेटियां अपने पिता के सपनों को पूरा कर रही हैं।
जिले के लखनऊ-बलिया हाईवे पर स्थित गोसाईगंज थाना क्षेत्र के हयातनगर में शहीद मानसिंह यादव की समाधि बनी है। 21 साल पहले जब शहीद मान सिंह वीर गति को प्राप्त थे तो मानो शहीद की पत्नी विद्यावती पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा। तीन बेटियां आरती यादव, ज्योति यादव और अर्चना यादव के सिर से बाप का साया उठ गया था।
विद्यावती कहती हैं कि उस समय आरती, ज्योति और अर्चना बहुत छोटी थी। कैसे जिंदगी कटेगी समझ में नहीं आ रहा था, अब इनका क्या होगा। कहती है मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया था। ऐसा लग रहा था कि जिंदगी एक बोझ हो गई हो, लेकिन तत्कालीन पूर्व प्रधानमंत्री स्व.अटल बिहारी बाजपेई की सरकार थी। पत्र पाते ही पूर्व उन्होंने मेरे नाम से एक पेट्रोल आवंटित कर दिया। लखनऊ रोड पर शहर से लगभग 9 किलोमीटर दूर हसनपुर में शहीद के नाम से पेट्रोल पंप स्थापित हुआ। इसी से जिंदगी की गाड़ी चल रही है।
बड़ी बेटी एमबीबीएस, दूसरी आईएएस की तैयारी, तीसरी कर रही एमबीए 
नगर के शास्त्री नगर मोहल्ले में रहने वाले शहीद की तीनों बेटियां मां के साथ रहती है। बेटियों ने जहां मां के दर्द को समझा, वहीं शहीद बाप के सपनों को पूरा करने की ठानी। बड़ी बेटी आरती का प्रयागराज में मोतीलाल नेहरू संस्थान से एमबीबीएस कर रही है। बीच की ज्योति दिल्ली में रहकर आईएएस की तैयारी कर रही है। जबकि छोटी अर्चना सुल्तानपुर के केएनआई से एमबीए के अंतिम वर्ष में है। अर्चना पढ़ाई के साथ-साथ मां के संग पेट्रोल पंप का भी कार्यभार संभाल रही है।
 -बीस साल की उम्र में सेना में हुए थे भर्ती 
बीस साल की उम्र में सेना में भर्ती हुए 14 साल देश की सेवा करते समय 24 जुलाई 1999 को उन्होंने देश के लिए शहीद हो गए। उनकी पुण्यतिथि पर प्रति वर्ष समाधि पर लोग श्रद्धा सुमन अर्पित कर उन्हें याद करते हैं। कोरोना संकट के कारण पत्नी और बेटी के साथ कुछ लोग समाधि स्थल पर पहुंचे और शहीद को याद किया।

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