अटल बिहारी वाजपेयीः सद्भाव की राजनीति के महानायक

डॉ. नाज परवीन

बाधाएँ आती हैं आएं,

घिरें प्रलय की घोर घटाएं,

पावों के नीचे अंगारे,

सिर पर बरसे यदि ज्वालाएं,

निज हाथों में हँसते-हँसते,

आग लगाकर जलना होगा,

कदम मिलाकर चलना होगा।

जीवन की तमाम बाधाओं को पार करते हुए, ’सबका साथ सबका विकास’ के नारे को सही मायने में चरितार्थ करने वाले सद्भावना की राजनीति के महानायक अटल बिहारी वाजपेयी जी ने 25 दिसम्बर सन 1924 को पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी (पिता) और कृष्णा वाजपेयी (माता) जी के घर जन्म लिया। पिता पेशे से अध्यापक और कवि थे, इसलिए बालपन से ही शिक्षा और साहित्य प्रेम के वातावरण में पले बढ़े, अटल जी युवा अवस्था तक आते-आते, देशभक्ति एवं साहित्य में पारंगत हो चुके थे।

महात्मा रामचंद्र वीर द्वारा रचित अमर रचना “विजय पताका“ से अटल जी बहुत प्रभावित हुए। कहते हैं इस रचना को पढ़ने के बाद अटल जी के जीवन की दिशा ही बदल गयी। बचपन से देशभक्ति की जो लौ लगी, उसने इन्हें छात्र जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक बनाया।  कानपुर के डीएवी कॉलेज से एम ए करने के बाद वकालत की पढ़ाई प्रारम्भ की लेकिन बीच में ही पढ़ाई को विराम देकर संघ के कार्यों में लग गए।

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के सानिध्य में राजनीति में महारथ हासिल की। एक साधारण परिवार में जन्म लेने के बाद भी दो बार अल्पकालिक और एकबार पूर्णकालिक प्रधानमंत्री बनने का गौरव हासिल किया।

अटल जी का सपना भारत को शक्तिशाली राष्ट्र बनाने का था, ताकि कोई देश भारत की तरफ आंख उठाकर न देख सके। इसके लिए उन्होंने भारत को परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र बनाने का सपना देखा, जिसे उन्होंने शिद्दत से पूरा भी किया। ये वो दौर था जब पश्चिम की महाशक्तियां भारत को परमाणु शक्ति सम्पन्न होता नही देखना चाहती थी, इसलिए यह मिशन दुनिया के कुछ चुनिंदा सीक्रेट मिशनों की तर्ज पर पूरा किया गया।

विश्व के चौधरी के नाक के नीचे अटल बिहारी वाजपेयी जी ने 11 और 13 मई 1998 को पोखरण में एक के बाद एक पाँच भूमिगत परमाणु परीक्षण करके दुनिया को अचंभित कर दिया। भारत ने एकबार फिर दिखा दिया कि वो शांति और शक्ति का बेहतर तरीके से उपयोग करना जानता है।

हालांकि पश्चिमी देशों को भारत का बुलंदियों पर यूं परवाज़ होना पसंद न आया, जिसके लिए उन्होंने भारत पर कई तरह की पाबंदी लगा दीं, लेकिन अटल जी ’अटल’ थे। उन्होंने दृढ़तापूर्वक भारत के फ़ौलादी इरादों को कायम रखा और दुनिया को दिखाया कि भारत शांति और शक्ति का सामंजस्य बनाना जानता है।

अटल जी का सादा जीवन, सरल स्वभाव की दुनिया कायल है, उनके शब्दों का जादू पड़ोसी देश पाकिस्तान पर भी खूब चढ़ा। पाकिस्तान से संबंध बनाए रखने में उन्होंने बहुत उदारता दिखाई। 19 फरवरी सन 1999 को सदा-ए-सरहद नाम से दिल्ली से लाहौर बस सेवा की न केवल शुरुआत की बल्कि स्वयं प्रथम यात्री के रूप में पाकिस्तान जाकर नवाज़ शरीफ़ से मुलाकात की और नए संबंधों की नींव डाली।

अटल जी एक बेहतरीन कवि थे, उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से सदन में अपने विरोधियों को कई बार परास्त किया। उनके शब्दों के तीर इतने सहज और सरल रहते कि उनके विरोधी परास्त होने के साथ उनकी कविताओं के कायल हो जाते। हिंदी, हिंदू, हिन्दुस्तान का जो सुंदर परिचय अटल जी ने कराया वह विरले ही देखने को मिलता है। इसीलिए अटल जी हर भारतीय के दिल में रियल हीरो के रूप में सदैव जीवित रहेंगे।

अटल जी जाने से पहले अपनी अनगिनत रचनाएँ हम भारतवासियों के लिए छोड़ गए, जिन्हें हम पढ़कर सदैव उन्हें अपने नज़दीक पाते रहेंगे। उनकी रचनाओं में, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय, मृत्यु या हत्या, अमर बलिदान (लोकसभा में अटल जी के वक्तव्यों का संग्रह), संसद में तीन दशक, अमर आग है, कुछ लेखः कुछ भाषण, सेक्यूलरवाद, राजनीति की रपटीली राहें, बिंदु-बिंदु विचार, मेरी इक्यावन कविताएं इत्यादि हैं, जो देश की बेशकीमती धरोहरों में से एक हैं।

अटल जी ने अपने कार्यकाल के दौरान अनगिनत ऐसे काम किये जिससे हमारे देश की एकता और अखंडता को शक्ति मिले। उन्होंने सौ वर्षों से अधिक पुराने कावेरी विवाद को सुलझाने का प्रयत्न किया। राष्ट्रीय सुरक्षा समिति, आर्थिक सलाह समिति, व्यापार एवं उद्योग समिति का गठन। ग्रामीण रोजगार सृजन एवं विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगों के लिए बीमा योजना शुरू करना, सॉफ्टवेयर विकास के लिए सूचना एवं प्रौद्योगिकी कार्यदल, विद्युतीकरण में गति लाने के लिए केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग का गठन करना, सामाजिक सद्भाव को बरकरार रखने के लिए सरकारी ख़र्चे पर रोज़ा इफ्तार शुरू करना आदि असंख्य कार्यों का श्रेय अटल जी को ही जाता है।

उनके द्वारा किये गए कार्यों के आधार पर उनके जन्मदिन को (25 दिसम्बर) सुशासन दिवस के रूप में मनाया जाता है। अटल जी राजनीति के महारथी थे, उन्होंने अपने ज्ञान का उपयोग भारत में सामाजिक न्याय और राजनीतिक सुधार लाने के लिए किया, साथ ही सामाजिक सौहार्द को बनाये रखने में अपना अहम योगदान दिया इसलिए भारत के इस महान सपूत को भारत ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व नमन करता है।

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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