जालंधर। अफगान के सिख और हिंदू कम्युनिटी के 11 लोग भारत पहुंचे। अब भारत की तरफ से इन्हें लॉन्ग टर्म वीजा दिया जाएगा। साथ उनकी नागरिकता की मांग को लेकर भी विचार किया जाएगा। आज भारत पहुंचने वालों में से ज्यादातर सिख वे हैं जिन्होंने हाल ही में हुए काबुल आतंकी हमले में अपने परिवार के लोगों को खोया है।
इसी साल मार्च में आतंकियों ने काबुल के एक गुरुद्वारा पर हमला किया था। दिल्ली पहुंचने के बाद जब वे अपने परिवार वालों से मिल रहे थे तब भावुक कर देने वाला सीन था। इस दौरान भाजपा और अकाली दल के कुछ नेता भी उनके स्वागत के लिए वहां मौजूद थे।
पिछले कई दशकों से अफगान के सिख और हिंदुओं के लिए भारत नेचुरल होम रहा है। इस साल 700 से ज्यादा लोगों ने लॉन्ग टर्म वीजा के लिए अप्लाई किया है। कुछ महीनों से इनका वीजा लंबित पड़ा था। भारत सरकार के सूत्रों के मुताबिक कोरोनावायरस के चलते वीजा देने में देरी हुई।
मीडिया से बात करते हुए निदान सिंह ने बताया कि अफगान के पहाड़ी इलाकों में तालिबानी आतंकी जंगल के जानवर की तरह घूमते रहते हैं। भगवान ने मुझे बचा लिया। मैं पूरी रात सो नहीं पाता था, वे हमेशा मेरी तरफ बंदूक ताने रहते थे। वे मुझे पीटते थे, जान से मारने की धमकी देते थे। वे मेरी उंगलियां और नाक काटने की बात कहते थे। उन लोगों ने मुझ पर भारत की तरफ से जासूसी करने का आरोप लगाया था जो पूरी तरह गलत है।
हक्कानी नेटवर्क ने निदान सिंह को अफगानिस्तान के पकतिया में पकड़ा था। उसके बाद वे सीमा पार से पाकिस्तान के खैबर पख्तुनख्वा ले गए। हालांकि जब भारत की जासूसी से जुड़ा उन्हें कोई लिंक नहीं मिला तो निदान सिंह को रिहा कर दिया।
निदान सिंह ने कहा कि अफगानिस्तान में रहने वाले सिख हमेशा डर के माहौल में जीते हैं। हमारी मां- बहनें गुरुद्वारा में दर्शन के लिए भी अकेले नहीं जा सकती, उनके साथ परिवार के एक पुरुष मेंबर को जाना पड़ता है। उन्होंने कहा कि मैं पीएम मोदी को व्यक्तिगत रूप से धन्यवाद देना चाहता हूं। भारत ने जिस तरह बड़ा दिल दिखाया उसके लिए मेरे पास शब्द नहीं है कि मैं धन्यवाद व्यक्त कर सकूं। उन्होंने कहा कि भारत में उनके धर्म को किसी तरह का खतरा नहीं है। उनकी मां-बहनें बिना किसी डर के यहां घूम सकती हैं।
निदान सिंह के भाई चरण सिंह ने कहा कि हमने आतंकियों के कब्जे में उनकी तस्वीर देखी थी। हमें नहीं पता था कि वे किस हालत में हैं। आज उन्हें अपने बीच पाकर खुशी हो रही है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार को मानवीय आधार पर हमें वीजा देनी चाहिए।
खुफिया सूत्रों से यह भी पता चलता है कि खालिस्तान नेटवर्क जिसे पाकिस्तान का आईएसआई फंड करता है, वह इन परिवारों का पीछा कर रहा था। वे चाहते थे कि ये लोग भारत की बजाए पाकिस्तान में शरण लें। उनकी कोशिश थी कि खालिस्तान के नाम पर भारत के खिलाफ भड़काकर इन्हें कट्टरपंथी बनाया जाए और हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी जाए। अब आईएसआई की यह साजिश नाकाम हो गई है।
दिल्ली पहुंचने वाले गुरजीत सिंह ने कहा कि वे भारत को अपना देश मानते हैं। उस जगह से निकलकर वे खुश हैं जहां दिन रात डर और जान का खतरा रहता था। उन्होंने कहा कि भारत में हमें सम्मान मिला है। जबकि वहां हमने सिर्फ अपमान का सहा है। गुरजीत ने कहा कि जब हम काबुल में अपनी दुकानों में बैठते थे तो हम पर हमला किया जाता था, हमारे पैसे छीन लिए जाते थे, कई लोगों को मार भी दिया गया।
वे लोग हमें काफिर कहते थे। अगर हम काफिर हैं, तो वहां रहने का क्या मतलब है? हमारे सिख गुरुओं ने बलिदान दिया है। हमने कभी धर्म परिवर्तन नहीं किया। उन्होंने कहा कि हमने अफगानिस्तान में डर से मुक्त रहने के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया है। गुरजीत सिंह के परिवार के तीन लोग काबुल हमले में मारे गए थे। उनमें उनके पिता भी शामिल थे।
आतंकी हमलों के अलावा, धार्मिक परिवर्तन भी अफगानिस्तान में सिख समुदाय के लिए एक चिंता का विषय रहा है। अनुमान के मुताबिक भारत ने 700 से अधिक अफगान के सिखों को शरण देने की सहमति दी है। अफगान के ज्यादातर सिख पलायन के लिए मजबूर हुए हैं। वहां सिख कम्युनिटी विलुप्त होने के कगार पर है।
अफगान के एक्टिविस्ट ओमिद शरीफ ने मुझे बताया कि ऐसा होना मेरे लिए दुखदाई है। मुझे शर्म आती है कि हम अपनी डाइवर्सिटी को बचा नहीं सके और अफगान के लोगों को इस तरह से अपने पैतृक घर को छोड़ना पड़ा।
सिख नेता मनजीत सिंह ने कहा कि हमें उम्मीद नहीं थी कि निदान सिंह सुरक्षित लौटेंगे, हमें डर था कि कहीं उनकी हत्या न हो जाए। अफगान में सिख समुदाय के लोगों को टारगेट किया जा रहा है, हमला किया जा रहा है, लड़कियों को अगवा किया जा रहा है, जबरन धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है। उन्होंने सरकार से सभी को भारत बुलाने और यहीं शरण देने की मांग की। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा ही रहा तो धीरे-धीरे सभी मार दिए जाएंगे।
अफगान से आए सिख समुदाय के लिए भारत में अपने जीवन की शुरुआत करना मुश्किल जरूर होगा। फिर भी उनमें से ज्यादातर के लिए यह पुनर्जन्म की तरह है, जो आतंक के चंगुल से बचकर भारत को अपना घर बनाने आए हैं।