अब नहीं पैदा होगा दूसरा योगेश प्रवीन

हेमेंद्र त्रिपाठी 

कहते हैं कि किसी भी क्षेत्र में हर तरह से परांगत व्यक्ति केवल एक ही बार पैदा होता है । जैसे क्रिकेट की बात की जाए तो क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर, कलाकारों में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन, स्वर्ण कोकिला लता मंगेशकर ऐसे बहुत से उदाहरण है।

कुछ इस तरह थे लखनऊ के साहित्यकार योगेश प्रवीन, जिन्हें आज हमने खो दिया। विडंबना देखिए इस महान साहित्यकार को अस्पताल ले जाने के लिए एक एम्बुलेंस तक नसीब नही हुई।

योगेश प्रवीन भी अपनी फील्ड में महानतम खिलाड़ी थे। उनसे लखनऊ की चप्पे की जानकारी आपको मिल सकती थी। उन्होंने लखनऊ को जिया था। इसलिए तो लखनऊ को उनसे बेहतर शायद ही कोई जानता हो। यही वजह है कि उन्हें लखनऊ का इनसाइक्लोपीडिया कहा जाता था। उन्होंने लखनऊ को कुछ इस तरह लिखा।

लखनऊ है तो महज़ गुम्बद-ओ-मीनार नहीं।
सिर्फ एक शहर नहीं कूचा-ओ-बाज़ार नहीं।
इसके दामन मोहब्बत के फूल खिलते हैं,
इसकी गलियों में फरिश्तों के पते मिलते हैं।

इन चार लाइनो में ही उन्होंने पूरे लखनऊ की पहचान करा दी। अफ़सोस इतने महान साहित्यकार का इस तरह से जाना बेहद शर्मनाक है। इस महान साहित्यकार से मिलने का सौभाग्य एक बार मुझे भी मिला।

उनकी साधारणतया को देखकर आप उनके इतने बड़े होने का अंदाजा भी नहीं लगा सकते। बेहद सरल स्वाभाव के थे योगेश प्रवीन। किसी भी तरह की रईसी का कोई भी शौख नहीं। शौख था तो बस लखनऊ का और उसके बारे में लोगों को अवगत कराने का।

पांडेगंज गल्ला मंडी के पीछे पतली सी गली उनका घर बसता था जिसे गौस नगर के नाम से जाना जाता है। एक दिन उनसे मिलने के लिए मै भी इन्ही गलियों में भटकता हुआ पहुंचा था। घर दूढ़ने में कोई खास परेशानी नहीं हुई। होती भी कैसे इतने नामचीन आदमी का घर जो जाना था। उनके घर पहुँचते ही पहले तो उन्होंने मुझे नीचे एक बड़े से हॉल में बैठाया। इसके थोड़ी देर बाद वो मुझे उस कमरे में ले गये जहां उन्होंने पूरे लखनऊ को बसा रखा था।

सिर्फ एक वहीं कमरा था जो किताबों से भरा हुआ था वहीं उन्होंने मुझे बैठने को कहा। इसके बाद उनसे थोड़ी देर बातचीत हुई। इस दौरान उन्होंने बहुत कुछ ऐसा बताया जिसेक बारे में मैंने कभी सुना भी नहीं था। जैसे कि बक्शी का तालाब से कुमरांवा रोड पर जाते हुए उनई गांव में एक देवी मां के मंदिर के बारे में बताया। इस मंदिर को मै जनता तो था क्योंकि ये मेरे गांव में जो था लेकिन इसके बारे में इतना कुछ मैंने कभी नहीं सुना जितना उन्होंने बताया था।

थोड़ी देर बाद प्रवीन जी उठकर चले गये और जब वापस आये तो उनके हाथ दो कप चाय और नमकीन थी। मैं नहीं जानता की उनके हाथों से बनी चाय कितनों ने पी होगी लेकिन ये सौभाग्य मुझे जरुर प्राप्त हुआ। उनके हाथों से बनी चाय में भी वही मिठास थी जो उनके लखनऊ में थी। इस महान साहित्यकार के हाथों से किसी को चाय पीना का सौभाग्य मुझे जरुर मिला और इसको मै हमेशा याद रखूंगा।

इसके बाद उन्होंने मुझे कहा कि बेटा मुझे कुछ नहीं चाहिए। यहां मतलब ये है कि न तो उन्हें पैसा चाहिए और न ही और कुछ। उन्होंने कहा कि मै बस इतना चाहता हूं कि अपने इस घर को लाइब्रेरी में बदल सकूं। जिससे आने वाली पीढियां लखनऊ के बारे में सब कुछ आसानी से जान सके। इसके बाद उन्होंने मुझे कुछ किताबें भी दी जिसको पढ़कर ज्यादा तो नहीं थोडा बहुत मुझे भी जानकारी हुई। अफसोस इस बात का है कि इस यादगार पल को मै किसी भी कमरे में कैद नहीं कर सका।

आज वो हमारे बीच नहीं रहे और उनका ये सपना भी उनके साथ ही चला गया क्योंकि इतने महान इंसान को जब दो घंटे तक एम्बुलेंस नहीं नसीब हो सकी तो उनके सपने की किसको परवाह। अब शायद लखनऊ के बारे आप को कोई इतने अच्छे से नहीं बता सकेगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here