मुंबई। जाने माने निर्देशक बासु चटर्जी अब हमारे बीच नहीं हैं। उनकी गिनती जिंदगी की बेहद साधारण कहानियों को बहुत असाधारण तरीके से बड़े पर्दे पर बताने वाले निर्देशकों में होती थी। इस मौके पर उनके साथ सबसे ज्यादा काम कर चुके अभिनेता अमोल पालेकर ने उनसे जुड़ी बातें शेयर कीं। ऋषिकेश मुखर्जी से तुलना करते हुए पालेकर ने कहा कि मीडिया ने बासु दा को उतना क्रेडिट नहीं दिया, जितना उन्हें मिलना चाहिए था।
पालेकर ने बताया, ‘मुझे उनके साथ सबसे ज्यादा आठ फिल्में करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उनकी फिल्मों में कॉमन मैन हीरो हुआ करता था। वे दरअसल वैसी कहानियां ही लोगों तक ले जाना चाहते थे, जो हमारी अपनी कहानी हो। तभी उन्होंने वो सारी फिल्में बनाईं, जो आम आदमी की जिंदगी से जुड़ी हुई थीं। उसमें कोई बड़ा ड्रामा नहीं होता था। उसमें विलन तक नहीं होता था, मतलब जो ड्रामा के लिए सबसे आवश्यक माना जाता है।’
आम आदमी की दुनिया को लेकर फिल्में बनाईं
आगे उन्होंने कहा, ‘हम दोनों की पहली फिल्म ‘रजनीगंधा’ थी। कोई मुझे बताए कि उस पूरी फिल्म में शुरू से अंत तक नायक अपनी नायिका से कभी ‘मैं तुमसे प्यार करता हूं’ तक नहीं बोलता है। नायिका से मिलने के लिए देरी से आता है। आने के बाद ऑफिस की बातें करता है। प्यार की बात तो कहीं है ही नहीं। अपनी फिल्मों में बासु दा इसी किस्म की बिल्कुल अलग दुनिया लेकर आते थे। उन्होंने आम आदमी की जो एक कॉमन दुनिया है, उसे लेकर फिल्में बनाईं और इसलिए लोगों को बहुत अच्छी लगीं।’
सुपरस्टार्स की फिल्मों के बीच चलती थी उनकी फिल्में
पालेकर ने आगे कहा, ‘बासु दा ने उस दौर में ऐसी फिल्में बनाईं, जब सातवें और आठवें दशक में ग्लॉसी फिल्मों का दौर था। एक तरफ एंग्री यंग मैन अमिताभ बच्चन, दूसरी तरफ रोमांटिक हीरो राजेश खन्ना, तीसरी तरफ हीमैन धर्मेंद्र और चौथी तरफ डांसिंग स्टार जितेंद्र के बीच में बासु दा की फिल्म पैरलल चल रही थीं। वहां लोगों को बिल्कुल अलग तरह की दुनिया देखने को मिल रही थी और वे उसको एन्जॉय भी कर रहे थे। यही उनकी खासियत थी और वो भी एक अलग तरह के सेंस ऑफ ह्यूमर के साथ। वरना उस दौर के बाकी निर्माता-निर्देशकों की कॉमेडी की जो कल्पनाएं थी, वो काफी लाउड हुआ करती थीं या किसी का मजाक उड़ाते हुए की जाती थीं। बासु दा की फिल्मों में यह सब किए बिना ह्यूमर होता था।’
ऋषि दा ने उनके जैसी फिल्में बाद में बनाईं
पालेकर के मुताबिक, ‘बासु दा का कद बहुत बड़ा था। उन्होंने जैसी फिल्में बनाईं, उस तरह की फिल्में ऋषिकेश दा ने तो बाद में बनाईं। ‘चुपके-चुपके’ हो या ‘गोलमाल’ हो या फिर मेरे साथ जितनी भी फिल्में ऋषिकेश दा ने भी बनाई, वह सब उन्होंने बाद में बनाई, जो बासु दा पहले ही कर चुके थे। वह सब करने में बासु दा तो सबके पायोनियर थे।
‘बासु दा को उनका क्रेडिट नहीं मिला’
‘आखिरी में मैं यही कहना चाहूंगा कि बासु दा जिस उपलब्धि के हकदार थे, हमारी मीडिया ने उन्हें वो क्रेडिट नहीं दिया। क्योंकि हमारी अपेक्षाओं में ट्रेजडी को पेश करना ही बहुत बड़ा स्किल माना जाता है। या किसी ने अगर सामाजिक मुद्दे पर फिल्म बना दी तो उसकी तारीफ में चार चांद लगा दिए जाते रहे हैं। बासु दा हमेशा यह सब किए बगैर कमाल की फिल्में बनाते थे। बहुत सीधे-साधे शब्दों में, बिना लाग लपेट की लवेबल फिल्में हमेशा बनाते रहे। उस वक्त हम लोगों को लगा कि यार यह कौन सी बड़ी बात है, लेकिन यह गलत था। उस वक्त मीडिया को बासु दा को सही असेसमेंट करनी चाहिए था। उन्हें उनका क्रेडिट मिलना चाहिए था।