लेखक-डा. हिदायत अहमद खान
महाभारत काल में गुरु द्रोणाचार्य को धनुर्विद्या का सर्वश्रेष्ठ गुरु माना जाता रहा है, जिनके कौरव और पांडव शिष्य थे। इन 105 शिष्यों में सबसे प्रिय उन्हें अर्जुन ही थे। इसकी वजह अर्जुन का लक्ष्य केंद्रित होना था। उन्हें लक्ष्य के अलावा कुछ भी दिखाई नहीं देता था। इसके साथ ही सदियों से सम्राट पृथ्वीराज चौहान का किस्सा भी मशहूर है, जिन्होंने ‘शब्दभेदी बाण’ से अमरता हासिल की। मशहूर है कि पृथ्वीराज ने अपने दरबारी कवि और मित्र चंदबरदाई की सहायता से ‘शब्दभेदी बाण’ के जरिए मुहम्मद गोरी को मारने की योजना बनाई थी।
इस किस्से के साथ ये दो पंक्तियां जो बहुप्रचलित हैं यथा, ‘चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चुके चौहान।’ अर्थात् लक्ष्य को साधना है फिर चाहे वह नजरों से दिखाई दे रहा हो या फिर सिर्फ ध्वनि ही लक्ष्य क्यों न हो। वर्तमान में इस भूमिका को बांधने का एकमात्र कारण यही है कि चूंकि यह चुनाव का समय है इसलिए सभी का लक्ष्य ‘जीत’ पर केंद्रित है। इसे लेकर जिस तरह से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने विरोधियों पर निशाना साधने का काम किया है उससे यह साबित हो गया है कि उन्हें अब सिर्फ और सिर्फ आम चुनाव में जीत नजर आ रही है, जिसके चलते अब वो विरोधियों के निशाने पर आ रहे हैं। इससे मालूम चलता है कि उनके तीर सही निशाने पर लग रहे हैं।
दरअसल लंदन दौरे के दौरान राहुल ने मोदी सरकार और भाजपा पर निशाना साधते हुए जो कहा उसके चर्चे अब आम हो चले हैं। हद यह है कि भाजपा नेता तो इसे लेकर इतने बौखला गए हैं कि उल्टा उन्होंने राहुल पर ही तरह-तरह के आरोप लगाने शुरु कर दिए हैं। गौर करें कि विदेश में अपने विरोधियों पर निशाना साधने का गुर आखिर किसने इन राजनीतिज्ञों को दिया है और यह शैली आखिर किसकी रही है? आपको याद दिलाने की आवश्यकता नहीं होगी कि इसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही जाता है, क्योंकि उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद भी अपनी विदेश यात्राओं के दौरान कांग्रेस और देश की पूर्व सरकारों को जिस तरह से निशाने पर लिया था उससे सभी अचंभित और आश्चर्यचकित रह गए थे।
ऐसा इसलिए किया गया ताकि विदेश में रह रहे ज्यादा से ज्यादा भारतियों को मोदी लहर के प्रभाव में लाया जा सके और कांग्रेस की जड़ों को काटा जा सके। बहरहाल कांग्रेस विचारकों और खासकर राहुल को यह बात समझ में आई और उन्होंने भी इसी परिपाटी का पालन करते हुए अब लंदन में बैठकर जो निशाना साधा है वह सीधे लक्ष्य पर लगता दिखा है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने लंदन में आरोप लगाया कि एसबीआई समेत 17 भारतीय बैंकों के 9 हजार करोड़ रुपए लेकर भागे शराब कारोबारी विजय माल्या देश छोड़ने से पहले भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के संपर्क में थे। आशय यह है कि मोदी सरकार भारतीय बैंकों के साथ धोखाधड़ी करने वाले कारोबारियों के खिलाफ कोई सख्त कदम इसलिए नहीं उठा पाई क्योंकि वो तो उनके सगे-संबंधी ही हैं। इस संबंध में पीएनबी घोटाले के मुख्य आरोपी नीरव मोदी और मेहुल चौकसी का नाम भी सामने आ रहा है और बताया जा रहा है कि इनके प्रधानमंत्री मोदी के साथ अच्छे रिश्ते रहे हैं, जिसे लेकर अब बहस छिड़ी हुई है।
राहुल के तीर का ही कमाल है कि इस समय भाजपा नेता तिलमिलाए हुए हैं और अब वो राहुल के आरोपों को देश की छवि खराब करने से जोड़कर भ्रम पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। जबकि यह कौन नहीं जानता कि शराब कारोबारी माल्या 2016 में भारत छोड़कर लंदन भाग गया और सरकार समेत सुरक्षा एजेंसियां कुछ नहीं कर सकीं। यह अलग बात है कि अब उसे वापस लाने के लिए भारतीय एजेंसियां इंग्लैंड में कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। इसके बाद सामान्यजन को याद दिलाने की आवश्यकता है कि यह वही सरकार है जिसने विदेश में जमा कालाधन वापस लाने का दम भरा था और बताया था कि उस कालेधन से न सिर्फ देश का कर्ज चुकता कर दिया जाएगा बल्कि तमाम नागरिकों के बैंक खातों में 15-15 लाख रुपये भी जमा करा दिए जाएंगे।
इस तरह के सुनहरे सपने दिखाने वाली भाजपा को चूंकि अब फिर चुनाव मैदान में उतरना है अत: वह नहीं चाहेगी कि कोई उसके पुराने झूठ के पुलिंदों को खोलकर उसे घेरे और उसकी जीत में अवरोध पैदा करे। इसलिए कहा जा रहा है कि राहुल का तीर तो निशाने पर लगा है, लेकिन अब उन्हें अपने विरोधियों से सतर्क रहने की आवश्यकता है, क्योंकि यह भौतिकशास्त्र का नियम है कि जिस बल के साथ आप कोई भारी चीज आसमान की तरफ फेंकते हैं तो वह उससे कहीं ज्यादा बल के साथ आपकी ओर ही वापस आती है। अत: विवादों में पड़ने की बजाय विरोधियों पर निशाना साधते हुए चुनाव जीतने की दिशा में आगे बढ़ने का जो फार्मूला राहुल ने अपनाया हुआ है उसमें सावधानी की भी अतिआवश्यकता है, वर्ना पुराने जख्म कांग्रेस के पास भी कम नहीं हैं, जिन्हें यदि कुरेद दिया गया तो आह करने के सिवा कुछ खास बचेगा नहीं।