अम्बाला एयरफोर्स बेस के पास के गांववालों ने दिखाई देशभक्ति की मिसाल

अम्बाला। एयरफोर्स स्टेशन की दीवार से सटे गांव के लोग देश की सुरक्षा की इतनी परवाह करते हैं कि एयरफोर्स और राफेल को लेकर बात करने तक को तैयार नहीं। उन्हें डर है कि कहीं दुश्मन कोई फायदा न उठा ले। दिल्ली-जालंधर नेशनल हाईवे 44 पर जैसे ही अंबाला से महज साढ़े सात किलोमीटर आगे निकलते हैं, तो दाईं तरफ सड़क अंबाला एयरफोर्स स्टेशन तक जाती है। इस सड़क पर ज्यादातर सेना और वायुसेना की गाड़ियां ही देखने को मिलती हैं। हाईवे पर एक पुलिस पोस्ट बनी है। पुलिस ने गश्त बढ़ा दी है। इस इलाके में तो यूं भी हमेशा से ही ड्रोन उड़ाने पर पाबंदी है।

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पुलिस की नजरों से स्कैन होकर हम एयरफोर्स स्टेशन की तरफ बढ़े। सड़क के बाईं तरफ चंद दुकानें हैं, जहां सेना और वायुसेना के जवान सामान खरीदते देखे जा सकते हैं। वे राफेल के आने से उत्साहित तो हैं, लेकिन कुछ बात करने के लिए राजी नहीं। दुकानदारों के भी मुंह पर ताले पड़े हैं। एयरफोर्स स्टेशन के गेट से आगे सिर्फ सेना-वायुसेना के लोग ही जा सकते हैं। वहां से आगे न तो फोटो क्लिक कर सकते हैं और न ही वीडियो बना सकते हैं।

इसी गेट के सटकर खड़ी है एयरफोर्स स्टेशन की दीवार, जो धूलकोट गांव से लगती है। दीवार के सहारे-सहारे हम आगे बढ़े तो गांव के बाहर खेतों में बने गोदाम नजर आए। वहां काम कर रहे लोगों के पास रुके तो वो भी राफेल और एयरफोर्स स्टेशन से जुड़ी बातें करने से इनकार करने लगे। बड़ी मिन्नतें की तो बोले, हम अपने गोदामों की छत पर जरूर जा सकते हैं, लेकिन एकटक एयरफोर्स स्टेशन नहीं देख सकते। हमें तुरंत हिदायत दी जाती है।

ये तस्वीर उसी राफेल की है, जो अंबाला आ रहा है। फ्रांस से भारत के लिए पांच राफेल लड़ाकू विमानों का पहला जत्था सोमवार को रवाना हुआ था।

हम वहां ये जानना चाहते थे कि आखिर उनके इतने पास एक नया फाइटर प्लेन आ रहा है, जिसकी चर्चा पूरे देश में हो रही है, तो वो क्या महसूस कर रहे हैं। हम फिर धीरे-धीरे दीवार के सहारे गांव की तरफ बढ़े, जिस किसी से भी राफेल या फाइटर जेट की बात करते तो वो हमसे कन्नी काट रहा था। एक व्यक्ति से हमने जब पूछा कि आपके पड़ोस में फाइटर प्लेन राफेल आ रहा है, क्या कहोगे, तो बोले- ‘देश के लिए गर्व की बात है।’ हमने उन्हें कहा कि कैमरे के सामने बोलिए, तो उनका बहाना था- मैंने ऐसे कपड़े नहीं पहने कि कैमरे पर आऊं।

आगे बढ़े तो एक युवक मिला। हमने उन्हें रुकवाया तो उन्हें लगा कि रास्ता पूछ रहा हूं। बड़ी उत्सुकता से हमारे पास आया। हमने कहा कि पड़ोस में फाइटर प्लेन राफेल आ रहा है एयरफोर्स स्टेशन पर क्या कहना चाहेंगे? उसे सवाल से झटका सा लगा और अपने रास्ते चल दिया। हमने कहा क्या हुआ- कुछ नहीं बोलेंगे, तो उनका जवाब था कि हमें कुछ नहीं पता।

हम गांव के आखिरी छोर पर पहुंच गए। वहां एक बुजुर्ग मिले। हमने उनसे राफेल, एयरफोर्स स्टेशन से जुड़ा कोई सवाल नहीं पूछा। सीधा ये पूछा कि अंकल जी, यहां जिस किसी से भी एयरफोर्स स्टेशन, राफेल फाइटर जेट के बारे में पूछते हैं तो कोई कुछ नहीं बोलता, क्या कारण है? तो वो बुजुर्ग बोले,‘बेटा- देश की सुरक्षा का सवाल है, यहां इस सवाल का कोई जवाब नहीं देगा। सबको लगता है कि कोई मुखबिरी करके, देश को नुकसान न पहुंचा जाए।

सुरक्षा, एयरफोर्स स्टेशन और फाइटर प्लेन से जुड़ी बातें न करने की वजह सिर्फ राफेल नहीं है। वायुसेना के लोग आसपास के गांवों और इलाकों में जाकर बताते हैं कि उन्हें किसी भी तरह की जानकारी किसी को नहीं देनी है। स्टेशन की ओर कैमरा करके फोटो खींचने और वीडियो बनाने पर मनाही है। यहां रहनेवाले बड़े बुजुर्ग ही नहीं बच्चों को भी सुरक्षा से जुड़े कायदे मालूम हैं। बात सिर्फ एयरफोर्स वालों की हिदायत की नहीं है, यहां के बाशिंदे देश की सुरक्षा से जुड़ी अपनी जिम्मेदारी बखूबी समझते और मानते भी हैं।

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