‘अविश्वास प्रस्ताव’… पिछले कुछ दिनों में आपने इस शब्द को कई बार सुना होगा। इस वक्त देश की राजनीति इसी के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है। लोकसभा में आज से अगले तीन दिन इसी अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा होनी है।
सबसे पहला सवाल तो यही उठता है कि ये अविश्वास प्रस्ताव है क्या?
भारत के संविधान में विश्वास प्रस्ताव या अविश्वास प्रस्ताव का कोई जिक्र नहीं है। आर्टिकल-75 में सिर्फ इतना कहा गया है कि सरकार यानी प्रधानमंत्री और उनका मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति जवाबदेह होता है।
लोकसभा में जनता के प्रतिनिधि बैठते हैं, इसलिए सरकार के पास इस सदन का विश्वास होना जरूरी है। इस सदन में बहुमत होने पर ही किसी सरकार को सत्ता में रहने का अधिकार है।
इसी को आधार बनाकर लोकसभा के रूल 198 में अविश्वास प्रस्ताव का जिक्र है। आसान भाषा में कहें तो अविश्वास प्रस्ताव ये जांचने का एक तरीका है कि सरकार के पास लोकसभा में बहुमत है या नहीं। भारतीय लोकतंत्र में इसे ब्रिटेन के वेस्टमिंस्टर मॉडल की संसदीय प्रणाली से लिया गया है।
अविश्वास प्रस्ताव पर कितनी देर बहस होती है? कौन-कितनी देर बोलेगा ये कैसे तय होता है?
अविश्वास प्रस्ताव पर लोकसभा में कितनी देर बहस होगी, इसका कोई फिक्स नियम नहीं है। अलग-अलग मामलों में ये समय बदलता रहता है। लोकसभा स्पीकर इसे तय करते हैं। जैसे- 1963 में नेहरू सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया तो 40 घंटे तक बहस चली थी। वहीं 2018 में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर महज 12 घंटे बहस हुई थी।
कौन सा सांसद कितनी देर बोलेगा, ये लोकसभा स्पीकर तय करते हैं। आमतौर पर लोकसभा में जिस पार्टी के सांसद ज्यादा होते हैं, उन्हें ज्यादा वक्त दिया जाता है। जिस पार्टी के कम सांसद होते हैं, उन्हें कम वक्त दिया जाता है। सरकार को आरोपों पर जवाब देने का पूरा समय दिया जाता है।
अब तक कितनी बार अविश्वास प्रस्ताव पेश हुए। उसमें से कितनी बार सफल हुए और सरकार गिर गई?
आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत के इतिहास में अब तक 27 बार अविश्वास प्रस्ताव लाए गए, लेकिन ये कभी सफल नहीं रहे। सिर्फ एक बार ऐसा हुआ है कि मोरारजी देसाई के पास बहुमत नहीं था, तो उन्होंने वोटिंग से पहले ही इस्तीफा दे दिया।
जब अविश्वास प्रस्ताव सफल ही नहीं होते, तो विपक्ष लाता क्यों है?
मोरारजी देसाई वाले मामले को छोड़ दें, तो अब तक 27 बार पेश किए गए अविश्वास प्रस्ताव सरकार गिराने में कभी सफल नहीं रहे। ये बात प्रस्ताव पेश करने वाले भी जानते हैं। इसके बावजूद अविश्वास प्रस्ताव पेश करने का मकसद सरकार की कमियों को संसद के सामने ऑन रिकॉर्ड रखना होता है। इसे देश की जनता भी देखती है। विपक्ष के आरोपों पर प्रधानमंत्री को जवाब भी देना पड़ता है। इस बार पेश किए गए अविश्वास प्रस्ताव का मकसद भी यही मालूम होता है।
जब 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर गई थी, वो कौन सा प्रस्ताव था?
1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर गई थी। वो अविश्वास प्रस्ताव नहीं, विश्वास प्रस्ताव था। विश्वास प्रस्ताव सरकार की तरफ से पेश किया जाता है, ये बताने के लिए कि उसके पास सदन का भरोसा है। 17 अप्रैल 1999 को वाजपेयी सरकार ने विश्वास प्रस्ताव पेश किया, लेकिन AIADMK ने अपना समर्थन वापस ले लिया। इससे उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। विश्वास प्रस्ताव के जरिए दो बार और सरकार गिर चुकी है। 7 नवंबर 1990 को वीपी सिंह सरकार और 11 अप्रैल 1997 को देवगौड़ा सरकार।
क्या इस बार पेश किए गए अविश्वास प्रस्ताव से मोदी सरकार को कोई खतरा है?
लोकसभा में संख्याबल के हिसाब से देखें तो अविश्वास प्रस्ताव से मोदी सरकार को कोई खतरा नहीं है। अविश्वास प्रस्ताव पास होने के लिए उस पर वोटिंग के समय लोकसभा में मौजूद 50%+1 सांसदों के वोटों की जरूरत होती है। मोदी सरकार आराम से इसे हासिल कर लेगी।