नई दिल्ली। पूरे देश में चर्चा का विषय बन चुके असम एनआरसी पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने वाली है। विपक्षी पार्टियों के विरोध की वजह से सरकार बचाव की मुद्रा में है। वहीं सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचने के बाद वह राहत महसूस कर रही है। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही एनआरसी रजिस्टर तैयार किया गया है। एनआरसी की जारी दूसरी लिस्ट में 2 करोड़ 89 लाख 83 हजार 677 लोगों को वैध नागरिक मान लिया गया है। जबकि इसके लिए 3,29,91,384 लोगों ने आवेदन किया था, जिसमें 40,07,707 लोगों को अवैध माना गया। इस तरह से 40 लाख से ज्यादा लोगों को बेघर होना पड़ेगा। सरकार का कहना है कि जारी लिस्ट अंतिम नहीं है और जिन लोगों के नाम इसमें शामिल नहीं हैं वो इसके लिए पुराने आवेदन पत्र की रसीद के साथ अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
इससे पहले 31 जुलाई को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि जिन लोगों का नाम सूची से बाहर है उन्हें फिर से निष्पक्ष तरीके से आवेदन करने का मौक़ा मिलना चाहिए। साथ ही केंद्र सरकार को एनआरसी की सूची से बाहर लोगों के साथ बलपूर्वक कार्रवाई नहीं करने का निर्देश जारी किया है। जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस आरएफ नरीमन की बेंच ने केंद्र से एनआरसी से बाहर हुए लोगों के दावों से निपटने के लिए केंद्र सरकार से एसओपी (मानक संचालन प्रक्रिया) तैयार करने का भी निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि एनआरसी के अंतिम ड्राफ्ट के रिलीज के आधार पर अथॉरिटी किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नही कर सकती और जिन लोगों के नाम छूट गए है, उन्हें पूरा मौका मिलने के बाद ही कोई एक्शन लिया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस रजिस्टर का कड़ा विरोध कर रहीं है। कांग्रेस का आरोप है कि इस रजिस्टर में सही नागरिकों के भी नाम नहीं है और जितने नाम रखे गये हैं वह मुसलमान है। वहीं दूसरी तरफ ममता बनर्जी आरोप लगा रही हैं कि सरकार इस रजिस्टर के बहाने बंगाली लोगों को भगाना चाहती है। इस तरह इस मामले का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है।