असम-बंगाल चुनाव से पहले सीएए में संशोधन की तैयारी में मोदी सरकार

नई दिल्ली। आने वाले कुछ महीनों में देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होना है, जिसमें पश्चिम बंगाल और असम का चुनाव में ज्यादा चर्चा में है। इन दोनों राज्यों में भाजपा के लिए चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ है। पश्चिम बंगाल में ममता को सत्ता से बेदखल करने और असम में सत्ता बचाए रखने के लिए भाजपा मेहनत कर रही है।

भाजपा हर हाल में इन दोनों राज्यों में सत्ता पाना चाहती है इसके लिए वह सारे दांव-पेच आजमा रही है। इसी कड़ी में नरेंद्र मोदी सरकार दोनों राज्यों में विधानसभा चुनावों के ठीक पहले समान नागरिकता कानून में संशोधन पारित करवाने की तैयारी कर रही है।

दरअसल भाजपा सीएए के जरिए इन दोनों राज्यों के विधानसभा चुनाव में वोटों के धु्रवीकरण कराना चाहती है। इसीलिए चुनाव से पहले सीएए के संसोधन की तैयारी में सरकार लग गई है।

दरअसल लोकसभा में एक सवाल के जवाब में मंगलवार को गृह मंत्रालय ने कहा कि सीएए में संशोधन लोकसभा में 9 अप्रैल तक और राज्यसभा में 9 जुलाई तक पारित करवाने का लक्ष्य रखा गया है। हालांकि संसद ने 10 जनवरी 2020 को ही सीएए पारित कर दिया।

मालूम हो कि समान नागरिकता कानून के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान से आने वाले हिन्दू, बौद्ध, सिख, ईसाई, जैन और पारसियों को भारत की नागरिकता दी जा सकती है।

इसमें मुसलमानों को जानबूझ कर छोड़ दिया गया है, जिसकी वजह से पिछले साल पूरे देश में इसका जबर्दस्त विरोध हुआ था। दिल्ली समेत कई जगहों पर इसके खिलाफ आन्दोलन हुआ, जिसे केंद्र और राज्य सरकारों ने बुरी तरह कुचल दिया।

कांग्रेस के लोकसभा सांसद वी. के. श्रीकंदन ने गृह मंत्रालय से पूछा था कि क्या सीएए से जुड़े नियम-कानून, उपनियम वगैरह अभी तक पारित नहीं करवाए गए हैं जबकि यह कानून लागू किया जा चुका है। इसके जवाब में गृह मंत्रालय ने कहा कि यह काम जल्द ही पूरा कर लिया जाएगा।

हालांकि इसमें नियम यह है कि किसी अधिनियम के पारित होने के बाद उसके नियम-उपनियम वगैरह छह महीने के अंदर बन कर लागू हो जाने चाहिए, पर इस मामले में अब तक यह नहीं बना है।

वहीं बीते दिसंबर में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि कोरोना संकट की वजह से ये नियम-कानून व उपनियम अब तक नहीं बन पाए हैं।

सीएए के नियम- उपनियम संसद से पारित कराने का मामला अहम इसलिए है कि पश्चिम बंगाल और असम में यह बेहद संवेदनशील मुद्दा है और इन दोनों राज्यों में चुनाव हैं।

दरअसल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ऐलान कर रखा है कि उनके राज्य में सीएए किसी कीमत पर लागू नहीं किया जाएगा और वहीं भाजपा इसे एक मुद्दा बनाने का फैसला कर लिया है।

भाजपा के स्थानीय नेता ही नहीं, बीजेपी अध्यक्ष जे. पी. नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह ने बार-बार कहा है कि वे सीएए को हर कीमत पर लागू करेंगे। इस राज्य में इस मुद्दे पर दोनों दलों में टकराव तय है।

दरअसल बंगाल में मुसलमानों की आबादी 30 प्रतिशत है और लगभग सौ सीटों पर वे चुनाव नतीजों को प्रभावित करने की स्थिति में हैं। वहां बीजेपी इस मुद्दे को उठा कर ध्रुवीकरण कराना चाहती है ताकि उसे हिन्दुओं के वोटों का बड़ा हिस्सा मिल सके।

असम में यह मुद्दा इसलिए अधिक संवेदनशील है क्योंकि बांग्लादेश से सटे इस राज्य में बहुत बड़ी तादाद में लोग आकर बसे हैं जो अलग-अलग समय में आए हैं। मालूम हो कि गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा चुनाव में बांग्लादेश से आए लोगों को दीमक करार दिया था।

एक अनुमान के अनुसार असम के 3.50 करोड़ में से मुसलमानों की आबादी 1.30 करोड़ यानी लगभग 37 प्रतिशत है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य के 27 में से 9 जिले मुसलिम-बहुल हैं।

असम के बरपेटा, धुबड़ी, करीमगंज, गोआलपाड़ा, बनगोईगाँव, हैलाकांडी और नगांव में मुस्लिमों की आबादी 38.5 प्रतिशत तो मोरीगांव में 47.6 और दरांग में 35.5 प्रतिशत मुसलमान हैं।

राज्य की 126 विधानसभा सीटों में से कम से कम 70 सीटों में मुसलमान निर्णायक भूमिका में हैं। ऐसी स्थिति में बीजेपी वोटों का ध्रुवीकरण करना चाहती है ताकि वह हिन्दुओं का अधिक से अधिक वोट उसे मिल जाए और वह ज़्यादा से ज्यादा सीटें जीत ले।

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