आखिर यह कैसी आज़ादी, जो दूसरों के लिए परेशानियां पैदा कर रही ?

ज़ादी, निश्चित रूप से प्रत्येक प्राणी का स्वभाव है। परन्तु जब प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ समझा जाने वाला मानव आज़ादी की सभी सीमाओं को पार कर मानव समाज के ही अन्य लोगों के लिये परेशानी का सबब बन जाये तो ज़ेहन में यह सवाल उठना भी स्वभाविक है कि कहीं वह अपनी आज़ादी का दुरूपयोग तो नहीं कर रहा है?

इससे भी बड़ी समस्या तब खड़ी हो जाती है जब आज़ादी या स्वतंत्रता का दुरूपयोग करने वाले उसी व्यक्ति को उसकी बेजा हरकतों के लिए टोका जाये या उसे मना किया जाये या उसे यह बताया जाये कि जिसे वह आज़ादी समझकर दूसरों के लिये परेशानी खड़ी कर रहा है वह दरअसल ग़ैर क़ानूनी है अनैतिक है तो वह अपनी ग़लती मानने या उसमें सुधार करने के बजाये बड़े ही शातिरपने से बात को दूसरी तरफ़ घुमा देता है। यहाँ तक कि लड़ने को भी तैयार हो जाता है और शिकायतकर्ता को ही कटघरे में खड़ा करने लगता है।

मिसाल के तौर पर कहीं लाउड स्पीकर पर अज़ान हो रही हो या मजलिस, मीलाद हो रहा हो और देर रात तक पास पड़ोस के लोगों की नींद ख़राब हो रही हो, या सड़क पर नमाज़ पढ़ी जा रही हो जिससे राहगीरों को रास्ता चलने में बाधा पैदा होती हो, और आपने इन सब पर आपत्ति की तो आपको फ़ौरन इस्लाम व मुस्लिम विरोधी बता दिया जायेगा। भले ही शिकायतकर्ता स्वयं मुसलमान ही क्यों न हो।

इसी तरह अनेक मंदिरों व गुरुद्वारों में सुबह शाम लाउड स्पीकर पर होने वाले भजन कीर्तन से यदि आसपास के लोग परेशान हैं। बच्चों को इम्तेहान में पढ़ने में परेशानी हो रही है, कहीं जगरात्रे के चलते रास्ता भी रोका हुआ है और रातभर शोर भी हो रहा है। आये दिन कोई न कोई यात्रा जुलूस गाजे बाजे के साथ निकलता ही रहता है। परन्तु यदि आपने वहाँ किसी को क़ानून समझाया या उस पर आपत्ति की तो आपको सनातन विरोधी व धर्म विरोधी बताने में देर नहीं लगेगी।

आजकल तो भिखारी लोग भी आधुनिक युग में प्रवेश कर चुके हैं। वे भी कभी शनि की सवारी लेकर तो कभी साईं की मूर्ति लेकर शोर मचाते लाउडस्पीकर के साथ गली गली मांगते फिरते हैं। यह लोग प्रायः सुबह 5 बजे ही सोते हुए लोगों को उठाकर मांगते हैं और रात के 11 बजे तक इनका यह सिलसिला चलता रहता है। परन्तु आपके आपत्ति करने पर धर्मांध लोग अपनी धर्मान्धता के नशे में आपके सारे तर्कों को काट कर आपको नास्तिक बताने पर आमादा हो जाएंगे।

कोई आश्चर्य नहीं कि इस तरह के कृत्य में शामिल लोग आपको अपमानित भी कर डालें। हद तो यह है कि ऐसे अवसर पर जो लोग भले ही आपकी बातों से सहमत क्यों न हों परन्तु वे भी सिर्फ़ इसलिए ख़ामोश रहेंगे कि कहीं उन्हें भी धर्म विरोधी न बता दिया जाए। हमारे आज के समाज की यही कड़वी सच्चाई है।

उपरोक्त धार्मिक कृत्यों के अतिरिक्त भी तमाम लोग अपनी निजी आज़ादी का दुरूपयोग करते हैं। मिसाल के तौर पर ग़लत जगह गाड़ी पार्क करना, तंग गलियों में कारें खड़ी करना, गलियों में अपने घरों के प्रवेश द्वार पर ऐसे टेपर बनाना जिनसे आधी गली पर ही उनका क़ब्ज़ा हो जाये। नवधनाढ्यों द्वारा अपने कुत्तों को दूसरों के दरवाज़ों पर ले जाकर पोटी कराना। जहाँ चाहे वहीँ खड़े होकर पेशाब करने लगना। आज़ाद देशवासियों के स्वभाव का हिस्सा बन चुका है। आख़िर कुछ तो वजह है कि जगह जगह यह लिखा दिखाई देता है कि यहाँ पेशाब करना मना है। उसके बावजूद उसी जगह पर लोगों का खड़े होकर पेशाब करना? यह सब आज़ादी के दुरूपयोग की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या है?

इसी तरह कई जगह जब लोग अपना मकान बनवाते हैं तो पूरे अधिकार के साथ उस ओर से निकलने वाले पूरे रास्ते को ही बंद कर देते हैं। रास्ते में मिट्टी, बालू, ईंट रखकर या मिक्सर मशीन खड़ी कर रास्ते को पूरी तरह बंद करना ऐसे लोग अपना अधिकार समझते हैं। परिणाम स्वरूप उधर से अपनी रोज़ाना निकलने वाले लोगों को अपना मार्ग बदलना पड़ता है। फिर चाहे वह एम्बुलेंस हो या स्कूल बस। अब यदि आप ने ऐसे आज़ाद लोगों को समझाने की कोशिश की कि वाहनों के आवागमन के लिये थोड़ा सा मार्ग तो छोड़ दें। इसके जवाब में वह आपकी बात मानना तो दूर उल्टे आपसे लड़ने को ही तैयार हो जाएगा और साथ ही अपने मन में हमेशा के लिये यह भी ठान लेगा कि अमुक व्यक्ति मेरे मकान के निर्माण को देखकर ईर्ष्या रखता है।

उसी समय वह निर्माणाधीन मकान पर एक नज़रबट्टू, काला भूत या कोई फटा जूता लटका देगा। और हमेशा के लिये आपसे बोलचाल, मरना जीना, शादी ब्याह सब कुछ समाप्त हो जायेगा। ऐसे ही एक निर्माणाधीन मकान की तरफ़ से एक बार प्रातःकाल की सैर करते हुये गुज़रना हुआ। दृश्य यह था कि पूरा मार्ग मिट्टी डालकर बंद था। सुबह 6 बजे सरकारी जलापूर्ति शुरू हुई तो उसी निर्माणाधीन मकान में लगी पानी की टूंटी खुली थी जिसकी तेज़ धार उसी मिटटी पर जा रही थी।

परिणाम स्वरूप वह मिटटी तेज़ी से बहकर नाली में जा रही थी। इसकी वजह से काफ़ी दूर तक नाली व उससे जुड़ा एक बड़ा नाला भी मिट्टी से भर गया था। ज़ाहिर है कि मिट्टी से नाली में हुए इस ब्लॉकेज को इस मकान का मालिक तो साफ़ करवाने से रहा? अब अगर सरकारी अमला इसे साफ़ न करे तो जनता सरकार को कोसेगी? और अगर सरकारी अमला इसे साफ़ न करे तो नाली ओवर फ़्लो होगी और गन्दा पानी सड़कों पर आएगा। जिससे दुर्गन्ध फैलेगी और बीमारी फैलने की संभावना बढ़ेगी। परन्तु इन बातों से इन स्वार्थी आज़ाद देशवासियों का क्या लेना देना। इनका अपना उल्लू सीधा हो जाये बाक़ी भाड़ में जाएँ परेशान होने वाले?

इसमें सरकार का भी क़ुसूर है जो ऐसे लोगों के विरुद्ध सख़्त कार्रवाई नहीं करती जो किसी न किसी तरह आम लोगों की परेशानी का सबब बनते हैं। चाहे वह सरकारी ज़मीनों पर क़ब्ज़ा कर, ध्वनि प्रदूषण फैला कर या जाम के हालात पैदा कर या रास्ते घेर कर। ऐसे लोगों को क़ानून के मुताबिक़ सख़्त दंड दिया जाना चाहिए। क्योंकि आज़ादी का मतलब दूसरों के लिये मुसीबत खड़ी करना तो हरगिज़ नहीं होता?

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