तेल अवीव: मिडल ईस्ट में तनाव लगातार कायम है। पिछले तीन दिनों में जिस तरह के घटनाक्रम सामने आए हैं, उन्होंने दुनिया के देशों को दो ध्रुवों की तरह बांट दिया है। एक तरफ अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे पश्चिमी देश इजरायल के साथ खड़े हैं, तो वहीं ओमान, बहरीन, कतर, सऊदी अरब, UAE और खाड़ी के छह देशों वाले संगठन GCC यानी गल्फ को-ऑपरेशन काउंसिल ने लेबनान की संप्रभुता का समर्थन किया है। हालांकि जानकार मानते हैं कि क्षेत्र में जो संघर्ष फिलहाल चल रहा है, उसमें अरब देश इंगेज होना नहीं चाहेंगे।
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार कमर आगा कहते हैं कि मुझे नहीं लगता कि कि संघर्ष में कोई देश इंगेज होगा। लेबनान की संप्रभुता का समर्थन करना और इजरायल का विरोध करना अरब वर्ल्ड की मजबूरी है। फलस्तीन के हालात को लेकर वहां जनता के बीच सॉलिडैरिटी का प्रेशर बढ़ा है। ऐसे में अरब देश ये चाहते हैं कि ईरान पर वॉर ना हो क्योंकि ऐसा होता है तो ये पूरे क्षेत्र में फैल जाएगी। इसके अलावा अरब देशों के पास फाइटिंग फोर्स भी नहीं है, उनकी सेना बेहद कमजोर है। इसलिए जोर इसी बात पर है कि संघर्ष ना फैले और तनाव यहीं रुक जाए।
सीजफायर के लिए तैयार था नसरल्लाह?
जानकार कहते हैं कि ईरान भी शुरू से नहीं चाहता था कि वह एक सक्रिय जंग का हिस्सा बने, खास तौर से नए राष्ट्रपति की छवि सुधारवादी नेता की रही है, ऐसे में वह नहीं चाहते थे कि किसी संघर्ष में उलझ जाएं। ईरान के दूसरे धड़े के लगातार प्रेशर बनाए जाने के बावजूद जब इस्माइल हानिया को मारा गया था तो उस वक्त भी ईरान की ओर से कहा गया था कि वह इसका जवाब नहीं देगा और सीजफायर किया जाना चाहिए।
वेस्ट एशिया मामलों के जानकार डॉ ओमैर अनस कहते हैं कि पुख्ता सूत्र बताते हैं हिज्बुल्लाह प्रमुख नसरल्लाह ने सीजफायर के लिए सकारात्मक संकेत दिए थे और इस संदेश को अमेरिका और फ्रांस तक पहुंचाया गया था। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया क्योंकि नेतन्याहू इस जंग में इतना आगे निकल चुके थे कि वह पीछे लौटना नहीं चाहते हैं।
ईरान को परमाणु ताकत बनने से रोकेंगे अरब देश
अनस आगे कहते हैं कि अगर इजरायल ईरान पर अटैक करता है तो यह ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम में एक मील का पत्थर होगा। ईरान न्यूक्लियर प्रोग्राम को लेकर आक्रामक रणनीति की दिशा में काम करेगा और परमाणु बम बनाने की दिशा में भी काम करेगा और इसके लिए स्पष्टीकरण देने की कोशिश करेगा कि उसे इजरायल से खतरा है। जानकार कहते हैं कि अरब देश हर हाल में ईरान को न्यूक्लियर पावर बनने से रोकना चाहते हैं। इसलिए अरब देश चाहते हैं कि जल्द से जल्द सीजफायर हो क्योंकि अगर ईरान पर अटैक हुआ तो वह जवाबी अटैक को अंजाम देगा।
यूं भी फलस्तीन अरब देशों में एक भावनात्मक मुद्दा है। ऐसे में वे चाहेंगे कि किसी तरह से जंग रुक जाए। अनस कहते हैं, ‘ईरान अगर इजरायल पर हमला करता है तो सबको मालूम है कि किसका पलड़ा भारी है, क्षेत्र में कौन डोमिनेट करेगा, ऐसे में क्षेत्र के हालात पूरी तरह बदल जाएंगे। ऐसी स्थिति में ऐसा लगता नहीं कि पश्चिमी देश ईरान के साथ उस तरह के संघर्ष में इंगेज होंगे जैसा कि इराक के मामले में देखने को मिला था, क्योंकि वे जानते हैं कि ईरान के साथ संघर्ष कई लिहाज से पश्चिमी देशों के लिए इराक से ज्यादा नुकसानदायक साबित हो सकता है।’