इन ऐतिहासिक फैसलों से पर्यावरण प्रेमियों के दिल खिले

इन दिनों दुनियाभर के पर्यावरण प्रेमी काफी खुश है। काफी दिनों बाद उन्हें ऐसी खुशी मिली है। खुश होने की वजह बहुत बड़ी है। जाहिर है जब दुनिया के तीन अगल-अलग हिस्सों से ऐसी खबरें एक साथ आयेंगी तो पर्यावरण प्रेमियों का खुश होना लाजिमी है। दरअसल अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया से इस हफ्ते एक साथ ऐतिहासिक खबरें आई। ये तीनों खबरें जलवायु परिवर्तन की दिशा में नए रास्ते खोल सकती हैं।

दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से आई तीनों खबरों ने गुरुवार को पर्यावरण के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं को काफी राहत पहुंचाई है।

अब चलिए जानते हैं कि क्या है मामला। दरअसल ऑस्ट्रेलिया और नीदरलैंड्स की अदालतों ने पर्यावरण परिवर्तन पर ऐतिहासिक फैसले दिए हैं, जबकि दो तेल कंपनियों को अपने ही निवेशकों से डांट पड़ी है।

वहीं पर्यावरण प्रेमियों के लिए एक बड़ी खबर अमेरिका से आई जहां दो सबसे बड़ी तेल कंपनियों के निवेशकों को ग्लोबल वॉर्मिंग पर जरूरी कदम न उठाने के लिए हार का मुंह देखना पड़ा।

ये दोनों कंपनियां हैं एक्सॉन मोबिल और शेवरॉन। एक्सॉन मोबिल के बोर्ड में कम से कम दो सीटें पर्यावरण कार्यकर्ताओं के हेज फंड इंजिन नंबर वन के पास चली गईं।

डीडब्ल्यू की खबर के अनुसार एक्सॉन के शेयरधारकों ने इंजिन नंबर वन से दो निदेशक चुने हैं और कार्यकर्ताओं का फंड एक और सीट जीत सकता है। बैठक के बाद कंपनी के सीईओ डैरन वुड्स ने कहा कि कंपनी अपने निवेशकों की मांग पर ध्यान देगी।

चर्च ऑफ इंग्लैंड के इन्वेस्टमेंट फंड को संभालने वाले चर्च फॉर कमिशनर्स के बेस जोफ ने कहा कि यह बड़ी तेल कंपनियों के लिए एक गंभीर चेतावनी वाला दिन था। उधर शेवरॉन के दो तिहाई से ज्यादा निवेशकों ने ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में और ज्यादा कमी करने के प्रस्ताव का समर्थन किया।

वहीं शेवरॉन ने 2050 तक उत्सर्जन कम करने का वादा तो किया है लेकिन इसके बारे में कोई योजना पेश नहीं की है।

द हेग में भी कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जिसमें तेल कंपनी और इसके सप्लायर्स को 2030 तक उत्सर्जन के स्तर में 2019 के स्तर से 45 फीसदी कमी लाने की आदेश दिया गया।

अदालत ने कहा कि शेल का 20 प्रतिशत की कमी का मौजूदा लक्ष्य नाकाफी है। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि पैरिस समझौते के तहत लक्ष्य तय किया गया है कि इस सदी के अंत तक धरती का तापमान 1.5 फीसदी से ज्यादा ना बढ़े लेकिन शेल कंपनी का 20 प्रतिशत कमी की प्रतिबद्धता काफी नहीं है।

अदालत ने कहा कि शेल को वैश्विक समझौते का पालन करना चाहिए। तापमान को बढऩे से रोकने के लिए साल 2030 तक इसके उत्सर्जन स्तर में 45 प्रतिशत की कमी आवश्यक है।

जज ने कहा, “यह बात पूरी दुनिया पर लागू होती है.” फैसला तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है। पर्यावरण के लिए काम करने वाली संस्था पैरंट्स फॉर फ्यूचर ने इस फैसले का स्वागत करते हुए ट्विटर पर कहा, “इसका अर्थ है कि उन्हें जीवाश्म ईंधनों का आज से ही दोहन बंद करना होगा।”

जानकारों का कहना है कि नीदरलैंड्स की अदालत का यह फैसला बड़ी तेल कंपनियों के खिलाफ नए मुकदमों का एक रास्ता खोल सकता है। यह फैसला इसलिए भी ऐतिहासिक है क्योंकि पहली बार किसी सरकार को नहीं बल्कि एक कंपनी को पैरिस समझौते का पालन करने का आदेश दिया गया है।

ऑस्ट्रेलिया में अदालत बच्चों के साथ

ऑस्ट्रेलिया की फेडरल कोर्ट ने आठ किशोरों द्वारा सरकार पर किए एक मुकदमे में कहा है कि सरकार की यह कानूनी जिम्मेदारी बनती है कि खनन परियोजनाओं को अनुमति देते समय इस बात ख्याल रखे कि पर्यावरण परिवर्तन युवाओं को नुकसान न पहुंचाए।

ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में स्थित फेडरल कोर्ट सिविल मामलों में संघीय कानून के तहत आने वाले मुकदमों की सुनवाई करती है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आठ किशोरों ने तमाम ऑस्ट्रेलियाई युवाओं की ओर से पिछले साल सितंबर में सराकर पर मुकदमा किया था। अपनी अपील में उन्होंने कहा था कि युवाओं की देखभाल सरकार की जिम्मेदारी है।

इस आधार पर इन युवाओं ने सरकार से एक कोयला खदान को मिलने वाली मंजूरी रोकने का आग्रह किया था। फेडरल कोर्ट के न्यायाधीश मोर्डेसाई ब्रोमबर्ग ने इस बात पर सहमति जताई कि जलवायु परिवर्तन से युवाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार की बनती है।

उन्होंने यह भी कहा कि पर्यावरण में हो रहे बदलाव युवाओं के लिए भयावह होंगे। कोर्ट ने यह भी माना कि कोयला खदान पर्यावरण को नुकसान पहुंचाएगी, लेकिन मंत्री को खनन की मंजूरी देने से रोकने की अपील को तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया।

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