नई दिल्ली। महाराष्ट्र विधानसभा में उद्धव ठाकरे गुट की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि सदन के सदस्य व्हिप को मानने के लिए बाध्य होते हैं। साथ ही यह भी कहा कि सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा रहे राजनीतिक दल के विधायकों का कोई वर्ग भी अगर यह कहता है कि वे गठबंधन के साथ नहीं जाना चाहते हैं तो उन्हें अयोग्य ठहराया जा सकता है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने पांच जजों वाली पीठ की अध्यक्षता करते हुए कहा, ‘सरकार बनने के बाद विधायकों के किसी समूह के पास यह कहने का अधिकार नहीं है कि हम इस गठबंधन के साथ नहीं जाना चाहते। ऐसा करने पर वह अयोग्य करार दिए जा सकते हैं। जब तक आप विधायिका में हैं तब तक आप अपनी पार्टी के साथ मतदान करने के लिए बाध्य हैं। विलय होने की स्थिति में यह नियम नहीं लागू होता है।” आपको बता दें कि पिछले शिवसेना में हुई फूट के बाद के सियासी संकट पर सुनवाई के लिए इस पीठ का गठन किया गया है।
उन्होंने कहा, ‘उनमें से कोई भी विधायक या विधायकों का गुट राज्यपाल से यह नहीं कह सकता कि हम गठबंधन के साथ नहीं जाना चाहते। इसका आसान सा जवबा है। क्या आप गठबंधन के साथ नहीं जाना चाहते हैं? आप अपने नेता के पास जाओ और राजनीतिक दल में निर्णय लो। जब तक आप सदन के सदस्य हैं आप सदन के अनुशासन से बंधे हैं। इसलिए आपको अपने राजनीतिक दल के साथ मतदान करना होगा।”
कौल ने बेंच को बताया, “एक ही दिन में दो राजनीतिक व्हिप नियुक्त किए गए थे। हम पार्टी के जनादेश का पालन कर रहे हैं। सवाल यह है कि हमारे राजनीतिक सचेतक वास्तविक हैं या फिर उनके। जिस गुट को अब आधिकारिक तौर पर मान्यता दी गई है, पहले उनके पास बहुमत था। पार्टी के कैडर में भारी असंतोष है और वे गठबंधन जारी नहीं रखना चाहते हैं।”
कौल ने तर्क दिया कि विधायकों द्वारा बगावत को देखते हुए फ्लोर टेस्ट का आदेश देना राज्यपाल के लिए उचित था। सीजेआई ने कहा कि कौल जिस स्थिति की वकालत कर रहे हैं, उसे स्वीकार करने से कट्टरपंथी परिणाम सामने आएंगे। इस मामले पर आज भी सुनवाई जारी रहेगी।