मृगांक
ममता बनर्जी ने आखिरकार ऐलान कर ही दिया। आने वाले आम चुनाव में वो ‘एकला चलो’ के सिद्धांत पर ही आगे बढ़ने जा रही हैं। हो सकता है ऐसे और भी क्षेत्रीय नेता हों जो ममता बनर्जी की ही तरह सोच रहे हों ये घोषणा करते वक्त ममता बनर्जी ने लेफ्ट के साथ साथ कांग्रेस को भी कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की है। कांग्रेस को लेकर ममता बनर्जी का ताजा गुस्सा तो सागरदिघी उपचुनाव के नतीजे के बाद सामने आया है, लेकिन ऐसा लगता है जैसे अरसे से जो कुछ अंदर भरा पड़ा था, जो अंदर ही अंदर उबल रहा था, बाहर निकल आया है।
और इस तरह ममता बनर्जी का गुस्सा फूट पड़ने की बड़ी वजह राहुल गांधी का रवैया ही लगता है। जिस तरीके से राहुल गांधी ने क्षेत्रीय दलों को विचारधारा के नाम पर नीचा दिखाने का बीड़ा उठा रखा है, ममता बनर्जी के पास भी विकल्प ही कहां बचे थे। ये तो पहले से मालूम था कि त्रिपुरा सहित तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद देश की राजनीति में बहुत कुछ बदलने वाला है और ममता बनर्जी के अगले आम चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल के साथ गठबंधन न करने का ऐलान भी इसी तरफ एक मजबूत इशारा है।
मुमकिन है कई और भी क्षेत्रीय नेता कतार में खड़े हों। और ममता बनर्जी की ही तरह सही वक्त आते ही अपने एक्शन प्लान की घोषणा कर दें। अखिलेश यादव तो भारत जोड़ो यात्रा के दौरान ही अपना इरादा जता चुके हैं। अरविद केजरीवाल तो पहले से ही दूरी बना कर चल रहे हैं, अगर केसीआर की तेलंगाना रैली को छोड़ दें तो। ये तो है कि ममता बनर्जी ने राष्ट्रपति चुनाव के बाद से ही अलग लाइन ले रखी है, लेकिन ये भी नहीं भूलना चाहिये कि नीतीश कुमार के एनडीए छोड़ कर विपक्षी नेताओं से मिलने के बाद भी ममता बनर्जी ने 2०24 में मिलजुल कर बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हराने का दावा किया था।
कांग्रेस का नाम तो ममता बनर्जी ने तब भी नहीं लिया था, लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का साथ देने की बात जरूर कही थी। लेकिन लगता है राहुल गांधी के मेघालय जाकर टीएमसी पर टिप्पणी से ममता बनर्जी को ज्यादा गुस्सा आया है। मेघालय जाते ही राहुल गांधी को ममता बनर्जी पर गुस्सा आना गैरवाजिब भी नहीं कहा जा सकता, लेकिन ऐसी कोई तात्कालिक वजह तो थी नहीं। ये तो सच ही है कि मेघालय में कांग्रेस के बूते ही ममता बनर्जी ने पैर जमाया है, लेकिन क्या राहुल गांधी को नजरअंदाज करने की कला नहीं सीखनी चाहिये?
निश्चित तौर पर राहुल गांधी को भी गुस्सा आ रहा होगा कि कैसे एक दिन ममता बनर्जी ने उनके नेता मुकुल संगमा को तृणमूल कांग्रेस में लेकर कांग्रेस एक झटके में कमजोर कर दिया, लेकिन ये भी तो नहीं भूलना चाहिये कि ममता बनर्जी उनके लिए मोदी-शाह जैसे दुश्मन तो नहीं हैं जो कांग्रेस मुक्त भारत अभियान चला चुके हैं।
कोई भी कंफ्यूजन चलेगा, लेकिन अगर राहुल गांधी अपने लिए दुश्मन नंबर 1 की पहचान नहीं कर पाते तो क्या कहा जाये? ये भी ठीक है कि ममता बनर्जी कांग्रेस से लड़ कर ही निकली हैं, और कांग्रेस को पश्चिम बंगाल में बर्बाद करके सरकार चला रही हैं, लेकिन ये भी नहीं भूलना चाहिये कि संघ, बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी से कांग्रेस की लड़ाई में राहुल गांधी के लिए ममता बनर्जी एक काफी मजबूत खंभा हैं। अगर आगे चल कर विपक्षी दलों के दूसरे नेता भी ममता बनर्जी की ही राह अख्तियार कर लेते हैं, तो कभी सोचा है कांग्रेस का क्या हाल होगा – राहुल गांधी का ये रवैया निश्चित रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही मजबूत करेगा।
त्रिपुरा तो नहीं लेकिन राहुल गांधी ने मेघालय में एक चुनावी रैली जरूर की थी। और राहुल गांधी का भाषण सुनें तो कई बार बीजेपी के मुकाबले उनकी सबसे बड़ी दुश्मन ममता बनर्जी ही लगती हैं। रैली में राहुल गांधी की तरफ से ये समझाने की कोशिश हो रही थी कि कैसे ममता बनर्जी की पार्टी बीजेपी की मददगार बन चुकी है। राहुल गांधी का कहना रहा, ‘आप टीएमसी का पश्चिम बंगाल में हिसा और घोटालों का इतिहास जानते हैं।
आप उनके ट्रेडिशन से वाकिफ हैं। राहुल गांधी लोगों से कह रहे थे, जैसे गोवा में टीएमसी ने भारी रकम खर्च किये। मेघालय में भी कर रहे हैं। उनका मकसद बीजेपी की मदद करना था। मेघालय में भी उनका यही प्रयास है। ताकि बीजेपी मजबूत होकर सत्ता में आये। जवाब तो राहुल गांधी को तृणमूल कांग्रेस महासचिव अभिषेक बनर्जी ने ही दे दिया था, लेकिन ममता बनर्जी ने अब पॉलिटिकल स्टैंड ले लिया है। अभिषेक बनर्जी ने तभी बोल दिया था, ‘मैं राहुल गांधी से अपील करता हूं। हम पर हमला करने से अच्छा है कि वो अपनी राजनीति पर ध्यान दें।
हमारा विकास कोई पैसे के दम पर नहीं हुआ है। लोगों का जो प्यार मिला है, उससे हमारा विस्तार हुआ है।’ राहुल गांधी की मेघालय में कही गयी बातों का जवाब ममता बनर्जी सागरदिघी के बहाने दे रही हैं। जैसे राहुल गांधी ने मेघालय में टीएमसी पर बीजेपी की मदद का इल्जाम लगाया था, ममता बनर्जी कांग्रेस पर बीजेपी के साथ अनैतिक गठबंधन का आरोप लगा रही हैं।
सागरदिघी सीट पर कांग्रेस की जीत के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना रहा, कांग्रेस और सीपीएम ने तृणमूल कांग्रेस को हराने के लिए बीजेपी के साथ समझौता किया है। अब तो ममता बनर्जी ने साफ कर दिया है कि 2०24 में तृणमूल कांग्रेस का सिर्फ पश्चिम बंगाल के लोगों के साथ चुनावी गठबंधन होगा। कहती हैं, हम किसी राजनीतिक दल के साथ नहीं जाएंगे, हम लोगों के समर्थन के बल पर अकेले ही चुनाव लड़ेंगे।
और लगे हाथ ममता बनर्जी ये भी बता देती हैं कि कांग्रेस को खुद को बीजेपी विरोधी कहने से बचना चाहिये – असल बात तो यही है कि ममता बनर्जी को ऐसा बोलने के लिए मजबूर करने वाला कोई और नहीं बल्कि राहुल गांधी ही हैं।
चाहे ममता बनर्जी अपनी भड़ास निकालने में राहुल गांधी की कांग्रेस पर बीजेपी को मदद पहुंचाने का इल्जाम लगा रही हों, या फिर राहुल गांधी अपने गुस्से का इजहार करते हुए ममता बनर्जी पर बीजेपी को फायदा पहुंचाने का इल्जाम लगा रहे हों – सही बात तो यही है कि दोनों ही अपने अपने तरीके से बीजेपी के लिए अगले चुनाव में कामयाबी की राह बना रहे हैं। ममता बनर्जी 2०21 के पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद ज्यादा एक्टिव देखी गयी हैं, लेकिन वो तो 2०19 में भी कोई कम सक्रिय नहीं थीं।
कांग्रेस के साथ गठबंधन का सुझाव भी दिया था और पेशकश भी की थी – लेकिन राहुल गांधी नहीं माने। ड्राइविग सीट कांग्रेस के पास ही रहेगी, ऐसी बातें राहुल गांधी अब खुल कर कहने लगे हैं लेकिन पहले भी बात बनते बनते इसीलिए खराब हो गयी थी। कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में ममता बनर्जी ने रैली तो विपक्ष को एकजुट करने के लिए ही की थी – और मोदी को एक्सपाइरी डेट पीएम बोलने का मकसद भी तो एक ही था।
राहुल गांधी की आनाकानी के बावजूद विपक्षी दलों के नेताओं ने बीच बचाव कर कुछ बैठकें भी बुलायी थी। तब ममता बनर्जी की पेशकश थी कि कांग्रेस, दिल्ली और आंध्र प्रदेश में तो चुनाव से पहले गठबंधन करे ही, बाकी राज्यों में भी ऐसा कर ले – लेकिन राहुल गांधी ने क्षेत्रीय नेताओं का नाम लेकर कन्नी काट ली थी। तब ये भी देखने को मिला था कि अरविद केजरीवाल भी कांग्रेस के साथ गठबंधन करना चाहते थे, लेकिन राहुलआखिर तक राजी नहीं हुए।