लखनऊ। प्रदेश में स्मार्ट प्रीपेड मीटर परियोजना कास्ट बेनिफिट के आधार पर बिजली कंपनियों को घाटा उठाना पड़ेगा। इसकी समीक्षा पुन: सरकार को करनी चाहिए। जब तीन करोड़ विद्युत उपभोक्ताओं में एक करोड़ 39 लाख लाइफ लाइन की परिधि में आ जाएंगे और उन्हें 350 रुपये बिजली बिल जमा करना होगा। इसके बाद बिजली कंपनियां उसमें से 102 रुपये स्मार्ट मीटर लगाने वाली एफिसिएंसी लिमिटेड को दे देगी। ऐसी स्थिति में बिजली कंपनियां ज्यादा घाटे में चली जाएंगी।
यह बातें राज्य उपभोक्ता परिषद ने कही और राज्य सरकार से प्रोजेक्ट पर पुन: विचार करने की मांग की। उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा लाइ जा रही इस योजना से कम्पनियां आत्म निर्भर बनने के बजाय बर्बाद हो जाएंगी। अवधेश वर्मा ने बताया कि इस स्मार्ट मीटर की वर्तमान में एनर्जी एफिशिएंसी लिमिटेड द्वारा जो ओपेक्स मॉडल वित्तीय पैरामीटर है, पूरी तरीके से उत्तर प्रदेश के लिए फेल साबित होना तय है।
उन्होंने कहा कि वर्तमान में उत्तर प्रदेश में लगभग 3 करोड़ 16 लाख विद्युत उपभोक्ता है, जिसमें से 1 करोड 39 लाख विद्युत उपभोक्ता लाइफ लाइन यानी कि बीपीएल उपभोक्ता है। उनके लिए विद्युत नियामक आयोग द्वारा जो टैरिफ डिजाइन किया गया है, उसके हिसाब से 100 यूनिट तक रुपया 3 प्रति यूनिट और 1 किलो वाट तक फिक्स चार्ज रुपया 50 सब मिलाकर बिजली कंपनियों को एक लाइफ लाइन विद्युत उपभोक्ता से रुपया 350 प्रत्येक माह प्राप्त होगा।
वर्तमान में एनर्जी एफिशिएंसी लिमिटेड द्वारा एक मीटर पर कुल लागत रुपया 101.42 प्रति मीटर प्रति माह वसूली जा रही है। ऐसे में बिजली कंपनियां बिजली खर्च सहित और भरपाई कैसे कर पाएगी।
उपभोक्ता परिषद ने पावर कार्यक्रम प्रबंधन व उत्तर प्रदेश से सख्त सरकार से मांग उठाई है कि जैसा कि विद्युत नियामक आयोग द्वारा अपने टैरिफ आदेश में कास्ट बेनिफिट एनालिसिस करने का फरमान जारी किया गया है। उस पर बिजली कंपनियां पुनर्विचार करते हुए इस पूरे प्रोजेक्ट को नए सिरे से तैयार करें, अन्यथा आत्म निर्भर बनने चली बिजली कंपनियों को बडा नुकसान होना तय है।