नयी दिल्ली। किसी पार्टी में अंदुरूनी मतभेद होना आम बात है लेकिन हद से आगे बढ़कर आलोचना करना हर राजनीतिक पार्टी के लिए परेशानी रही है। नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के विरुद्ध बागी तेवर अपना कर बिहार भाजपा में असमंजस की स्थिति निर्मित करने वाले यशवन्त सिन्हा और शत्रुघ्न सिन्हा के अलावा कीर्ति आजाद भी हैं। यशवंत सिन्हा तो अब थक हार कर सन्यास ले चुके हैं। और मोदी और शाह की जोड़ी शत्रुघ्न को न अहमियत दे रही है, न ही भाव दे रही है। यशवन्त सिन्हा को शायद अपने पुत्र के भविष्य की भी चिन्ता हो। लेकिन कीर्ति आजाद अब भी स्वच्छंद होकर बागी तेवर अपनाये हुए हैं। भाजपा ने अपने लाड़ले अरुण जेटली से भिड़ पडऩे पर कीर्ति को पार्टी से निलम्बित कर रखा है। इसका एक कारण कीर्ति आजाद की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी हो सकती है। कीर्ति के पिता स्व. भागवत झा आजाद अपने समय में न केवल कांग्रेस के बड़े नेता, बल्कि, बिहार के मुख्यमंत्री भी रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि सम्भावना जतायी जा रही है कि लोकसभा चुनाव से पूर्व कई सारे नेता दूसरे दलों का दामन थम सकते हैं। इसी सन्दर्भ में एक नाम भाजपा के दरभंगा बिहार से सांसद रहे कीर्ति आजाद का आ रहा है। भाजपा से निलंबित कीर्ति आजाद कई मौकों पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की तारीफ कर चुके हैं। हाल ही में एक इंटरव्यू में कीर्ति ने कहा था कि राहुल एक अच्छे नेता हैं और युवाओं में उन्होंने नई स्फूर्ति भर दी है। भाजपा के पूर्व सांसद ने कहा कि मेरे पिता भी कांग्रेसी रह चुके हैं। आजाद कह चुके हैं कि वे 2019 में किसी राष्ट्रीय पार्टी से ही चुनाव लडऩे की तैयारी में हैंं। जाहिर है भाजपा के खिलाफ बगावत करने पर वहां से टिकट मिलना असंभव-सा है। इसी परिप्रेक्ष्य में चर्चा चल पड़ी है कि अब कांग्रेस का हाथ थाम सकते हैं। बिहार कांग्रेस के प्रभारी राजेश लिलोटिया भी कीर्ति के कांग्रेस में शामिल होने की संभावना का स्वागत कर चुके हैं। कीर्ति आजाद तीन बार भाजपा से दरभंगा जिले से सांसद रह चुके हैं।
यह बात भी उल्लेखनीय है कि बिहार में यों भी इस बार चुनावों से पूर्व भारी राजनैतिक उथल पुथल की सम्भावनाएं जतायी जा रही हैं, जहाँ लालू यादव तो फिलहाल जेल में हैं, लेकिन जेल रहते हुए भी वे चुनावों पर असर निश्चित रूप से डालेंगे। भाजपा और मुख्यमंत्री नीतीश के जद (यू) के बीच भी भीतरखाने सब कुछ एकदम ठीक- ठाक नहीं है। देखना यह होगा कि कीर्ति आजाद को कांग्रेस टिकिट देने की स्थिति में रहेगी भी या नहीं। यह इसलिए कि कांग्रेस बिहार में कोई बड़ी मजबूत स्थिति में नहीं है। वहाँ वह गठबन्धन में छोटे भाई जैसी स्थिति में ही रहेगी। ऐसे में अभी तो यह भी निश्चित नहीं है कि दरभंगा सीट किसके कोटे में जायेगी। अगर कीर्ति की निगाह दरभंगा पर ही है तो उन्हें राहुल गांधी के साथ-साथ लालू यादव की सहमति की भी दरकार होगी। स्थिति तो बाद में ही साफ होगी। भाजपा के लिए यह सबसे बड़ी परेशानी बनती जा रही है कि वह 2019 के चुनावों के समय इन नेताओं के बड़बोलेपन पर कैसे लगाम लगायी जाए।