अलीगढ़ । एक जवान की मौत हुई तो अन्य जवानों के सब्र का बांध टूट गया। वे इकत्रित हुए। खाना छोड़ दिया और ‘तानाशाही’ के खिलाफ आवाज बुलंद कर दी। बंद परिसर में रात तक उनकी आवाज किसी ने नहीं सुनी, लेकिन जब इसका शोर बाहर आया तो सबके कान खड़े हो गए।
सभी गेट बंद कर दिए। मीडिया को रोक दिया गया। अगर संवाद हो रहा था तो रात में जवानों की भीड़ कैसी? बाहर के अधिकारी क्यों बुलाए गए? मीडिया को क्यों रोका? खैर, जल में रहना है तो मगर से बैर ठीक नहीं। मौके की नजाकत को देखते हुए जवानों ने आखिरकार अधिकारियों की बात मानी, लेकिन इसके बदले जवानों को ट्रेनिंग के दौरान अच्छा माहौल व परस्पर सहयोग मिलना भी जरूरी है।
सड़कों पर अनुशासन बनाने की नीयत से शुरू किया गया विशेष अभियान पूरी तरह ठंडे बस्ते में चला गया है। हालांकि, इन दिनों पुलिस सुरक्षा व्यवस्था संभालने में लगी हुई है, लेकिन इस ओर ध्यान देना भी जरूरी है। शहर की प्रमुख सड़कों पर अवैध पार्किंग के चलते वाहनों का अंबार लगा रहता है। इसमें काफी हद तक सुधार हुआ है, फिर भी और सख्ती की जरूरत है। खाकी को चौपालों के जरिये लोगों का सहयोग भी लेना होगा।
दूसरी तरफ, कागजों पर खूब कार्रवाई हो रही हैं। पर, ठेकों के बाहर धड़ल्ले से शराब पी जाती है। इनमें गांधीपार्क थाना क्षेत्र शराब पीने वालों के लिए सबसे महफूज है। सासनी गेट चौराहे पर ठेके सामने धकेलों पर बार जैसा माहौल हो जाता है। यहां ऐसी कई गली व मोहल्ले हैं, जहां शाम ढलते ही लोगों का जमावड़ा लग जाता है। पुलिस घूमती तो रहती है, लेकिन, किसी को खौफ नहीं है। ऐसे में महिलाएं व बच्चे खुद को कैसे सुरक्षित महसूस कर पाएंगे?
अकराबाद के एक गांव में युवती की निर्मम हत्या कर दी गई। स्वजन ने न तो किसी पर शक जताया और न ही कोई संदिग्ध बात बताई है, लेकिन इस घटना के पीछे कई सवाल हैं। परोक्ष रूप से पुलिस उनके जवाब तलाश रही है। युवती रात तक नहीं लौटी तो स्वजन की चिंता बढ़ गई थी।
बदनामी के डर से किसी को कानों-कान खबर नहीं होने दी। जैसे-तैसे रात काटी। सुबह जब बेटी का शव मिला तो कलेजा फट गया। बिलखते हुए यही बोले, अगर समय रहते ही किसी को सूचना दे दी जाती तो शायद युवती की जान बच जाती। खैर, अंतिम संस्कार को लेकर पेंच फंसा तो पुलिस की मुश्किलें भी बढ़ गईं।
अधिकारी गांव पहुंचे। कई घंटों की कवायद और सूझबूझ आखिरकार काम आई और सुरक्षा के बीच अंतिम संस्कार किया गया। उम्मीद है कि पुलिस जल्द घटना का पर्दाफाश करे और पूरी कहानी सामने लाए। महीनों बाद शहर से सटे थाने की चाल फिर बिगड़ गई है। लगातार लूट, गोलीकांड व वाहन चोरी ने नाक में दम कर रखा है। कार्रवाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हो रही है।
हाईवे पर वसूली तो बंद है, लेकिन थाने के अंदर उगाही का ‘खेल’ चालू है। मामला कोई भी हो। यहां नोटों के बिना बात नहीं होती। बाकायदा एजेंट सक्रिय रहते हैं। वो भी ना हों तो हमराह ही थाने के गेट पर खड़े होकर पूरा मोर्चा संभाल लेते हैं। किसी भी मामले को इधर से उधर बदलने या मैनेज करने में समय नहीं लगाते। ये तो रही अंदर की बात। थाने के बाहर भी खनन का खेल जारी है। ‘सांठगांठ’ इतनी तगड़ी है कि खाकी की नाक के नीचे काम होता है, लेकिन आंखें मूंदे बैठी रहती है।